Tuesday, August 31, 2010

सोचिये कि अगर ये कॉमन वेल्थ गेम किसी इस्लामिक देश में हो रहा होता तो क्या विदेशी सुवर के मांस कि डिमांड रखते - तारकेश्वर गिरी।






सोचिये कि अगर ये कॉमन वेल्थ गेम किसी इस्लामिक देश में हो रहा होता तो क्या ये विदेशी सुवर के मांस कि डिमांड रखते , और अगर रखते तो क्या वो लोग उनकी मांग को मान लेते।






और अगर चाइना या पूर्वी देशो के खिलाडी अगर ये कहते कि हम तो सिर्फ कुत्ते का ही मांस खायेंगे, तो क्या उनकी डिमांड पूरी हो जाती।






Saturday, August 28, 2010

कंहा गई मेनका गाँधी और कंहा गाये वो लोग- तारकेश्वर गिरी.

कंहा गई मेनका गाँधी और उनके लोग , जो अन्दर और बाहर अपनी रोटी पकाते फिरते हैं। कंहा गई वो दिल्ली के राम लीला मैदान कि भीड़ जिसने आधी दिल्ली में एक दिन गौ रक्षा के नाम पर जाम लगा दिया था।

आज जब ये तय हो चूका हैं कि मेहमान नवाजी गौ के मांस से होगी तो सारे गायब हैं, यंहा तक बड़े से बड़ा फेरबदल करने वाली सुप्रीम कोर्ट कि बेंच भी शांत हैं। वो मीडिया के लोग जो रात-दिन एक ही न्यूज़ लेकर के सर में दर्द कर देते हैं आज उनकी आवाज बंद क्यों हैं।




दिल्ली में तो गाय पहले से ही कट रही थी अब और कटेगी। पहले अपने लोगो के लिए कटती थी अब गैरो के लिए कटेगी।


चाहे कोई कितना भी चिल्ला ले कुछ नहीं होने वाला हैं। आखिर देश कि इज्जत दांव पे लगी हुई हैं,

दिल्ली बदनाम ही डार्लिंग तेरे लिए ,
दिल्ली तो झंडू बाम हुई डार्लिंग तेरे लिए।

अभी कल में इसी मुद्दे को लेकर के एक पोस्ट डाला था , अगर अपने नहीं पढ़ा हैं तो जरुर पढ़े...
http://taarkeshwargiri.blogspot.com/2010/08/blog-post_27.html

हजारो गाये कुर्बान हो जाएँगी -कॉमनवेल्थ गेम के नाम पर- तारकेश्वर गिरी।

हजारो गायों कि बलि दे दी जाएगी कॉमनवेल्थ गेम के नाम पर। और ये क़ुरबानी खुद दिल्ली कि सरकार देगी। क्योंकि विदेशी खिलाडियों ने और उनकी सरकार ने ये शर्त रखी हैं कि हमारे खिलाडियों को अगर दिल्ली सरकार रोज रात के खाने में अगर गाय का मांस देती हैं तो ठीक हैं , अन्यथा हमारे खिलाडी भारत में हो रहे कॉमनवेल्थ गेम में हिस्सा नहीं लेंगे।

अब बताइए जरा हैं किसी के पास विरोध करने कि ताकत। कंहा हैं वो लोग जो लोग गाय के नाम पर राजनीती करते हैं, कंहा हैं वो लोग जो जीव हत्या का विरोध करते हैं।
दिल्ली सरकार भी क्या करे , उसकी मुखिया तो खुद भी गौ मांस भक्षक हैं।

Friday, August 27, 2010

हजारो गाये कुर्बान हो जाएँगी -कॉमनवेल्थ गेम के नाम पर- तारकेश्वर गिरी.




हजारो गायों कि बलि दे दी जाएगी कॉमनवेल्थ गेम के नाम पर। और ये क़ुरबानी खुद दिल्ली कि सरकार देगी। क्योंकि विदेशी खिलाडियों ने और उनकी सरकार ने ये शर्त रखी हैं कि हमारे खिलाडियों को अगर दिल्ली सरकार रोज रात के खाने में अगर गाय का मांस देती हैं तो ठीक हैं , अन्यथा हमारे खिलाडी भारत में हो रहे कॉमनवेल्थ गेम में हिस्सा नहीं लेंगे।






अब बताइए जरा हैं किसी के पास विरोध करने कि ताकत। कंहा हैं वो लोग जो लोग गाय के नाम पर राजनीती करते हैं, कंहा हैं वो लोग जो जीव हत्या का विरोध करते हैं।


दिल्ली सरकार भी क्या करे , उसकी मुखिया तो खुद भी गौ मांस भक्षक हैं।

Thursday, August 26, 2010

घुट -घुट कर के मौत का इंतजार कर रहा हैं वो, - तारकेश्वर गिरी.

घुट -घुट कर के मौत का इंतजार कर रहा हैं वो, आज में उससे मिला , उसने मुझे बताया कि सर में तो बस इंतजार कर रहा हूँ कि मेरी मौत कब आएगी।


आज सुबह में गुरु तेग बहादुर अस्पताल में आपने एक रिश्तेदार को दिखाने के लिए ले गया। वंहा पर डॉ ने खून कि जाँच करने के लिए कहा। में अपने रिश्तेदार को लेकर के जाँच करने के लिए जब लैब में पहुंचा तो वंहा लम्बी लाइन लगी हुई थी, में भी उसी लाइन में लग गया। मेरे आगे एक नौजवान लड़का खड़ा था, उसकी उम्र लगभग २२ साल के आस पास थी, थोड़ी देर में मेरी उस लड़के से बात चीत होने लगी। बातो - बातो में उसने बताया कि में एड्स से ग्रस्त हूँ -


मुझे जोर से झटका लगा कि , में जिस के सामने खड़ा हूँ क्या सचमुच वो एड्स का मरीज हैं। मुझे उस से दूर रहना चाहिए , लेकिन शायद नहीं, मुझे तुरंत इस बात का एह्शाश हुआ और मुझे इस से दूर नहीं होना चाहिए। आज कल मीडिया और खुद सरकारी तंत्र इस मामले में पूरी तरह से गंभीर हैं और समय - समय पर लोगो को ये जानकारी भी दी जाती हैं कि एड्स छूने या साथ खड़े होने से नहीं होता।

खैर मैंने फिर उसकी तरफ दया भरी दृष्टि से देखा और और पूछा कि आप को कब पता चला कि आप को एड्स हैं, उस नौजवान ने के कहा कि पिछले तीन महीने से । मैंने फिर पूछा कि क्या आपको पता हैं कि ये बीमारी आपको हुई कैसे। उसने घबराते हुए कहा कि हाँ वही जो नोर्मल वजह होती हैं एड्स के लिए। एक बात और जो उसने बताई वो ये कि अभी तक उसने अपने घर मैं किसी को भी इस बात कि जानकारी नहीं दी हैं। और सबसे अच्छी बात ये हैं कि वो नौजवान कुंवारा हैं।

में समझ गया था कि इसकी नोर्मल वजह क्या थी, बाद में उसने इस बात को मान भी लिया कि मुझे एड्स सिर्फ असुरक्षित यौन सम्बन्ध बनाने से ही हुआ हैं।

खैर : सावधान

अगर किसी औरत या आदमी से यौन सम्बन्ध बनाना जरुरी हो तो सावधानी बरते और कोशिश करे कि अपने पत्नी या पति के प्रति वफादार ही रहे तो ज्यादे ही अच्छा होगा। रही बात कुंवारे लड़के और लड़कियों कि तो -घुट - घुट कर के मरने से तो अच्छा हैं कि इस तरफ ना ही जाएँ.


Monday, August 23, 2010

रोटी नहीं मकान चाहिए, सीमेंट कि दिवार चाहिए। - तारकेश्वर गिरी.

रोटी नहीं मकान चाहिए,
सीमेंट कि दिवार चाहिए।
लम्बी - लम्बी गाड़ी, महंगा सा मोबाइल,
और शाम को बीअर बार में शराब चाहिए।

अनाज नहीं चाहिए , खेतो का सामान नहीं चाहिए।
खेतो में फूलो गंध नहीं चाहिए,
हरे भरे पेड़ और आम नहीं चाहिए,
मौका मिले तो भंग चाहिए।

खेती कि जमीन पे हरियाली नहीं चाहिए,
नहरों में पानी नहीं और सुखा तालाब चाहिए।
हरे भरे बैग नहीं नोट चाहिए,
बैंक के खाते में दस-बीस करोड़ चाहिए।


ये कविता आज के हालत को देखते हुए मैंने लिखा हैं, आज दिल्ली और उसके आस पास कि उपजाऊ जमीन बड़ी - बड़ी मीनारों में तब्दील होती जा रही हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मेरठ , गाजियाबाद , नॉएडा , अलीगढ, बागपत जैसे इलाके कि जीमन बहुत ही ज्यादे उपजाऊ हैं, मगर वंहा के लालची किसान आज कि तारीख में अपनी जमीन बड़े - बड़े बिल्डरों और सरकार को विकास के नाम पर मोटि रकम ले कर के दे रहे हैं। जिसका नतीजा वो नहीं बल्कि उनकी आने वाली नस्ले भुगतेंगी।

Saturday, August 21, 2010

आदमी सदियों से दीवाल प्रेमी क्यों हैं. - तारकेश्वर गिरी.


बड़ा बेकार सा मुद्दा हैं, मगर हैं बड़े काम का। खाली बैठने से तो अच्छा हैं कुछ न कुछ किया जाये। और फिर मैंने सोचा इसी को उठाते हैं।


पुरुष सदियों से ही दीवाल प्रेमी रहा हैं। जरा सी जोर से लगी नहीं कि दीवाल खोजने का काम चालू हो जाता हैं। और बेचारे खोजे भी क्यों नहीं , जब से शहरीकरण हुआ हैं, पेशाब करने कि जगह ही ख़त्म हो गई हैं। सरकारी शौचालय तो ऐसे होता हैं जैसे कि वो इंसानों के लिए नहीं बल्कि मक्खियों और मच्छरो का पेशाब घर हो।


शहर में खुली जगह कम होती हैं। इस लिए दीवाल का सहारा लेना पड़ता हैं, वो भी ये देखकर कि कंही दीवाल पे कोई मंत्र वैगरह ( ये देखो गधा मूत रहा हैं या गधे के पुत इधर मत मूत) तो नहीं लिख हैं ना।


पुराने ज़माने में लोग पैंट कि जगह धोती या पायजामा पहना करते थे , उस समय लोग नीचे बैठ कर के पेशाब किया करते थे, लेकिन जमाना बदलता गया और लोग भी बदलते गए। अब हर जगह अंग्रेजी व्यस्था तो उपलब्ध हो नहीं सकती हैं, लेकिन आदत का क्या करे , पेशाब करेंगे तो खड़े हो कर के ही।
खैर क्या कर सकते हैं , सिवाय लिखने के। और बेचारी सरकार भी क्या कर सकती हैं, आबादी इतनी बढती जा रही हैं ।
लेकिन सबसे ज्यादा दिक्कत महिलावो को होती हैं।

Wednesday, August 18, 2010

आपकी सैलेरी तो बढ़ जाएगी , हमारी कौन बढ़ाएगा- तारकेश्वर गिरी.

ये लो जी नया मुद्दा , बिलकुल ताजा - ताजा हैं, लेकिन सबसे पहले नमस्कार।
अब सारे M P लोग अपनी - अपनी सैलेरी बढ़ाने के जुगाड़ में लग गए हुए हैं। लेकिन में इन साहेब लोगो से ये पूछना चाहता हूँ कि भाई या बहेन जी आप लोगो को सैलेरी कि जरुरत हैं किस लिए। गाड़ी मुफ्त मिली हुई हैं, पेट्रोल और ड्राईवर भी मुफ्त का ही हैं। दो चार बन्दूक धारी गार्ड भी मुफ्त के ही हैं। खाना घर पर कभी बनता ही नहीं। और जिस दिन घर पर खाने का मूड हुआ उस दिन आस-पास के रेस्तरो का मालिक यूँ भी मुफ्त में भिजवा देगा। बच्चे मुफ्त में पढ़ते हैं। ट्रेन और हवाई जहाज में टिकेट लगता नहीं। बस में तो, दो सीट आपके लिए सदियों से रेजेर्व हैं .
चुनाव के दौरान आपके क्षेत्र का व्यापारी चंदा लेकर के पहुँच ही जाता हैं। कपडे वो सिल्वा के दे देता हैं जिसका आपने कभी कोई टेंडर पास करवा दिया हो।
फिर तीन गुना सैलेरी कि डिमांड क्यों, मेरे देश के कर्णधारो ।
अरे कभी हमसे पूछिए , हम किस के पास जा करके धरना दे । कौन बडायेगा हमारी सैलेरी। अरे हमें तीन गुना नहीं चाहिए हमें आधा गुना ही बढ़ी मिल जाये तो भी हम काम चला लेंगे।

Monday, August 16, 2010

नारद जी और श्रीमती मनमोहन सिंह- तारकेश्वर गिरी.

श्रीमती मनमोहन सिंह एक दिन परेशान हो कर के नारद मुनि जी के पास जा पहुंची।
और बोली - - - मुनिवर, मेरे पति बुड्ढ़े हो गए हैं , अब उनसे कोई भी काम नहीं होता हैं, उनका तो दिमाग भी हल्का हो गया हैं, रात भर खर्राटे ले कर के सोते हैं मगर ना खुद सो पाते हैं और ना ही मुझे सोने देते हैं। में क्या करू , मुझे तो लगता हैं कि में पागल हो जाउंगी॥
श्रीमती मनमोहन जी कि बात सुन कर के नारद जी बोले - - - - हे देवी परेशान मत हो , मुझे पता हैं कि तुम्हारे पति को क्या दिक्कत हैं।
श्रीमती जी :- क्या दिक्कत हैं।
नारद जी :- तुम्हारा मरद अब तुम्हारे हाथ से निकल चूका हैं , एक विधवा औरत के जाल में फंस चूका हैं , हे देवी तुम्हारे पति के दिमाग में एक हमेशा एक सुन्दर औरत का चित्र लगा रहता हैं, और तो और वो हमेशा उसी का गुलाम बना रहता हैं, वो जो कहती हैं, वो वही करता हैं।
श्रीमती जी :- तो अब कोई उपाय बताइए मुनिवर।
नारद जी : उपाय का क्या करना, मजे कि जिंदगी जी रही हो जीती रहो। आदमी नहीं हैं तो क्या धन - दौलत से घर तो भरा पड़ा हैं ना। और क्या चाहिए ।
श्रीमती जी: - मुनिवर इनके हाथ तो कुछ लगा ही नहीं सारा मॉल तो इटली पहुँच गया हैं। और बचा खुचा तो कलमाड़ी मार ले गया । खेल का सारा पैसा तो उसकी माँ के इलाज में अमेरिका पहुँच ।
नारद जी :- ( हँसते हुए ) देवी अब तुम एक कविता सुनो और आपने घर जावो।
दिल्ली के मैदान में , मची हैं जम के लूट ।
लूट सके जो लूट ले , नहीं तो जल्दी से फूट ।
जल्दी से फूट नहीं तो, सत्ता में आएगा कोई और।
आते ही मांगेगा हिस्सा , न मिले तो मचाएगा वो शोर।
मचाएगा वो शोर , चोर -चोर चिल्लाएगा।
कुछ ना मिले तो चारो तरफ हड़ताल वो करवाएगा।

Friday, August 13, 2010

मंहगाई सोनिया खा गई- तारकेश्वर गिरी.

शीला कि लीला देख - जटा धारी बैठे हैं चुप-चाप ,
कि महंगाई सोनिया खा गई
महारानी कि प्रतिभा हो गई बेकार ,
कि मंहगाई सोनिया खा गई।



माया कि माया हैं अपरम्पार - जटा धारी बैठे हैं चुप -चाप,
कि मंहगाई सोनिया खा गई।
खेल - खेल में खेल गए अरबो - कलमाड़ी कि हालत हो गई ख़राब,
कि मंहगाई सोनिया खा गई।

Thursday, August 12, 2010

ये राजधानी हैं मेरे देश की - तारकेश्वर गिरी

हर तरफ शोर हैं ,ये राजधानी हैं मेरे देश की ।
कुछ को छोड़कर सारे नेता और अधिकारी चोर हैं,
ये राजधानी हैं मेरे देश की।


सड़क पे बने गड्डे हैं , नाले भरे पड़े हैं ,
ये राजधानी हैं मेरे देश की।
रोटी- तेल मंहगा हैं फ़ोन पेलम- पेल सस्ता हैं ,
ये राजधानी हैं मेरे देश की ।


रोज सड़क खुदती हैं सालो तक के लिए
नए टेंडर के इंतजार में,
ये राजधानी हैं मेरे देश की।

Wednesday, August 11, 2010

एक घोटाला एजेंसी - C. B. I. - तारकेश्वर गिरी.

C.B.I अब तो एक घोटाला एजेंसी में बदल गई हैं। अब तक जितने भी घोटाले बाज पकडे गए हैं, सब ke सब मजे कि जिंदगी जी रहे हैं। जब भी कोई घोटाला सामने आता हैं तो विरोधी दल और मिडिया इतना शोर - शराबा करती हैं मानो जनता को न्याय मिलेगा ही । मगर कुछ दिन के बाद सब के सब शांत हो करके बैठ जाते हैं , उस समय तो येही लगता हैं कि "सबको अपना - अपना हिस्सा मिल गया"। और शायद ये सही भी हो।
आप खुद ही सोचिये कि आज तक कितने घोटाले बाजो को सजा हुई हैं। और येही वजह हैं कि रोज नए - नए घोटाले बाज सामने आ जाते हैं। और फिर सबको हिस्सा -पानी देकर मौज करते हैं।
का दूध पानी का पानी वाली कहावत तो अब किताबो तक ही रह गई हैं। रोज एक नया घोटाला सामने आता हैं, अब ओलम्पिक खेल का घोटाला ही लेलिजिये । खूब शोर - शराबा हो रहा हैं , फिर कुछ दिन बाद देखिएगा फिर वही चहरे नजर आयेंगे। क्या फर्क पड़ता हैं।
बेचारी गरीब जनता : रोटी हैं तो सब्जी नहीं और दाल हैं तो चावल नहीं। सरकारी अस्पताल में पैदा होते हैं और पूरी जिंदगी उसी के सहारे जीते हैं और फिर उसी तरह के किसी सरकारी अस्पताल में दम तोड़ देते हैं।
ओलम्पिक खेल में ठेकेदार दोषी नहीं हैं , दोषी हैं तो सरकार के वो लोग जो इस खेल कि तैयारियों से जुड़े हुए हैं।

Wednesday, August 4, 2010

राम का अस्तित्व और राम जन्मभूमि - तारकेश्वर गिरी

असलम साहेब बहुत ही अच्छा कहा हैं आपने, हम तो उस समय थे ही नहीं जब भगवान राम पैदा हुए थे और ना ही आप उस समय थे जब मुहम्मद साहेब पैदा हुए थे. लेकिन इतना जरुर हैं कि मक्का और मदीना ये चिल्ला - चिल्ला के कहते हैं कि मुहम्मद साहेब थे. ठीक उसी तरह हिंदुस्तान में अयोध्या , चित्रकूट, पंचवटी, नेपाल में जनक पुर और श्री लंका भी ये चिल्ला - चिल्ला के कहते हैं कि भगवान श्री राम का अस्तित्व था. अगर बाल्मीकि रामायण को आप झूठा मानते हैं तो रामचरित मानस तो तुलसी दास जी ने १५०० शताब्दी में लिख था. उस समय इतने साधन नहीं थे कि समुन्द्र के अन्दर जा कर के ये देखा जाय कि भगवान राम ने पुल कंहा बनवाया था.

रही बात भारत सरकार कि तो आज भारतीय कम और इटालियन सरकार ज्यादा दिखती हैं.

चलिए छोडिये इतना तो पता होगा कि बाबर से पहले राम का मंदिर विवादित नहीं था. और बाबर को क्या जरुरत पड़ी थी मंदिर को मस्जिद के रूप में ढालने कि . और अगर आप ये मानते हैं कि किसी भी मुस्लिम राजा ने किसी भी हिन्दू मंदिर को कभी भी नहीं तोडा था , तो मेरे पास उसी दिल्ली सरकार का बोर्ड हैं आपको दिखाने के लिए आप कभी जाइये और देखिये महरौली के पास कुब्बत -उल - इस्लाम मस्जिद हैं उसकी दिवालो पर आज भी हिन्दू और जैन देवी देवतावो कि तस्वीर नजर आ जाएगी.