आज सारे बड़े -बड़े लेखक धुरंधर ब्लोगेर और बहुत से लोग महिला दिवस में अपने अपने विचारो के तीर चलाये जा रहे हैं. लेकिन क्या खुद अपने घरो में नारी कि स्थति पर कभी नज़र डाला हैं किसी ने.
चाहे वो पुरुष हो या महिला दोनों ही महिलावो कि अनदेखी करते हैं. पुरुष तो सदैव उपेक्षा करता आया हैं मगर महिलाये भी कम नहीं हैं.
दहेज़ कि मांग हो या सास बहु के झगडे , या ननद भाभी के किस्से . घर कि बूढी औरते चाहती हैं कि उनके घर में लड़का ही पैदा हो ना कि लड़की.
पुरुष समाज तो सदा ही महिलावो के विचारो को दबाता चला आ रहा हैं. लेकिन महिला वर्ग खुद उसी पुरुष वर्ग के साथ मिल करके महिलावो को ही दबाने में लगी हुई हैं.
बड़े -बड़े लेख लिखने से और बधाई देने से सिर्फ महिला दिवस नहीं मनाया जाता हैं, करिए कुछ अपने घर कि महिलावो के लिए. अपनी माँ के लिए अपनी पत्नी के लिए अपनी प्यारी सी बिटिया के लिए. या अपनी सासु माँ के लिए अपनी ननद के लिए .
9 comments:
एकदम ठीक। चैरिटी बिगीन्स @ होम........पर उपदेश कुशल बहुतेरे......
Bahut badhia tarkeshwer sahab. waise mahila hi mahila ki dishmani adhik kartee hai.
महिला दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएँ.
बहुत ही बेहतरीन तरीक से लिखी गई बात!!! शत प्रतिशत सहमत हूँ!!!
UTTAM DARZE KI BAAT
बहुत खूब सुन्दर प्रस्तुति , अजी हम ने देखी हे ऎसी खतरनाक महिलाये जो बडो बडो को नाको चने चबा दे,मर्द करे तो जालिम, नारी हमेशा बेचारी... मर्द साला वक्त का मारा
बहुत ठीक लिखा आपने पहले अपना घर संवारो फिर आदर्शों की बात करो
भाई तारकेश्वर जी ! हम तो अपनी पत्नी जी के पैर दबाते हैं । कम्पटीशन करना हो तो बोलो ?
Sahi chintan.
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पैरों तले जमीन खिसक जाए!
क्या इससे मर्दानगी कम हो जाती है ?
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