Monday, April 26, 2010
डॉ अनवर जमाल- अब बहुत हो गया.
Sunday, April 25, 2010
ना ही कोई हिन्दू देवी -देवता गलत हो सकता है और ना ही पैगम्बर मुहम्मद साहेब गलत हो सकते है और ना ही ईसा मशीह
Sunday, April 18, 2010
डॉ अनवर बड़ा या कुरान.
समाज के अन्दर फैली हुई बुराइयों को दूर करने के लिए ही लोगो ने धर्म का सहारा लिया । लेकिन समाज, समय के साथ बदलता रहा है। और जब समाज बदल सकता है तो धार्मिक कर्मकांड क्यों नहीं।
धर्म से समाज का जन्म कभी भी नहीं हुआ है, हाँ समाज से ही धर्म का जन्म हुआ है। आज से हजारो साल पहले की परम्परा को निभाना जरुरी है और जरुरी नहीं भी , देखना ये है की समाज को जरुरत किस चीज की है।
फिरदौस जी आपका कदम सराहनीय है । हम सब आपके साथ हैं। सतीश जी आपकी चिंता नाहक ही आपको परेशान कर रही है, अब आप और मैं बहुसंख्यक नहीं रहे। क्योंकि हमारे बीच से लोग निकलकर हमारा ही विरोध करते हैं।
ये कंही अरब से इम्पोर्ट तो हुए नहीं हैं। इनकी सारी पुश्ते राम-राम करती रही। मगर क्या करे इनके बाप दादा तो ठहरे अनपढ़ गंवार, अपने पुरे खानदान मैं तो येही तीनों पढ़े लिखे निकले, और पढ़े भी तो क्या गीता और ved जिसके खानदान मैं कभी किसी ने संस्कृत न बोला हो वो आज संस्कृत के श्लोको का हिंदी मैं अनुवाद करके लोगो को बता रहा है।
कुरान तो ये पढ़ नहीं सकते क्योंकि इन्हें अरबी पढनी नहीं आती, हाँ अरब के लोग कैसे जीते हैं वो जरुर इन्हें अच्छी तरह से आता है।
अनवर जमाल तो कभी हरिद्वार आयेंगे नहीं , सलीम खान साहेब को एक बार फ़ोन किया मैंने तो उस दिन के बाद उनका फ़ोन ही बंद जा रहा है। अब एक दिन इस कैरंवी का हालचाल पता करता हूँ की ये जनाब कितने पानी मैं हैं.
Wednesday, April 14, 2010
अल्लाह ने जन्नत मैं भी पूरा इंतजाम कर रखा है। शबाब और शराब दोनों मिलेगी.
अल्लाह ने जन्नत मैं भी पूरा इंतजाम कर रखा है। मुझे तो सिर्फ हंसी आ रही । ये लेख फिरदौश जी के ब्लॉग से उठाया है मैंने, फिरदौश जी ke ब्लॉग पर कुछ मुसलमान ब्लोगेर बंधू लोगो ने इस बात को स्वीकार है :-
"…जमात में तो यह बताया गया होगा की गैर-मुस्लिम को मुसलमान बनाने में दस हज का सवाब मिलता है…"...यह बात "बहुत कुछ" बयान करती है… (मंसूबे भी, नीयत भी…)
हम उन्हें 'कलमा' पढ़ा लेंगे... इससे हमें दस हज का सवाब मिलेगा... और मरने के बाद जन्नत...जन्नत में 72 हूरें मिलेंगी, जन्नती शराब मिलेगी...
मैं तो सिर्फ हसूंगा ........................ हा ! हा ! हा ! , ही ! ही ! ही ! , हु हु हु , हे हे हे।
जो कहना hai आप लोग कहिये................................................
Tuesday, April 13, 2010
अनपढ़ मुसलमान अभी भी गुमराह हुए पड़े है.
Saturday, April 10, 2010
सलीम साहेब पहले तो आप खुद एक अच्छा मुसलमान बन कर के दिखाइए
तुम्हे गाय के मूत्र से इतनी दिक्कत होती है तो क्यों खाते हो आयुर्वेदिक और इंग्लिश दवाइयों को। क्या पता किसी और जानवर का मूत्र या हड्डी मिली हो किसी दवा मैं, और क्या पता वो जानवर तुम्हारे लिए हराम हो। गाय का मूत्र मिला प्रसाद खाने मैं आपको इतनी तकलीफ हो रही है , मगर जानवरों के मल-मूत्र की थैली मसाले के साथ पका कर के खाने मैं तो बड़ा ही आनंद आता होगा।
अफगानिस्तान मैं सारे तालिबानियों से पूरी अफगान जनता परेशान हैं। कश्मीर का आम आदमी पाकिस्तानी मुस्लिम आतंकवादियो से परेशान है। वो पाकिस्तान जिसने अपने देश मैं तालिबानियों के कहने पर इशलामिक कानून लागु किया , खुद ही अपने बुने जाल मैं फंस गया है। क्या वो लोग कुरान को नहीं मानते है। अगर नहीं मानते हैं तो फिर अपने आप को मुसलमान क्यों कहते हैं । और अगर अपने आप को मुसलमान मानते हैं तो क्या कुरान उन्हें कत्ले आम की इजाजत देता है। क्यों पाकिस्तान और अफगानिस्तान मैं मुस्लिम महिलावो की स्थिति दिन प्रतिदिन बिगडती जा रही है। क्या वंहा पर आप जैसा कोई कुरान का विद्वान नहीं है क्या।
मेरे प्रिय सलीम खान साहेब मेरे द्वारा कहे गए किसी भी शब्द को दिल पर मत लीजियेगा हाँ दिमाग पर जरुर लीजियेगा।
अरे प्यार करना तो कोई हिन्दुस्तानियों से सीखे । हम तो इंसानों के साथ -साथ जानवरों से भी प्यार करते हैं। चिड़ियों, पेड़ पौधों से प्यार करते हैं । नदियों , नालो, तालाबो और कुंवो से प्यार करते हैं। मछलियों से प्यार करते हैं। अपने देश की मिटटी से प्यार करते हैं , अपने देश के पर्वतों से प्यार करते हैं। अपने उन पूर्वजो से प्यार करते हैं जिन्होंने हमें यह प्यार की राह दिखाई है। हम तो हर उस जीव और निर्जीव वस्तु से प्यार करते हैं जो इस संसार मैं कंही ना कंही विराजमान है। सच्चा प्यार ही सच्ची पूजा है, श्रीमान सलीम खान साहेब। छोडिये ये वेद-कुरान और हिन्दू मुष्लिम का राग।
आते ही चली जाती हो तुम -क्यों ? पार्ट- 2
आते ही चली जाती हो तुम -क्यों ?
आते ही तुम जाने की बातें करने लगती हो तुम, आखिर मैंने ऐसा क्या गुनाह कर दिया है तुम्हारे साथ । कभी तो बोला करो कुछ । तुम्हे तो अच्छी तरह से पता है की तुम जब आती हो मेरे घर में तो सब कितना खुश हो जाते हैं , चारो तरफ़ खुसी की लहर दौड़ जाती है, मेरे पड़ोसी भी कितने खुश हो जाते हैं की चलो दुबारा आई तो सही।
मेरे चहरे पर रौनक आ जाती है तुम्हे देख कर, मेरे घर का कोना कोना खिल उठता है, तुम्हारी आहट सुनकर। कितना आनंद आता है उस समय ये तो बस मुझे या मेरे बच्चो को पता है।
लेकिन तुम हो की रूकती ही नही, ना तो तुम्हारे आने का समय और ना ही तुम्हारे जाने का समय , तुम्हे क्या पता की तुम्हारे जाने के बाद मेरे बच्चे पुरी रात सो नही पाते और बच्चे ही क्यों में भी तो नही सो पता और सो भी कैसे जायें । तुम जो नही होती। मेरी बीबी भी पुरी रात जग करके तुम्हारा इंतजार करती रहती है की तुम कब आओगी और हम सब कब अपना कूलर और पंखा चला कर के सोयें। और रात ही क्या दिन में भी तो तुम्हारी पुरी जरुरत होती है। तुम्हारे बिना तो ठंडा पानी भी नही मिलता पीने को।
कृपया मेरे पुरे परिवार पर तरस खावो तुम और अगर २४ घंटा नही रह सकती तो कम से कम १५-२० घंटा तो रुको, लेकिन तुम हो की ८-१० घंटे में ही निकल लेती हो। तुम्हारे घर अगर जा करके पता करे तो कोई भी आदमी सही जबाब नही देता । तुम्हारे घर वालो के पास तो रता - रटाया बहाना होता की आज फलां मोहल्ले में तार टूट गई है या फलां मोहल्ले का ट्रांस्फोर्मेर ख़राब हो गया है।
हे बिजुली रानी कृपया मेरे ऊपर तरस खाएं और मेरे घर आयें तो कुछ समय मेरे बच्चो के साथ जरुर बिताएं।
Thursday, April 8, 2010
आखिर कब तक मुसलमान अपनी पहचान बताता फिरेगा।
डॉ जाकिर नाइक जैसे कुछ आंतकवादी ( होने वाले ) कहते है कि, ये मुसलमानों तुम अपने सर पे टोपी लगावो और लम्बी दाढ़ी रखो जिससे कि अगर कोई तुम्हे देखे तो ये कहे कि देखो वो मुसलमान आ रहा है।
क्या मिला मुसलमानों को मुसलमान बन कर के। अपनी पहचान और छुपानी पड़ती है।
आखिर क्या जरुरत है अपने - अपने धर्म का प्रदर्शन करने कि। कुछ लोग इसाई बने और कुछ लोग मुसलमान , लेकिन उनका क्या जो नास्तिक ही रह गए। क्या बिगाड़ लिया उनका किसी धर्म ने।
मेरे समझ से वो नास्तिक ही हैं जो सबसे मजे कि जिंदगी जी रहे हैं।
मुद्दा ये है कि आखिर कब तक मुसलमान अपनी पहचान बताता फिरेगा। कब तक मुसलमान अपने आपको सच्चा या कच्चा मुसलमान कहता फिरेगा।
सबसे बड़ा मुसलमानों का दुश्मन भी मुसलमान ही है। (शिया और सुन्नी )