Saturday, April 9, 2011

हमने भी देखा हैं गाँधी को- तारकेश्वर गिरी.


दादा जी बचपन में
सुनाते थे,
अपने बारे में बताते थे,

गाँधी जी के किस्से
नमक कि कहानी
दादा जी कि जुबानी.

कहते थे हम सबसे,
गाँधी जी को
करीब से देखा हैं.

समय बदल गया,
गाँधी जी के
पुतले के साथ .

अब तो मेरे बच्चे भी
कहेंगे कि
हमने भी देखा हैं गाँधी को

जंतर -मंतर पे,
भूखे -लेटे हुए
अन्ना हजारे को .

8 comments:

Anonymous said...

जिस देश में जवान सोते है वह बुजुर्गो को जगाना ही पड़ता है
हा मै अब गांधी जी के प्रभाव के बारे में सोच पा रहा है

Nikhil said...

गांधी बनना इतना आसाना भी नही.....आलोक जी ने सही कहा....जब युवा सोएं तो बूढ़ों को जागना पड़ता है

DR. ANWER JAMAL said...

भाई साहब !छोटी पोस्ट, काम की पोस्ट .

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

हम भी देख रहे हैं। सही सोच, सार्थक दृष्टि।
---------
प्रेम रस की तलाश में...।
….कौन ज्‍यादा खतरनाक है ?

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

हम भी देख रहे हैं। सही सोच, सार्थक दृष्टि।
---------
प्रेम रस की तलाश में...।
….कौन ज्‍यादा खतरनाक है ?

Harshvardhan said...

bahut khoob

Pushpendra Singh "Pushp" said...

बहुत अच्छी पोस्ट है भाई
बधाई......

Satish Saxena said...

बहुत खूब, शुभकामनायें आपको