Wednesday, September 12, 2012

सरकार को बाहर से समर्थन दूँ या अन्दर से,


सरकार को बाहर से समर्थन दूँ या अन्दर से, 

आखिर मेरे पास लोकसभा में ६० सीटें हैं , तो मैं ये अच्छी तरह से ठोक- बजा के निर्णय लेने का अधिकार रखता हूँ कि सरकार को बाहर से समर्थन दूँ या अन्दर से.. वैसे आज कल बहुत सी पार्टी के मुखिया सरकार में अपनी भागीदारी चाहते हैं, लेकिन बहुत सी पार्टियाँ ऐसी भी हैं जो सरकार को बाहर से समर्थन देने में ही विश्वाश रखती हैं.

अब मुझ जैसे नौशिखिये नेता को ये बात समझ में नहीं आ रही हैं कि बाहर और अन्दर में अंतर क्या हैं. लेकिन वो हैं कि अब जबकि लोकसभा मैं ६० सीटें हासिल कर ली हैं तो दिमाग तो लगाना ही पड़ेगा.

अब अगर कुछ उदहारण ले के देंखे तो लगता हैं कि बाहर से समर्थन देने में ये फायदा होता हैं कि संसद के बाहर निकलते ही सरकार कि बुराई चालू कर दो........दो- चार कोल ब्लाक तो मिल ही जायेगा. लेकिन अगर सरकार के अन्दर बैठ करके घपला किया तो गड़बड़ हो सकती हैं..बाहर रहने से ये फायदा होगा कि अपनी मनमानी खूब कर सकते हैं.

बड़ी दुबिधा में हूँ ......कुछ आप ही बताइए... 

सपने भी कितने हसीन होते हैं,   पता नही ......सुबह इतनी जल्दी क्यों हो जाती  हैं.