Thursday, December 2, 2010

जाओगी कंहा ये जानेमन तुम हमें छोड़ कर।-तारकेश्वर गिरी.

जावो कि कंहा ये जानेमन तुम हमें छोड़ कर।
हर साँस तो हमारी हैं।

दिल का धडकना बंद हो जाय तो क्या
सांसे रुक जाय तो क्या
जावो कि कंहा ये जानेमन तुम हमें छोड़ कर।

मन तो जाने या न जाने किसी को ये जानेमन,
जान तो हर समय साथ देती हैं मन का।

ये तो जिन्दगी हैं इस जंहा कि जो प्यार सिखाती हैं,
जावो कि कंहा ये जानेमन तुम हमें छोड़ कर।
हर साँस तो हमारी हैं।

12 comments:

PAWAN VIJAY said...

जावो कि कंहा ये जानेमन तुम हमें छोड़ कर।
हर साँस तो हमारी हैं।
bahut khoob

शेखचिल्ली का बाप said...

मेरा गधा खो गया है
किसी रेंकता मिले तो मोबाईल नं. पर बताना
0000000001

शेखचिल्ली का बाप said...

आप भी ताजगी महसूस कीजिएगा मेरी ताज़ा कहानी पढ़कर
'रचना का अलबेला अरमान'
इस शीर्षक से ख़ादिम ने दूसरी बार कुछ लिखने की कोशिश की है ।
यह रचना अलबेला खतरीय जी की प्रतियोगिता में शामिल होने की ग़र्ज़ से लिखी गई है ।
जब यह आपके सामने आए तो मेहरबानी करके इसे निन्दा या आलोचना का नाम न दिया जाए ।
वर्ना मेरे शेख़चिल्ली को बहुत सदमा होगा ।
उस बेचारे को पहले ही अपने अंडे फूटने का गम है ।
मेरी कहानी में मेरा गधा भी है बिना गधी के । कहानी के अंत में गधा वह करने के लिए भागता है जो कि एक बिल्कुल अलबेला विचार है , पर किसी की मुराद भी है।
रचना अनोखी और अछूती है । इसमें अलबेला को बिना किसी नक़ाब के आप सभी को दिखाया जाएगा । उनकी महानता और समझदारी को यह कहानी उजागर करती है ।
रचना में ख़ुश्बू है , महक है तो अलबेला जी भी हरफ़न मौला हैं ।
कामेडी और संस्पेंस के साथ ब्लाग संसार की गुदगुदाती सच्चाईयां ,
बहुत जल्द होंगी आपके सामने .

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

good going

Dr. Jameel Ahmad said...

क्या ख़ूब कहने की अच्छी कोशिश है .

sahil khan said...

nice post

कडुवासच said...

... bahut khoob !!!

S.M.Masoom said...

Shayree bhee shuroo ker dee bhai..

M VERMA said...

ये तो जिन्दगी हैं इस जंहा कि जो प्यार सिखाती हैं,
बहुत खूब

अरुण चन्द्र रॉय said...

अच्छी कोशिश है

KK Yadav said...

खूबसूरत रचना...बधाई !!

palash said...

बहुत अच्छी गजल तारक जी ।

आपकी स्पष्ट्पादिता अच्छी लगी । काश जमाल जी भी आपसे थोडा सीख लेते