Pages

Tuesday, November 30, 2010

बलात्कारी तांत्रिक बाबा के कारनामे.: ----- तारकेश्वर गिरी.

लो जी अभी एक बवाल ख़त्म हुआ नहीं कि एक पार्टी और आ गई बलात्कारियों कि सूचि में. और वो भी धर्म के नाम पर.

इनका नाम हैं बलात्कारी जावेद नदीम . अभी -अभी दूर के दर्शन से पता चला हैं . एक तांत्रिक बाबा ने सबसे पहले एक औरत को अपने चुंगल में तंत्र-विद्या का भय दिखा कर के फंसाया. उसके बाद तांत्रिक ने औरत कि बच्चियों के साथ यौन सम्बन्ध बनाया और वो भी पुरे चार साल से.

देर से ही सही एक लड़की कि हिम्मत जागी तो उसने ये दर्दनाक वाकया समाज के सामने रखा.

अब शुरू होती हैं बहस. कि गलत कौन हैं. में खुद इस वाकये पर येही कहूँगा कि ऐसे हरामी तांत्रिक को जनता के हवाले कर देना चाहिए. लेकिन गलती इसमें समाज कि भी हैं.

अगर आज ये समाज पढ़ा लिखा होता तो शायद किसी तांत्रिक के चक्कर में पड करके अपनी इज्जत नहीं गंवाता.

और मैं आप सबसे भी येही अनुरोध करता हूँ कि किसी भी तांत्रिक के चक्कर मैं ना पड़े.

Saturday, November 27, 2010

बलात्कारी कि सजा क्या होनी चाहिए. -तारकेश्वर गिरी.

आखिर बलात्कारी कि सजा क्या होनी चाहिए , क्या उसे इस्लामिक कानून कि तरह फांसी पर लटका देना चाहिए या, आजीवन कारावास दे देनी चाहिए या उसके अंगो को काट देना चाहिए ।

आइये और बताइए कि समाज को बलात्कार मुक्त कैसे बनाया जा सकता हैं।


आपकी राय क्या हैं.

Friday, November 26, 2010

बलात्कार का असली दोषी कौन. - तारकेश्वर गिरी.

परसों शाम को एक लड़की के साथ फिर वोही हुआ , जो नहीं होना चाहिए. हर तरफ उसकी चर्चा चल रही हैं. मीडिया लगातार दिल्ली पुलिस कि हवा निकाले जा रही हैं, और सारा का सारा दोष दिल्ली पुलिस पर मढ़े जा रही हैं.


क्या सचमुच इस घटना कि जिम्मेदार दिल्ली पुलिस ही हैं ? हाँ, लेकिन शायद पूरी तरह से नहीं. कंही ना कंही हमारा समाज भी दोषी हैं, और मेरे समझ से दिल्ली पुलिस से ज्यादा दोषी हैं.


विषय बहुत ही गंभीर हैं, अगर आप या हम चुप रहेंगे तो, कल किसी और के साथ भी इस तरह कि घटना हो सकती हैं, लेकिन करे क्या ?

आज दिल्ली में इस तरह कि घटनाये तो सामने आ जाती हैं, मगर दूर -दराज के गांवो में , छोटे -छोटे कस्बो में, इस तरह कि घटनाये रोज होती हैं, मगर लाज और शर्म कि वजह से एक औरत चुप-चाप शांत हो जाती हैं. समाज का चाहे कोई भी वर्ग हो या समाज का कोई भी धर्म हो , इस से अछूता नहीं हैं.


आज कि आधुनिक भाग -दौड़ कि जिंदगी में महिलावो को देर रात तक काम करना पड़ता हैं, सबसे पहले तो चाहिए कि नियोक्ता इस बात कि गारंटी महिला के परिवार को दे कि महिला को घर से सुरक्षित ले जाने कि और घर तक छोड़ने कि जिम्मेदारी उसकी हैं. दूसरी बात ये कि जिस वाहन से महिलाएं आती -जाती हैं, उसके चालक कि पूरी सुचना पुलिस और नियोक्ता के पास होनी चाहिए.


तीसरी और सबसे महत्त्वपूर्ण बात ये हैं कि हमें अपने-अपने समाज में ये बात लानी चाहिए कि लोग ऐसा करने से बचे.


साथ ही में उन महिला कर्मचारियों से विनम्र निवेदन करता हूँ कि , जिस कैब से वो आ -जा रही हैं उसके ड्राईवर पर और अपने पुरुष सहकर्मी पर ध्यान दे , रोज आने -जाने वाले रास्ते पर ध्यान दे , अगर कुछ भी संदेह लगे तो इसकी सुचना अपने नियोक्ता और पुलिस को तुरंत दे.

Wednesday, November 24, 2010

हाय रे दिल्ली कि ठंडी। -तारकेश्वर गिरी.

अरे बाप रे वो तो भला हो श्रीमती जी का जो सुबह घर से निकलते ही गाड़ी मैं स्वेटर रख दिया था । आज सुबह से ऑफिस में ही रह गया क्योंकि कंही बाहर जाना ही नहीं था। आज तो जुखाम और सर्दी ने भी मेरा बुरा हाल कर रखा हैं, छींक -छींक के भी बुरा हाल हो चूका हैं।

और हो भी क्यों नहीं , खाली जींस कि पैंट और टी शर्ट पहनूंगा तो येही होगा। बाकि शाम को देखते हैं कि क्या दवामिलती हैं.

Sunday, November 21, 2010

मुझे अपना धर्म बदलना हैं, -तारकेश्वर गिरी.

जी सही कह रहा हूँ , और अपने पुरे होशो हवाश में हूँ, घर वालो से भी राय ले चूका हूँ वो सब मेरा साथ देंगे. मैं भी क्या करता , परेशान हो गया हूँ, आखिर हूँ तो इन्सान ही ना. और हाँ अपनी मर्जी और अपनी पसंद से कोई दबाव नहीं..


अब जब धर्म परिवर्तन के लिए तैयार होही गया हूँ तो सबसे पहले सभी धर्मो के बारे में जानकारी भी लेनी चाहिए कि सबसे उत्तम धर्म हैं कौन सा . इस्लाम, इसाई, सिख, जैन, बौध, पारसी या कोई और जो भी सबसे उत्तम हो.


लेकिन आप सबसे मैं मदद चाहता हूँ कि आप लोग बताएँ कि सर्वोतम धर्म कौन सा हैं. और जिसमे निम्नलिखित बुराई भी ना हो.


  1. वो धर्म जिसमे लोग झूठ ना बोलते हों.
  2. वो धर्म जिसमे लोग बेईमान ना हो.
  3. वो धर्म जिसमे लोग सिर्फ इज्जतदार हो.
  4. वो धर्म जिसमे लोग किसी कि हत्या ना करते हो , किसी को अनाथ ना करते हो.
  5. वो धर्म जिसमे कोई चोर या डकैत न हो.
  6. वो धर्म जिसमे कोई बलात्कारी न हो.
  7. वो धर्म जिसमे कोई ठग या घुसखोर न हो.
  8. वो धर्म जिसमे कोई घोटाले बाज न हो.
  9. वो धर्म जिसमे कोई बाहुबली न हो.
  10. वो धर्म जिसमे सिर्फ और सिर्फ इंसानियत हो.

अतः आप सब लोगो से मेरे विनम्र अनुरोध हैं कि कृपया मुझे जल्दी बताएं.


एक बात और , अगर ये सब हर धर्म के लोगो में हो तो फिर फायदा क्या, फिर में अपनी जगह सही हूँ अपने आप को उपरोक्त ९ बिमारियों से दूर रखने कि कोशिश करता रहूँगा. कम से कम ये कह सकूँगा कि मैं एक हिन्दुस्तानी हूँ या एक हिन्दू हूँ. (ध्यान रहे मेरे हिन्दू शब्द के इस्तेमाल का मतलब ये हैं कि, मेरा खुद का मानना हैं कि हिंदुस्तान मैं रहने वाले सभी लोगो को हिन्दू कह सकते हैं.)


और शायद इसके बाद कोई भी अपने धर्म को अच्छा कहने वाला भी नहीं बचेगा. इसलिए मैं सबसे विनती करता हूँ कि सबसे पहले खुद को सुधारिए फिर अपने -अपने समाज को , जिससे कि एक अच्छे देश का निर्माण हो सके.

Saturday, November 20, 2010

मानवता के दुश्मनों- क्यों लडाना चाहते हो सबको आपस में- तारकेश्वर गिरी.

दिल तो कर रहा हैं कि जोर-जोर से गाली दूँ, उन सबको जो धर्म के साथ मजाक करते हैं। लेकिन मुझे अपनी मर्यादा को ध्यान हैं। बकरा ईद क्या आई लग गये सब के सब एक दुसरे को सिखाने। कुछ ब्लोगेर ने सम्मानित तरीके से बकरा ईद का विरोद किया तो कुछ ने धार्मिक आस्था कि बात कह करके मामला को ताल दिया।
लेकिन डॉ अनवर जमाल और उनकी टीम जब भी आग उगलेगी तो किसी ना किसी हिन्दू देवी- देवता को बदनाम जरुर करेगी । आज अनवर जमाल जी और उनकी टीम भगवान राम जी को मांस का सेवन करने कि बात कर रही हैं।
श्रीमान अनवर जमाल जी और आपकी टीम : आप अपने धर्म कि तारीफ करें , लेकिन दुसरे धर्म कि बुराई नहीं। कंही ऐसा ना हो कि आपसी विवाद इतना बढ़ जाये कि एक भाई दुसरे भाई के खून का प्यासा हो जाये। क्यों कि इस तरह से आप और आपकी टीम सिर्फ नफरत फैला रही हैं । एक तरफ आप बात करते हैं कि इस्लाम शांति का सन्देश देती हैं लेकिन एक तरफ आप धर्म विशेष का मजाक उड़ाते हैं।
हाँ एक बात और अगर कोई ब्लोगेर इस्लाम कि बुराई करता हैं तो आप उसका विरोध करें ना कि पुरे हिन्दू समाज का। आपके बहुत से मित्र हिन्दू होंगे और हमारे बहुत से मित्र मुस्लमान हैं।
आप हिन्दू शब्द कि सच्चाई कि बात करते हैं , शायद आप भूल गये कि आपने अपने लेख में खुद लिख था कि में हिन्दू हूँ। फिर कैसी सफाई मांग रहे हैं , कैसा विरोध भाष दीखता हैं आपको हिन्दू धर्म में।
जाते -जाते आपको ये बता दूँ कि हिन्दू एक परम्परा हैं जो सदियों से चली आ रही हैं, और इसमें जब भी बदलाव कि जरुरत महसूस हुई ,लोगो ने , समाज ने मिलकर के बदलाव किया हैं.

Sunday, November 14, 2010

सोनिया गाँधी- केंद्र सरकार- कांग्रेस पार्टी और मेरा बेचारा देश- तारकेश्वर गिरी.

भारत में जन्मा कोई भी व्यक्ति आज किसी दुसरे देश में ना तो प्रधान मंत्री हैं और ना ही राष्ट्रपति, दूसरी बात ये हैं कि जिस पद पर सोनिया आसीन हैं , उनसे ज्यादा विद्वान नेता और भी हैं इंतजार में कि कब उन्हें मौका मिले. एक दो को छोड़ दे तो आज तक कांग्रेस ने सिर्फ नेहरू के वन्सजो को ही प्रधान मंत्री बनने का मौका दिया हैं, और आगे भी सारे कांग्रेसी राहुल कि तरफ नज़र गडाए हुए हैं. बहुत से ऐसे सवाल हैं जो सोनिया गाँधी को कटघरे में खड़े करते हैं.

मसलन कि बोफोर्स घोटाले का मुख्या आरोपी का छुट जाना, संसद में हुए हमले के आरोपी को सुनाई गई फांसी कि सजा पर अमल ना होना, हिंदुस्तान में रह करके सिर्फ मुसलमानों का साथ देना , हिन्दू विरोधी बात करना, राम सेतु को ये कहना कि ये सेतु नहीं हैं बल्कि रेत का ढेर जमा हुआ हैं.

आज हमारे देश का सौभाग्य हैं कि हमें एक पढ़ा लिखा और समझदार प्रधान मंत्री मिला हुआ हैं, सब तरह के घोटालो से दूर, एक साफ सुथरी तस्वीर के रूप में श्रीमान मनमोहन सिंह. लेकिन वो भी सोनिया नामक बीमारी से ग्रस्त हो चुके हैं, और अपना सारा का सारा ज्ञान सोनिया जी कि जी हजुरी में खर्च कर रहे हैं. वो अलग बात हैं कि ज्ञान खर्च करने से बढ़ता हैं.

जनता का क्या वो तो एक भीड़ हैं , और वो भी बिलकुल भेड़ कि तरह. बचपन में एक कहावत सुनी थी कि एक भेड़ के पीछे सारी भेड़ चलती हैं, और अगर रस्ते में कुआँ आ जाये और अगर एक भी भेड़ गिर जाये तो पीछे -पीछे सारी भेड़े कुंए में गिर जाती हैं.

सोनिया के नाम पर मर- मिटने वाले ना तो कोई बड़ा नेता हैं और ना ही कोई विधायक और ना ही संसद. ये बेचारी भीड़ (जनता ) हैं जो अपने गली मोहल्ले के छुट भैये नेता के कहने पर हंगामा करने चले आते हैं. और ऐसा सिर्फ सोनिया जी के लिए ही नहीं बल्कि हर उस पार्टी के प्रमुख व्यक्ति के लिए हैं. चाहे वो लालू यादव जी कि भीड़ हो या मायावती जी कि या लालकृष्ण अडवाणी कि या ममता जी कि. सब बेवकूफ हो चुकी भीड़ का फायदा उठाते हैं.

Saturday, November 13, 2010

दूसरो कि बीबी और अपने बच्चे सबको अच्छे लगते हैं-तारकेश्वर गिरी.

दूसरो कि बीबी और अपने बच्चे सबको अच्छे लगते हैं, अपनी क्यों नहीं पता नहीं , या ये हो सकता हैं कि अपनी तो अपनी हैं ही कंहा जाएगी, दूसरी को भी अपना लेते हैं।

और ये सब कोई ,आज का नया तरीका तो हैं नहीं , ये तरीका तो सदियों से चला आ रहा हैं, कौन किसे रोक सकता हैं, और ना ही कोई रुकने वाला हैं, लेकिन फिर भी अगर लोग बोलना छोड़ दे या लोग इस पर लिखना छोड़ दे तो फिर वोही जंगल राज।

एक कुंवारा लड़का और लड़की एक दुसरे से प्यार करते हैं तो कुछ हद तो ठीक हैं लेकिन अफ़सोस तब होता हैं जब एक शादी -शुदा महिला या पुरुष भी एक दुसरे से प्यार करने लगते हैं ( मतलब सिर्फ ........)। प्यार करना कोई बुरी बात तो हैं भी नहीं।

लेकिन उन मनचले लोगो का क्या .... जो मौका मिलते ही शुरू हो जाते हैं, :- अबे... देख क्या माल जा रहा हैं..... या काश .............. या सिर्फ हाय...................... कह के भी । हद तो तब हो जाती हैं जब कुछ बत्तमीज किस्म के लोग छेड़खानी पर उतर जाते हैं।

दुनिया के हर समाज ने इस तरह कि हरकतों को गलत कहा हैं, और तरह - तरह कि बंदिशे भी डाली गईं हैं, जिस से कि लोग सामाजिक नियमो का पालन करे। और इन्सान ही बने रहे ना कि जानवरों कि तरह ........

Tuesday, November 9, 2010

तू बेवफा क्यों ? - तारकेश्वर गिरी.

तू बेवफा क्यों.

आखिर क्या वजह हैं बेवफाई कि , क्यों करते हैं लोग. हर जगह हर धर्म हर समाज में ये पाई जाती हैं.

कंही पुरुष तो कंही महिला. , जंहा तक मैं अपने अनुभव कि बात करू तो मेरे बहुत से मित्र ऐसे हैं जो बेवफा सनम हैं. बेवफा सनम सिर्फ बाहर कि महिला मित्रो के साथ ही हैं ना कि अपनी धर्म पत्नी के साथ , जाहिर हैं के मेरे लगभग सारे मित्र शादी - शुदा हैं. महिला मित्रो कि बात करू तो उनमे से आज तक एक भी बेवफा सनम नहीं निकली. किसी के लिए भी.

जाहिर हैं कि ये एक सामाजिक गन्दगी हैं, और ऐसी गन्दगी कि, जो समाज साफ भी नहीं करना चाहता, क्योंकि कोई - न -कोई कंही ना कंही जरुर शामिल होता हैं. पुराने ज़माने में शायद वजह कोई और रही हो मगर आज के ज़माने में भाग -दौड़ भरी जिंदगी बेवफा बनाने के लिए काफी हैं.

एक छोटा सा उदहारण : एक विवाहित पुरुष और एक विवाहित महिला दोनों एक कार्यालय में एक साथ काम करते हैं, सुबह के १० बजे से शाम के ६ बजे तक एक साथ चाय और लंच भी लगभग ८ घंटे, और जब दोनों अपने - अपने घर को जाते हैं लगभग ७ से ८ बजे तक घर पहुंचते हैं और रात के १० से ११ बजे तक सो जाते हैं सुबह ६ बजे उठकर के ८ बजे तक कार्यालय के लिए निकल जाते हैं. मतलब कि वो दोनों अपने - अपने पति या पत्नी को ज्यादे समय देने कि बजाय अपने सहकर्मी को ज्यादा समय देते हैं. सबसे बड़ी वजह तो शायद येही हैं.


एक बात और , दोष सिर्फ महिला या पुरुष को देना भी ठीक नहीं हैं, क्योंकि कंही ना कंही दोनों ही इसके जिम्मेदार होते हैं. और साथ में जिम्मेदार होता हैं सामाजिक ताना -बाना.

लेकिन सबसे बड़ी गलती तब होती हैं जब सब कुछ के साथ आपस में भी बेवफाई होती हैं, क्योंकि आज का इन्सान जैसे ही किसी और सुन्दर चीज को देखता हैं तो उसे पाने कि कोशिश भी करता हैं,

यानि कि बेवफाई कि सारी जड़ चाहत या कह ले कि तम्मना (पाने कि) हैं. लेकिन इन सब पर नियंत्रण भी पाया जा सकता हैं और ऐसा तभी होगा जब हम अपने आप पर नियंत्रण रखे.


आखिर में एक बात और.

एक सज्जन कहते हैं कि में शराब नहीं पीता, दुसरे सज्जन कहते हैं कि मेरे धर्म में शराब पीना मना हैं, तीसरे सज्जन कहते हैं कि में शुद्ध शाकाहारी हूँ. - यानि कि ये लोग उपरोक्त बातो पर अपने - आप में नियंत्रण रखते हैं तो फिर .................................. बाकि पर क्यों नहीं.

Thursday, November 4, 2010

जल्दी से जा बजार मोरे राजा, नाही त हो जाई अन्हार मोरे राजा।

जल्दी से जा बजार मोरे राजा, नाही त हो जाई अन्हार मोरे राजा।

गरम-गरम जलेबिया का स्वाद मोरे राजा।

जिभिया चटोर, पेटवा हवे परेशान मोरे राजा।

जल्दी से जा बजार मोरे राजा, नाही त हो जाई अन्हार मोरे राजा।

लेले आइआ दिया अउर अनार मोरे राजा, आइल बा दिवाली क त्यौहार मोरे राजा।

समोसवा, टिकिअवा अउर आचार मोरे राजा,

टुनटुन मोढ़े पे लागल बा बजार मोरे राजा।

जल्दी से जा बजार मोरे राजा, नाही त हो जाई अन्हार मोरे राजा।

Wednesday, November 3, 2010

देखा हैं हमने - पत्थर को रेत मैं बदलते हुए- तारकेश्वर गिरी.

बहुत सुनी हैं कहानियां बहुत पढ़ी हैं कवितायेँ ,
बदला जुग -बदला जमाना
देखा हैं हमने भी पत्थर को रेत में बदलते हुए।


अटल, अविरम्ब, स्थिर एक जड़ सा सदियों से
घमंडी, बिना झुके एक ही जगह पड़ा।
देखा हैं हमने भी पत्थर को रेत में बदलते हुए।


छोटी सी बुँदे बारिश कि ,हलकी सी हवा पहाड़ो कि,
साथ मिलती हैं जब, तो प्यार से कहती हैं,
देखा हैं हमने भी पत्थर को रेत में बदलते हुए।


तुम्हारी क्या औकात हैं ये अजनबी , तुम तो रेत भी नहीं बन सकते,
चार गज जमीन या चार कुन्तल लकड़ियाँ,
देखा हैं हमने भी पत्थर को रेत में बदलते हुए।

Monday, November 1, 2010