हौले से धीरे से आकर
मेरे कंधो पे अपना हाथ रखे.
प्यारी से हंसी हो ,
धीमी सी मुश्कुराहट हो,
जब भी वो मेरे सामने हो.
सोच रही थी वो चौराहे पर
खड़ी हो करके
हाथो में गुलाब का फुल लिए.
तभी एक कार रुकी
खिड़की खुली
गुलाब का फुल खरीदने के लिए.
पैसा बटुए में रखने के बाद
फिर सोचती हैं,
मैं तो फुल बेचने वाली हूँ.
18 comments:
बहुत ही सुंदर . गहरी सोंच है.
kya baat hai sir,bahut acchi kavita
BAHUT SUNDAR ACHHI BAT KAHI HAI AAP NE
Bahut hi achchha chitran hai fool benchane vali ke manobhaon ka.....sunder prastuti.
जागती आंखों का खूबसुरत सपना...
सपने देखना शौक हैं. और देखता भी हूँ. सपने तो हर कोई देखता हैं , और देखना भी चाहिए।
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
आप बहुत अच्छा लिखतें हैं...वाकई.... आशा हैं आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा....!!
वैलेंटाईन डे की हार्दिक शुभकामनायें !
कई दिनों से बाहर होने की वजह से ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
भय्या तारकेश्वर गिरी जी ! आप शिव सैनिक से तो वैसे ही मशहूर हो ऐसे में तो भाभी जी की भी हिम्मत नहीं होती आपको लाल गुलाब देने की ।
लेकिन कविता आपकी अच्छी है।
भाभी जी को तब सुनाना जब लाइट भागी हुई हो ।
आपके 5 रुपये खर्च हो ही जाएँगे क्योंकि ख़ाँ साहब की तरह आप सोचते नहीं ।
शुभकामनाएं ।
गिरी साहब, आपको कैसे मालूम कि फूल बेचने वाली को कोई प्यार नहीं करता ? :):)
आदरणीय गोदियाल साहेब , प्रणाम
बहुत दिनों बाद आये हैं आप. और भी सिर्फ फूल बेचने वाली के लिए.
सुन्दर कविता। एक गरीब की आंखो के सपनों का सुन्दर चित्रण।
majedar post hai par kauwe ko udaao
फ़ुल बेचने वाली को भी कोई तो प्यार करता ही होगा... फ़िर वो सोच रही थी कि जल्दी से सारे फ़ुल बिक जाये, तो घर जा कर खीर बनाऊगी :)
लगता है ये फूल आपको भी भा गये।
बहुत सुंदर।
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अंतरिक्ष में वैलेंटाइन डे।
अंधविश्वास:महिलाएं बदनाम क्यों हैं?
बहुत ही खूबसूरत भाव है गिरी भाई...
कवि हो गए हो भाई जान ....शुभकामनायें
फूल बेचने वाली हो या कोई और प्यार की चाहत किसे नहीं होती...
भूलवश कविता में फूल का फुल हो गया है और मुस्कुराहट का मुश्कुराहट....ठीक कर लीजिए..इतनी प्यारी रचना में कमी नहीं अच्छी लग रही..
आपका ब्लॉग भी फॉलो कर लिया है...
ohhhhhhhh....painful
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