Monday, February 14, 2011

कोई हमें भी प्यार करे------- ----- तारकेश्वर गिरी.

कोई हमें भी प्यार करे
हौले से धीरे से आकर
मेरे कंधो पे अपना हाथ रखे.

प्यारी से हंसी हो ,
धीमी सी मुश्कुराहट हो,
जब भी वो मेरे सामने हो.

सोच रही थी वो चौराहे पर
खड़ी हो करके
हाथो में गुलाब का फुल लिए.

तभी एक कार रुकी
खिड़की खुली
गुलाब का फुल खरीदने के लिए.

पैसा बटुए में रखने के बाद
फिर सोचती हैं,
मैं तो फुल बेचने वाली हूँ.

18 comments:

एस एम् मासूम said...

बहुत ही सुंदर . गहरी सोंच है.

Anonymous said...

kya baat hai sir,bahut acchi kavita

Shekhar Kumawat said...

BAHUT SUNDAR ACHHI BAT KAHI HAI AAP NE

उपेन्द्र नाथ said...

Bahut hi achchha chitran hai fool benchane vali ke manobhaon ka.....sunder prastuti.

Sushil Bakliwal said...

जागती आंखों का खूबसुरत सपना...

सपने देखना शौक हैं. और देखता भी हूँ. सपने तो हर कोई देखता हैं , और देखना भी चाहिए।

संजय भास्‍कर said...

..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
आप बहुत अच्छा लिखतें हैं...वाकई.... आशा हैं आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा....!!

संजय भास्‍कर said...

वैलेंटाईन डे की हार्दिक शुभकामनायें !
कई दिनों से बाहर होने की वजह से ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

DR. ANWER JAMAL said...

भय्या तारकेश्वर गिरी जी ! आप शिव सैनिक से तो वैसे ही मशहूर हो ऐसे में तो भाभी जी की भी हिम्मत नहीं होती आपको लाल गुलाब देने की ।
लेकिन कविता आपकी अच्छी है।
भाभी जी को तब सुनाना जब लाइट भागी हुई हो ।
आपके 5 रुपये खर्च हो ही जाएँगे क्योंकि ख़ाँ साहब की तरह आप सोचते नहीं ।
शुभकामनाएं ।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

गिरी साहब, आपको कैसे मालूम कि फूल बेचने वाली को कोई प्यार नहीं करता ? :):)

Taarkeshwar Giri said...

आदरणीय गोदियाल साहेब , प्रणाम

बहुत दिनों बाद आये हैं आप. और भी सिर्फ फूल बेचने वाली के लिए.

Anonymous said...

सुन्दर कविता। एक गरीब की आंखो के सपनों का सुन्दर चित्रण।

PAWAN VIJAY said...

majedar post hai par kauwe ko udaao

राज भाटिय़ा said...

फ़ुल बेचने वाली को भी कोई तो प्यार करता ही होगा... फ़िर वो सोच रही थी कि जल्दी से सारे फ़ुल बिक जाये, तो घर जा कर खीर बनाऊगी :)

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

लगता है ये फूल आपको भी भा गये।

बहुत सुंदर।

---------
अंतरिक्ष में वैलेंटाइन डे।
अंधविश्‍वास:महिलाएं बदनाम क्‍यों हैं?

Shah Nawaz said...

बहुत ही खूबसूरत भाव है गिरी भाई...

Satish Saxena said...

कवि हो गए हो भाई जान ....शुभकामनायें

वीना श्रीवास्तव said...

फूल बेचने वाली हो या कोई और प्यार की चाहत किसे नहीं होती...
भूलवश कविता में फूल का फुल हो गया है और मुस्कुराहट का मुश्कुराहट....ठीक कर लीजिए..इतनी प्यारी रचना में कमी नहीं अच्छी लग रही..
आपका ब्लॉग भी फॉलो कर लिया है...

Fauziya Reyaz said...

ohhhhhhhh....painful