कितना मिलता जुलता नाम है दोनों , आर्यन कहें या कालांतर मैं बिगड़ते हुए शब्दों में इरान कहें। बात एक ही है, सात से आठ सौ साल पहले इरान के लोग ने इस्लाम धर्म को ग्रहण किया लेकिन कई सो सालो तक वैदिक परम्परावों को लोग निभाते रहे हैं, मसलन अग्नि को शाक्षी मन कर शादी करना देवी देवतावों की पूजा करना आदि । इरान की पुरानी सभ्यता को इतिहाश्कारों ने इंडो-यूरोपियन सभ्यता का नाम दिया।
पारसी धार्मिक साहित्य 'जेंदावेस्ता' (संस्कृत : छंद-व्यवस्था) (Zenda-vesta) के प्राचीन 'यष्ट' भाग ऋग्वैदिक मंत्रों की छाया समान हैं। मूल फारसी और संस्कृत मंत्रों को, उच्चारण और लिपि की भिन्नता दुर्लक्ष्य कर, देखा जा सकता है। फारसी और संस्कृत भाषाएँ एक ही कुटुंब की हैं। उच्चारण तथा अपूर्ण (अरबी) लिपि अपनाने से भाष्य में अंतर आया। इतिहास बताता है कि मूल 'जेंदावेस्ता' लोप होने पर उनके पैगंबर 'जरथ्रुष्ट्' (Zorathrusthra) ने उसका पुनर्निमाण अपने उपदेशों को मिलाकर किया। वह भी जल गया और अब कुछ अंश नई मिलावट लिये शेष हैं (यहां देखें)।(मेरी कलम से , वीरेन्द्र भाईसाहब की पुस्तकें) ये लाइन मैंने श्रीमान वीरेंदर जी के ब्लॉग से लिया है।
पारसी धार्मिक साहित्य 'जेंदावेस्ता' (संस्कृत : छंद-व्यवस्था) (Zenda-vesta) के प्राचीन 'यष्ट' भाग ऋग्वैदिक मंत्रों की छाया समान हैं। मूल फारसी और संस्कृत मंत्रों को, उच्चारण और लिपि की भिन्नता दुर्लक्ष्य कर, देखा जा सकता है। फारसी और संस्कृत भाषाएँ एक ही कुटुंब की हैं। उच्चारण तथा अपूर्ण (अरबी) लिपि अपनाने से भाष्य में अंतर आया। इतिहास बताता है कि मूल 'जेंदावेस्ता' लोप होने पर उनके पैगंबर 'जरथ्रुष्ट्' (Zorathrusthra) ने उसका पुनर्निमाण अपने उपदेशों को मिलाकर किया। वह भी जल गया और अब कुछ अंश नई मिलावट लिये शेष हैं (यहां देखें)।(मेरी कलम से , वीरेन्द्र भाईसाहब की पुस्तकें) ये लाइन मैंने श्रीमान वीरेंदर जी के ब्लॉग से लिया है।
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