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Tuesday, November 9, 2010

तू बेवफा क्यों ? - तारकेश्वर गिरी.

तू बेवफा क्यों.

आखिर क्या वजह हैं बेवफाई कि , क्यों करते हैं लोग. हर जगह हर धर्म हर समाज में ये पाई जाती हैं.

कंही पुरुष तो कंही महिला. , जंहा तक मैं अपने अनुभव कि बात करू तो मेरे बहुत से मित्र ऐसे हैं जो बेवफा सनम हैं. बेवफा सनम सिर्फ बाहर कि महिला मित्रो के साथ ही हैं ना कि अपनी धर्म पत्नी के साथ , जाहिर हैं के मेरे लगभग सारे मित्र शादी - शुदा हैं. महिला मित्रो कि बात करू तो उनमे से आज तक एक भी बेवफा सनम नहीं निकली. किसी के लिए भी.

जाहिर हैं कि ये एक सामाजिक गन्दगी हैं, और ऐसी गन्दगी कि, जो समाज साफ भी नहीं करना चाहता, क्योंकि कोई - न -कोई कंही ना कंही जरुर शामिल होता हैं. पुराने ज़माने में शायद वजह कोई और रही हो मगर आज के ज़माने में भाग -दौड़ भरी जिंदगी बेवफा बनाने के लिए काफी हैं.

एक छोटा सा उदहारण : एक विवाहित पुरुष और एक विवाहित महिला दोनों एक कार्यालय में एक साथ काम करते हैं, सुबह के १० बजे से शाम के ६ बजे तक एक साथ चाय और लंच भी लगभग ८ घंटे, और जब दोनों अपने - अपने घर को जाते हैं लगभग ७ से ८ बजे तक घर पहुंचते हैं और रात के १० से ११ बजे तक सो जाते हैं सुबह ६ बजे उठकर के ८ बजे तक कार्यालय के लिए निकल जाते हैं. मतलब कि वो दोनों अपने - अपने पति या पत्नी को ज्यादे समय देने कि बजाय अपने सहकर्मी को ज्यादा समय देते हैं. सबसे बड़ी वजह तो शायद येही हैं.


एक बात और , दोष सिर्फ महिला या पुरुष को देना भी ठीक नहीं हैं, क्योंकि कंही ना कंही दोनों ही इसके जिम्मेदार होते हैं. और साथ में जिम्मेदार होता हैं सामाजिक ताना -बाना.

लेकिन सबसे बड़ी गलती तब होती हैं जब सब कुछ के साथ आपस में भी बेवफाई होती हैं, क्योंकि आज का इन्सान जैसे ही किसी और सुन्दर चीज को देखता हैं तो उसे पाने कि कोशिश भी करता हैं,

यानि कि बेवफाई कि सारी जड़ चाहत या कह ले कि तम्मना (पाने कि) हैं. लेकिन इन सब पर नियंत्रण भी पाया जा सकता हैं और ऐसा तभी होगा जब हम अपने आप पर नियंत्रण रखे.


आखिर में एक बात और.

एक सज्जन कहते हैं कि में शराब नहीं पीता, दुसरे सज्जन कहते हैं कि मेरे धर्म में शराब पीना मना हैं, तीसरे सज्जन कहते हैं कि में शुद्ध शाकाहारी हूँ. - यानि कि ये लोग उपरोक्त बातो पर अपने - आप में नियंत्रण रखते हैं तो फिर .................................. बाकि पर क्यों नहीं.

22 comments:

  1. पति या पत्नी की बेवफ़ाई के लिए कई बार व्यक्ति ख़ुद भी काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार होता है...मसलन, अगर कोई व्यक्ति अपनी पत्नी/प्रेमिका से ज़्यादा किसी और महिला को महत्व देता है तो ऐसे में पत्नी/प्रेमिका के मन में असुरक्षा की भावना पैदा होना स्वाभाविक है...अगर यह सिलसिला लंबे वक़्त तक चले तो पत्नी/प्रेमिका तनाव में रहने लगेगी... हो सकता है ऐसे में वो किसी ऐसे व्यक्ति को तलाशने लगे जिससे वो अपने मन की बात कह सके... और बाद में यही व्यक्ति उसके लिए भावनात्मक सहारा बन जाए... बाद में इसी पत्नी/प्रेमिका को बेवफ़ा क़रार दे दिया जाता है... ठीक यही हालत मर्दों के साथ भी है...

    कोई भी व्यक्ति यह कभी पसंद नहीं करेगा की उसका साथी उससे ज़्यादा किसी और को महत्व दे, ख़ासकर उस वक़्त, जो सिर्फ़ उनका अपना हो... एक-दूसरे पर विश्वास करना बहुत ज़रूरी है, लेकिन इसके साथ यह भी ज़रूरी है कि किसी भी ऐसे काम से बचा जाए, जिससे आपके प्रति आपके साथी का विश्वास डगमगाने लगे... आजकल महिला और पुरुष साथ काम करते हैं...ऐसे में उनके बीच बातचीत भी होती है, और इसमें कोई बुराई भी नहीं है... बुराई तो तब होती है, जब यह बाहरी रिश्ते आपके वैवाहिक रिश्तों को प्रभावित करने लगते हैं...

    ज़िंदादिल होना अलग बात है और दिल फेंक होना दूसरी बात... और दिलफेंक व्यक्ति (महिला या पुरुष) ऐतबार के क़ाबिल नहीं होता...

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  2. फ़िरदौस जी से सहमत हैं जी!!!

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  3. फ़िरदौस जी से सहमत हैं जी!!!

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  4. फ़िरदौस जी से सहमत हैं जी!!!

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  5. फ़िरदौस जी से सहमत हैं जी!!!

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  6. फ़िरदौस जी से सहमत हैं जी!!!

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  7. दिलफेंक व्यक्ति (महिला या पुरुष) ऐतबार के क़ाबिल नहीं होता...

    Very Nice

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  8. दिलफेंक व्यक्ति (महिला या पुरुष) ऐतबार के क़ाबिल नहीं होता. बात तो दुरुस्त है लेकिन इसका हल क्या है? आज मुहब्बत ज़रुरत को कहते हैं. इंसान को उस चीज़ या इंसान से भी अधिक लगाव हो जाया करता हैं, जिसके साथ अधिक समय व्यतीत करता है. पत्नी से बात करता है एक इंसान , २ घंटे, सहकर्मी सी ६ घंटे, तो यह स्वाभाविक है की ऑफिस के सहकर्मी सी लगाव बढ़ जाए. ऑफिस मैं सजे संवरे हर तरह का हुस्न मिलजाता है, घर मैं तो जो मिला वही ठीक.
    यकीनन सच्ची मुहब्बत अगर पति पत्नी मैं है, एक जैसी सोंच है तो कोई भी चीज़, दूरी भी उनको बेफफा नहीं बना सकती लेकिन ऐसा कम ही पाया जाता है.

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  9. ज़िंदादिल होना अलग बात है और दिल फेंक होना दूसरी बात...
    bikul satya hai
    i agree with firdaus ji

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  10. कई बार ऐसा भी होता है की हमारे यहाँ शादी एक कौम्प्रोमाइज़ होती है... शादी तो कर लेते हैं लेकिन आपस में वो प्यार नहीं होता... अब चूंकि शादी हो चुकी है तो साथ में रहना भी पड़ेगा... लेकिन वो प्यार नहीं होगा... तो जब ऐसे में कोई हमारे अनुरूप मिलता है तो ऐट्रेकशन स्वाभाविक है... वैसे शादी के बाद प्यार करना गलत नहीं है... जो गलत कहते हैं ...वो सिर्फ खुद सांत्वना देते हैं... वैसे चाहत अगर है किसी की तो ऐसी चाहतों को रोकना नहीं चाहिए... बस यह है की सब कुछ एक दायरे में या फिर परदे में रहे... अगर हम किसी भी इच्छा को दबायेंगे.. तो वो और जोर मारेगी... जो शराब नहीं पीते ... वो वो लोग होते हैं जिन्होंने कभी शराब को छुआ ही नहीं है .... जो मांस नहीं खाते वो वो लोग होते हैं जिन्होंने कभी मांस छुआ तक नहीं है... लेकिन सेक्स एक ऐसी चीज़ है... जिसे हमें कोई सिखाता नहीं है... वो नेचर जिसे हम प्रकृति भी कह सकते हैं... हमें ख़ुद सिखाती है... तो सेक्सुअल ऐट्रेकशन होना स्वाभाविक है... और यह एक ऐसी चीज़ है जिस पर दुनिया का कोई भी लिविंग बींग कंट्रोल नहीं कर सकता.... और बेवफाई कभी भी सेक्सुअल नहीं होती... यह पर्सनल रिलेशन पर बेस्ड होती है... आज ज़रूरत ब्रौड सोचने की है... और यह बात तो एकदम सच है की जो हमारे सामने रहेगा उससे हमें प्यार भी हो जायेगा...

    और दिलफेंक होना तो बहुत ही बुरी बात है.... फ्लर्ट करना नहीं.... फ्लर्ट हमें ज़िंदादिल रखता है...

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  11. तारकेश्‍वर जी, बहुत मासूम सवाल पूछा है आपने।

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  12. Mahfuj Bhai: Aap aaye to bahar aai,

    Aur kuch na bhi kahte huye bahut kuch kah diya hai apne.

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  13. bahut achchhi tathyatmak rachna...

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  14. काफ़ी कुछ कह दिया फ़िरदौस जी ने उसके बाद कहने को क्या बचता है।

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  15. मजफूज भाई आप की बाते फ़िल्मी है हकीकत नही

    दिलफेक होना काफी आसन है जबकि जिंदादिल होना काफी मुस्किल
    जिन्दा दिल इंसान विपरीत सेक्स के साथ रहते हुए भी अपने साथी से वफादार रहता है
    और अपनी जिमेदारी समझता है

    जबकि दिलफेक इंसान एक सुंदर ,अच्छी बीवी होने के बावजूद वो इधर उधर ताक झाँक करता है
    सब इंसान पर आधारित है न की माहोल पर

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  16. वाह अलोक जी क्या उदहारण दिया हैं , काफी सही कह रहे हैं,

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  17. दिलफेंक को इंसान कहना-मानना ही नहीं चाहिए क्‍योंकि जिसने दिल ही फेंक दिया, तो इंसान कैसे रहा ? बेदिल इंसान तो वैसे भी बेकार ही समझिए। खैर .. कुछ मिलाकर अच्‍छा और सार्थक विमर्श।
    देशी घी में चुपड़ी दो रोटियां

    महामारी तरकारी हुई है, फसल इसकी भारी हुई है : सोपानस्‍टेप नवम्‍बर 2010 अंक में

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  18. @ भाई सत्य क्यों कि सुन्दर होता है इसी लिए आदमी या औरत उसकी तरफ लपकता है . औरत और मर्द को भी सत्य पर होने के साथ साथ यानि आतंरिक सुन्दरता के साथ बाहरी सुन्दरता का भी ध्यान रखना चाहिए .
    --- लेकिन जो अपने मालिक का गद्दार हो , रब सच्चे का गद्दार हो वह अपने जीवन साथी का भी गद्दार ज़रूर होगा .
    टी वी कार्यक्रम इमोशनल अत्याचार इसका सुबूत है .
    अपना 'ध्यान' रखना .

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  19. तारकेश्वर जी,
    मस्त चर्चा चल रही है।

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  20. Bahut hi achhi baat ki aapne..... aur utne hi behater dhang se use prastut bhi kiya..... aalekh ki aakhiri panktiyan man ko chhoo gayin.... sochane par vivash karti huin..... dhanywad

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  21. @ गिरी जी ! मुझे याद नहीं है कि मैंने कभी अपनी सभ्यता को गाली दी हो , किसी लेख का हवाला देते तो मुझे सफाई देने या प्रायश्चित करने में आसानी होती ।
    इस्लामी सभ्यता आज पूरे विश्व के 153 करोड़ लोगोँ का नियम है वे अंग्रेज भी उसे अपना रहे हैं जिनके कपड़े लत्ते पहनकर आप खुशी महसूस करते हैं ।
    आपके छत्रपति शिवाजी की ड्रेस भी मुग़लई ड्रेस थी । सबको पसंद वही चीज आती है जो अच्छी हो ।
    आप पूर्वाग्रह से मुक्त होकर देखें आपको भी अच्छी लगेगी इस्लामी सभ्यता जैसे कि ईरान के आर्यों को अच्छी लगी ।
    इस्लाम का झंडा आज अरबों से ज्यादा आर्यों के हाथ में है , शुद्ध आर्यों के , आपसे बेहतर आर्यों के हाथ में । आप को भी उनका अनुसरण करना चाहिए ।

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