काशिफ आरिफ जी क्या उलटी पुलटी बातें लिखते रहते है आप। इसका मतलब तो जो गैर मुष्लिम लोग अपने मुसलमान मित्रो के पास जाकर के ईदुल अज़हा मैं शरीक होते हैं वो भिखारी होते है।
http://qur-aninhindi.blogspot.com/2009/11/matters-compulsory-works-of-bakrid-eid.html
इसके अलावा बहुत से मज़ह्बों के पेशेवर भिखारी घर घर पहुंच कर गोश्त का अच्छा खासा ज़खीरा कर लेते हैं। इससे होता यह है कि कुर्बानी के गोश्त का एक बडा हिस्सा बेकार जगहों पर इस्तेमाल हो जाता है जिसकी वजह से वह गरीब और ज़रुरतमंद महरुम रह जाते हैं जो मांगने में शर्म महसुस करते हैं। आम मुसलमानों तक गोश्त पंहुचाने की ज़हमत से यह भिखारी बचा लेते हैं और अगर कुर्बानी करने वाले को गरीबों से हमदर्दी और मुह्ब्बत का जज़्बा ना हो तो बात और तकलीफ़ देने वाली हो जाती हैं। ईदुल अज़हा में छुपा हुऐ कुर्बानी के ज़ज़्बे का मकसद तो यह है कि इसका फ़ायदा गरीबों तक पंहुचें, उनको अपनी खुशी में शामिल करने का खास इंन्तिज़ाम किया जायें, ताकि उस एक दिन तो कम से कम उनको अपने नज़र अंदाज़ किये जाने का एहसास न हो और वह कुर्बानी के गोश्त के इन्तिज़ार में दाल चावल खाने पर मजबूर न हों।
Friday, November 27, 2009
Tuesday, November 10, 2009
पुलिश कमिशनर -डडवाल का बेटा पब मैं यानि की बीअर बार मैं.
पुलिश कमिशनर -डडवाल का बेटा पब मैं यानि की बीअर बार मैं,। भाई क्यों ना हो, जब मनु शर्मा जी जेल से पब मैं जा सकते हैं, तो छोटे डडवाल क्यों नही। और मनु शर्मा जी तो महान हैं, वो बेचारे तो मुझे लगता हैं की अपनी पुरानी यादें ताजा करने चले गए थे, आखिर पब से ही तो जेल गए थे न। और वैसे भी कोर्ट ने सबको टाइट कर के रखा हुआ है, तो इस लिए जेल मैं ये पब वाली सुबिधा उपलब्ध तो है नही, सोचा जल्दी -जल्दी पी कर के निकल ले, मगर उन्हें ये कंहा पता था की छोटे डडवाल साहेब भी इधर ही विराजमान हैं, और तो और मनु शर्मा जी आखिर पहचाने कैसे की कौन सा आदमी कौन है, बस फिर क्या था यंही मार खा गए।
Sunday, November 8, 2009
इरान और आर्यन
कितना मिलता जुलता नाम है दोनों , आर्यन कहें या कालांतर मैं बिगड़ते हुए शब्दों में इरान कहें। बात एक ही है, सात से आठ सौ साल पहले इरान के लोग ने इस्लाम धर्म को ग्रहण किया लेकिन कई सो सालो तक वैदिक परम्परावों को लोग निभाते रहे हैं, मसलन अग्नि को शाक्षी मन कर शादी करना देवी देवतावों की पूजा करना आदि । इरान की पुरानी सभ्यता को इतिहाश्कारों ने इंडो-यूरोपियन सभ्यता का नाम दिया।
पारसी धार्मिक साहित्य 'जेंदावेस्ता' (संस्कृत : छंद-व्यवस्था) (Zenda-vesta) के प्राचीन 'यष्ट' भाग ऋग्वैदिक मंत्रों की छाया समान हैं। मूल फारसी और संस्कृत मंत्रों को, उच्चारण और लिपि की भिन्नता दुर्लक्ष्य कर, देखा जा सकता है। फारसी और संस्कृत भाषाएँ एक ही कुटुंब की हैं। उच्चारण तथा अपूर्ण (अरबी) लिपि अपनाने से भाष्य में अंतर आया। इतिहास बताता है कि मूल 'जेंदावेस्ता' लोप होने पर उनके पैगंबर 'जरथ्रुष्ट्' (Zorathrusthra) ने उसका पुनर्निमाण अपने उपदेशों को मिलाकर किया। वह भी जल गया और अब कुछ अंश नई मिलावट लिये शेष हैं (यहां देखें)।(मेरी कलम से , वीरेन्द्र भाईसाहब की पुस्तकें) ये लाइन मैंने श्रीमान वीरेंदर जी के ब्लॉग से लिया है।
पारसी धार्मिक साहित्य 'जेंदावेस्ता' (संस्कृत : छंद-व्यवस्था) (Zenda-vesta) के प्राचीन 'यष्ट' भाग ऋग्वैदिक मंत्रों की छाया समान हैं। मूल फारसी और संस्कृत मंत्रों को, उच्चारण और लिपि की भिन्नता दुर्लक्ष्य कर, देखा जा सकता है। फारसी और संस्कृत भाषाएँ एक ही कुटुंब की हैं। उच्चारण तथा अपूर्ण (अरबी) लिपि अपनाने से भाष्य में अंतर आया। इतिहास बताता है कि मूल 'जेंदावेस्ता' लोप होने पर उनके पैगंबर 'जरथ्रुष्ट्' (Zorathrusthra) ने उसका पुनर्निमाण अपने उपदेशों को मिलाकर किया। वह भी जल गया और अब कुछ अंश नई मिलावट लिये शेष हैं (यहां देखें)।(मेरी कलम से , वीरेन्द्र भाईसाहब की पुस्तकें) ये लाइन मैंने श्रीमान वीरेंदर जी के ब्लॉग से लिया है।
Saturday, November 7, 2009
हर्ष वर्धन और उनकी दिल्ली
हर्ष वर्धन और उनकी दिल्ली , कैसे तुलना कर सकते हैं आज की तारीख मैं आप, है कोई तरीका शायद नही और होगा भी नही , तब की बात और थी और आज कल की तो पूछिये ही मत । जिस समय (११ वीं सदी ) महाराज हर्ष वर्धन जी ने दिल्ली की नीवं रखी हो गी ये तो बिल्कुल बी नही सोचा हो गा की मेरी दिल्ली का आज (२१ वीं सदी ) मैं ये हाल हो गा , आज के लोग दिल्ली को किस तरह से लूट रहे हैं ये देख कर के कितनी दुखी होगी महाराज हर्ष वर्धन की आत्मा।
दिल्ली तो पुरे १० बार लुटी है आज और लुट रही है तो क्या नै बात है
अगली बार
दिल्ली तो पुरे १० बार लुटी है आज और लुट रही है तो क्या नै बात है
अगली बार
Friday, November 6, 2009
वो चिल्ला रहा था -लोग उसके टुकड़े -टुकड़े कर रहे थे -मैं सिर्फ़ देखता रह गया.
वो चिल्ला रहा था, जोर - जोर से रो रहा था, लोग उसके टुकड़े -टुकड़े कर रहे थे और मैं सड़क के दुसरे किनारे पर खड़ा हो कर के देखता ही रह गया। मैं अकेला कुछ कर भी तो नही सकता था , वो तो इतना डरा हुआ था की उसका सारा खून भी सूख चुका था, वो तो बस इस उम्मीद में था, की कोई आ कर के उसे बचा ले मगर उसकी सुनता कौन लोग तो उसे जड़ से काटने मैं ही ब्यस्त . सरकारी आदेश जो मिला था उन लोगो को सड़क के किनारे सालों से खड़े उन पुराने पेडों को ओलंपिक खेल की भेंट में चढाने के लिए/ सरकार दिल्ली को सुंदर बनाने में लगी हुई है, हर तरफ़ निर्माण का काम बड़ी तेजी से चालू है, चाहे पुल को बनाने में या सड़क को चौडा करने में , इस समय दिल्ली सरकार पुरी तरह से रोड पर ब्यस्त है, सरकार विकास के सामने इंतनी अंधी हो चुकी है, की उसे पर्यावरण की कोई चिंता ही नही है। जिनके स्वागत के लिए इतनी तैयारी सरकार कर रही है , अगर उनको पता चल जाए तो शायद वो लोग दिल्ली आना ही भूल जायें। कुछ पेड़ तो जिनकी उम्र ७० को पार कर गई थी उनको भी कुछ तो नए सबको काट दिया गया, दिल्ली में इस समय अगर सड़क पर कुछ है तो वो सिर्फ़ धुल और मिटटी। ये कैसा विकास हो रहा है दिल्ली का ,
अगर विकास को सही दिशा में रख कर के निर्माण कार्य किए जायें कुछ पेडों को जरुर बचाया जा सकता है।
आपकी की क्या राय है, जरुर बतायें।
अगर विकास को सही दिशा में रख कर के निर्माण कार्य किए जायें कुछ पेडों को जरुर बचाया जा सकता है।
आपकी की क्या राय है, जरुर बतायें।
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