Friday, October 28, 2011

सरस्वती नदी: उद्गम स्थल तथा विलुप्त होने के कारण


सरस्वती नदी पौराणिक हिन्दू ग्रन्थों तथा ऋग्वेद में वर्णित मुख्य नदियों में से एक है। ऋग्वेद के नदी सूक्त के एक मंत्र (१०.७५) में सरस्वती नदी को 'यमुना के पूर्व' और 'सतलुज के पश्चिम' में बहती हुई बताया गया है।[1] उत्तर वैदिक ग्रंथों, जैसे ताण्डय और जैमिनीय ब्राह्मण में सरस्वती नदी को मरुस्थल में सूखा हुआ बताया गया है, महाभारतमें भी सरस्वती नदी के मरुस्थल में 'विनाशन' नामक जगह पर विलुप्त होने का वर्णन आता है। महाभारत में सरस्वती नदी के प्लक्षवती नदी, वेदस्मृति, वेदवती आदि कई नाम हैं.[2] महाभारत, वायुपुराण अदि में सरस्वती के विभिन्न पुत्रों के नाम और उनसे जुड़े मिथक प्राप्त होते हैं. महाभारत के शल्य-पर्व, शांति-पर्व, या वायुपुराण में सरस्वती नदी और दधीचि ऋषि के पुत्र सम्बन्धी मिथक थोड़े थोड़े अंतरों से मिलते हैं उन्हें संस्कृत महाकवि बाणभट्ट ने अपने ग्रन्थ 'हर्षचरित' में विस्तार दे दिया है. वह लिखते हें- " एक बार बारह वर्ष तक वर्षा न होने के कारण ऋषिगण सरस्वती का क्षेत्र त्याग कर इधर-उधर हो गए,परन्तु माता के आदेश पर सरस्वती-पुत्र, सारस्वतेय वहां से कहीं नहीं गया. फिर सुकाल होने पर जब तक वे ऋषि वापस लौटे तो वे सब वेद आदि भूल चुके थे. उनके आग्रह का मान रखते हुए सारस्वतेय ने उन्हें शिष्य रूप में स्वीकार किया और पुनः श्रुतियों का पाठ करवाया. अश्वघोष ने अपने 'बुद्धचरित'काव्य में भी इसी कथा का वर्णन किया है. दसवीं सदी के जाने माने विद्वान राजशेखर ने 'काव्यमीमांसा' के तीसरे अध्याय में काव्य संबंधी एक मिथक दिया है कि जब पुत्र प्राप्ति की इच्छा से सरस्वती ने हिमालय पर तपस्या की तो ब्रह्मा ने प्रसन्न हो कर उसके लिए एक पुत्र की रचना की जिसका नाम था- काव्यपुरुष. काव्यपुरुष ने जन्म लेती ही माता सरस्वती की वंदना छंद वाणी में यों की- हे माता!में तेरा पुत्र काव्यपुरुष तेरी चरण वंदना करता हूँ जिसके द्वारा समूचा वाङ्मय अर्थरूप में परिवर्तित हो जाता है..."

ऋग्वेद तथा अन्य पौराणिक वैदिक ग्रंथों में दिये सरस्वती नदी के सन्दर्भों के आधार पर कई भू-विज्ञानी मानते हैं कि हरियाणा से राजस्थान होकर बहने वाली मौजूदा सूखी हुई घग्घर-हकरा नदी प्राचीन वैदिक सरस्वती नदी की एक मुख्य सहायक नदी थी, जो ५०००-३००० ईसा पूर्व पूरे प्रवाह से बहती थी। उस समय सतलुज तथा यमुना की कुछ धाराएं सरस्वती नदी में आ कर मिलती थीं. इसके अतिरिक्त दो अन्य लुप्त हुई नदियाँ दृष्टावदी और हिरण्यवती भी सरस्वती की सहायक नदियाँ थीं ,लगभग १९०० ईसा पूर्व तक भूगर्भी बदलाव की वजह से यमुना, सतलुज ने अपना रास्ता बदल दिया तथा दृष्टावदी नदी के २६०० ईसा पूर्व सूख जाने के कारण सरस्वती नदी भी लुप्त हो गयी। ऋग्वेद में सरस्वती नदी को नदीतमा की उपाधि दी गयी है।वैदिक सभ्यता में सरस्वती ही सबसे बड़ी और मुख्य नदी थी। इसरो द्वारा किये गये शोध से पता चला है कि आज भी यह नदी हरियाणा, पंजाब और राजस्थान से होती हुई भूमिगत रूप में प्रवाहमान है।

महाभारत में मिले वर्णन के अनुसार सरस्वती नदी हरियाणा में यमुनानगर से थोड़ा ऊपर और शिवालिक पहाड़ियों से थोड़ा सा नीचे आदि बद्री (बदरी(?) नामक स्थान से निकलती थी। आज भी लोग इस स्थान को तीर्थस्थल के रूप में मानते हैं और वहां जाते हैं। किन्तु आज आदि बद्री नामक स्थान से बहने वाली नदी बहुत दूर तक नहीं जाती एक पतली धारा की तरह जगह-जगह दिखाई देने वाली इस नदी को ही लोग सरस्वती कह देते हैं। वैदिक और महाभारत कालीन वर्णन के अनुसार इसी नदी के किनारे ब्रह्मावर्त था, कुरुक्षेत्र था, लेकिन आज वहां जलाशय हैं। जब नदी सूखती है तो जहां-जहां पानी गहरा होता है, वहां-वहां तालाब या झीलें रह जाती हैं और ये तालाब और झीलें अर्ध्दचन्द्राकार शक्ल में पायी जाती हैं। आज भी कुरुक्षेत्र में ब्रह्मसरोवर या पेहवा में इस प्रकार के अर्ध्दचन्द्राकार सरोवर देखने को मिलते हैं, लेकिन ये भी सूख गए हैं। लेकिन ये सरोवर प्रमाण हैं कि उस स्थान पर कभी कोई विशाल नदी बहती रही थी और उसके सूखने के बाद वहां विशाल झीलें बन गयीं। भारतीय पुरातत्व परिषद् के अनुसार सरस्वती का उद्गम उत्तरांचल में रूपण नाम के हिमनद (ग्लेशियर) से होता था। रूपण ग्लेशियर को अब सरस्वती ग्लेशियर भी कहा जाने लगा है। नैतवार में आकर यह हिमनद जल में परिवर्तित हो जाता था, फिर जलधार के रूप में आदि बद्री तक सरस्वती बहकर आती थी और आगे चली जाती थी।


वैज्ञानिक और भूगर्भीय खोजों से पता चला है कि किसी समय इस क्षेत्र में भीषण भूकम्प आए, जिसके कारण जमीन के नीचे के पहाड़ ऊपर उठ गए और सरस्वती नदी का जल पीछे की ओर चला गया। वैदिक काल में एक और नदी दृषद्वती का वर्णन भी आता हैं। यह सरस्वती नदी की सहायक नदी थी। यह भी हरियाणा से हो कर बहती थी। कालांतर में जब भीषण भूकम्प आए और हरियाणा तथा राजस्थान की धरती के नीचे पहाड़ ऊपर उठे, तो नदियों के बहाव की दिशा बदल गई। दृषद्वती नदी, जो सरस्वती नदी की सहायक नदी थी, उत्तर और पूर्व की ओर बहने लगी। इसी दृषद्वती को अब यमुना कहा जाता है, इसका इतिहास 4,000 वर्ष पूर्व माना जाता है। यमुना पहले चम्बल की सहायक नदी थी। बहुत बाद में यह इलाहाबाद में गंगा से जाकर मिली। यही वह काल था जब सरस्वती का जल भी यमुना में मिल गया। ऋग्वेद काल में सरस्वती समुद्र में गिरती थी। जैसा ऊपर भी कहा जा चुका है, प्रयाग में सरस्वती कभी नहीं पहुंची। भूचाल आने के कारण जब जमीन ऊपर उठी तो सरस्वती का पानी यमुना में गिर गया। इसलिए यमुना में यमुना के साथ सरस्वती का जल भी प्रवाहित होने लगा। सिर्फ इसीलिए प्रयाग में तीन नदियों का संगम माना गया जबकि भूगर्भीय यथार्थ में वहां तीन नदियों का संगम नहीं है। वहां केवल दो नदियां हैं। सरस्वती कभी भी इलाहाबाद तक नहीं पहुंची।


सिद्धपुर (गुजरात) सरस्वती नदी के तट पर बसा हुआ है। पास ही बिंदुसर नामक सरोवर है, जो महाभारत का 'विनशन' हो सकता है। यह सरस्वती मुख्य सरस्वती ही की धारा जान पड़ती है। यह कच्छ में गिरती है, किंतु मार्ग में कई स्थानों पर लुप्त हो जाती है।'सरस्वती' का अर्थ है- सरोवरों वाली नदी, जो इसके छोड़े हुए सरोवरों से सिद्ध होता है।
श्रीमद्भागवत "श्रीमद् भागवत (5,19,18)" में यमुना तथा दृषद्वती के साथ सरस्वती का उल्लेख है।"मंदाकिनीयमुनासरस्वतीदृषद्वदी गोमतीसरयु" "मेघदूत पूर्वमेघ" में कालिदास ने सरस्वती का ब्रह्मावर्त के अंतर्गत वर्णन किया है । "कृत्वा तासामभिगममपां सौम्य सारस्वतीनामन्त:शुद्धस्त्वमपि भविता वर्णमात्रेण कृष्ण:" सरस्वती का नाम कालांतर में इतना प्रसिद्ध हुआ कि भारत की अनेक नदियों को इसी के नाम पर 'सरस्वती' कहा जाने लगा। पारसियों के धर्मग्रंथ अवेस्ता में भी सरस्वती का नाम हरहवती मिलता है।

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Tuesday, October 25, 2011

दीपावली पे धोखा


दीपावली , जिसका इंतजार हर भारतीय को रहता हैं. ढेरो उपहार, मिठाइयाँ , पटाखे घर कि साफ- सफाई, घर कि सजावट, और बहुत कुछ.

लेकिन अफ़सोस तब होता हैं, जब मिलावटी सामानों के पकडे जाने कि खबर हम तक पहुँचती हैं. लेकिन आश्चर्य भी , कि सिर्फ त्योहारों पर ही क्यों. क्या बाकि समय सही सामान मिलता हैं. दीपावली आते ही शहरों के साथ -साथ गाँवो में भी दुकानों पे रौनक सी छा जाती हैं. जनता दीपावली कि तैयारी में मस्त तो मिलावट खोर मुनाफा खोरी में व्यस्त . इसमें भी लगता हैं कि किसी विदेशी ताकतों का हाथ हैं या हमारा पडोशी देश हमारे खाने -पीने कि चीजो में मिलावट कर रहा हैं.

मैं तो आप सभी से निवेदन करता हूँ कि ईस दीपावली पे दुकान से मिठाई ना ख़रीदे . और बीमार होने से बचे और अपने रिश्तेदारों को भी बचाए . मिठाई कि जगह फल , मेवे या बहुत मीठा खाने का मुड हो तो खजूर खांए और जो सेहत के लिए सेहतमंद भी साबित होगा.

देशी घी का दीपक जलाना बंद करदे (बाजार से ख़रीदे गये ). क्योंकि जिस देशी घी का इस्तेमाल आप अपने पूजा घर में कर रहे हैं, उसको तैयार करते समय उसमे जानवरों कि चर्बी का इस्तेमाल किया गया हैं. गाजीपुर (दिल्ली) के बुचड खाने में काम करने वाले मेरे एक मित्र ने बताया कि जानवरों कि चर्बी का सबसे ज्यादा इस्तेमाल शुद्ध देशी को बनाने में किया जाता हैं.

मैंने तो उस दिन से अपने पूजा घर में देशी घी का इस्तेमाल बंद कर दिया हैं . अब में कच्ची घानी के सरसों के तेल का इस्तेमाल दीपक जलाने में करता हूँ.

आप भी करे ... और दुश्मन कि चाल से बचे.