हिन्दू दुनिया में सबसे बड़े अंध विश्वासी होते हैं.
तभी तो कभी तुलसी की पूजा करते हैं कभी पीपल की कभी हल्दी की तो कभी दूब (एक प्रकार कि घास) की , कभी नीम की तो कभी आम की (आम के पत्तो की )
लेकिन मेरे समझ से ये कभी भी अंध विश्वाश नहीं हैं. हाँ वो अलग बात हैं की हमारी इटालियन सरकार ने लोगो के दिमाग में गोबर भर दिया हैं. जंहा तक मेरा मानना हैं की पुराने ज़माने में ऋषि -महर्षियों ने आपने ज्ञान के बल पर जो भी उपयोगी बाते थी उनको सामाजिक जीवन में अपनाने के लिए सामजिक तौर तरीके के साथ जोड़ दिया.
हल्दी के गुडो के बारे में सबको पता हैं , साथ ही दूब नामक घास भी हल्दी कि ही तरह उपयोगी होती हैं तभी तो पूजा पाठ में भी इन चीजो का इस्तेमाल होता हैं . नीम , पीपल , तुलसी , बरगद हमेशा ओक्सिजन छोड़ते हैं और कार्बन डाई ओक्सैड़ अपनी तरफ लेते हैं. और ये लुफ्त ना हो जाये इसीलिए इन पौधों को सामाजिक रीती-रिवाज के साथ जोड़ दिया ताकि लोग इनको बचा सके और पर्यावरण नियंत्रण में बना रहे.
पीपल बे बैठा भुत नामक कहावत लोगो को डराती रही कि लोग पीपल के पेड़ को नुकसान ना पहुंचाए।
अब बेवकूफ लोग इस बात को अन्धविश्वाश का दर्जा देंगे तो हम क्या कह सकते हैं। हाँ कुछ ना कुछ अपवाद हैं हमारे समाज में और उसे दूर भी करना चाहिए। जैसे कि पीपल के पेड़ पर सरसों का तेल चढ़ाना (हर शनिवार को ), इस से पीपल के पेड़ को काफी नुकसान होता हैं।
तुलसी कि सुगंध से अस्थमा नामक बीमारी दूर भागती हैं, तो नीम अपने आप में हैं ही गुड कारी।
तभी तो कभी तुलसी की पूजा करते हैं कभी पीपल की कभी हल्दी की तो कभी दूब (एक प्रकार कि घास) की , कभी नीम की तो कभी आम की (आम के पत्तो की )
लेकिन मेरे समझ से ये कभी भी अंध विश्वाश नहीं हैं. हाँ वो अलग बात हैं की हमारी इटालियन सरकार ने लोगो के दिमाग में गोबर भर दिया हैं. जंहा तक मेरा मानना हैं की पुराने ज़माने में ऋषि -महर्षियों ने आपने ज्ञान के बल पर जो भी उपयोगी बाते थी उनको सामाजिक जीवन में अपनाने के लिए सामजिक तौर तरीके के साथ जोड़ दिया.
हल्दी के गुडो के बारे में सबको पता हैं , साथ ही दूब नामक घास भी हल्दी कि ही तरह उपयोगी होती हैं तभी तो पूजा पाठ में भी इन चीजो का इस्तेमाल होता हैं . नीम , पीपल , तुलसी , बरगद हमेशा ओक्सिजन छोड़ते हैं और कार्बन डाई ओक्सैड़ अपनी तरफ लेते हैं. और ये लुफ्त ना हो जाये इसीलिए इन पौधों को सामाजिक रीती-रिवाज के साथ जोड़ दिया ताकि लोग इनको बचा सके और पर्यावरण नियंत्रण में बना रहे.
पीपल बे बैठा भुत नामक कहावत लोगो को डराती रही कि लोग पीपल के पेड़ को नुकसान ना पहुंचाए।
अब बेवकूफ लोग इस बात को अन्धविश्वाश का दर्जा देंगे तो हम क्या कह सकते हैं। हाँ कुछ ना कुछ अपवाद हैं हमारे समाज में और उसे दूर भी करना चाहिए। जैसे कि पीपल के पेड़ पर सरसों का तेल चढ़ाना (हर शनिवार को ), इस से पीपल के पेड़ को काफी नुकसान होता हैं।
तुलसी कि सुगंध से अस्थमा नामक बीमारी दूर भागती हैं, तो नीम अपने आप में हैं ही गुड कारी।
7 comments:
तारकेश्वर गिरी जी आपने बहुत अच्छी बहस का प्रयत्न किया है हिन्दू धर्म वैज्ञानिक धर्म है ये सर्बोच्च जीवन दर्शन है हम बरगद,पीपल को जल चढाते है तुलसी की पूजा करते है तुलसी सैकड़ो रोगों के उपचार में आती है पीपल, बरगद २४ घंटे हमें आक्सीजन देता है हमारे पुर्बजो ने बड़े बिचार पुर्बक यह पूजा पद्धति बनायीं है हमें किसी की सिख जरुरत नहीं अपने समाज को शिक्षित करना जरुरी है.बहुत-बहुत धन्यवाद.
वाकई बहुत अच्छा लिखा है. यहां तो जड़ उखाड़ने से पहले उसे पूजा जाता है. कण-कण में भगवान मानने वालों को लोग आज अंधविश्वासी और आतंकी कहते हैं. धिक्कार है इस सोच पर.
@ तारकेश्वर जी ! आपकी तबियत तो ठीक है न ?
आज आप क्यों तुलसी जी और पीपल जी के पीछे पड़ गए?
तेल लगाना वाक़ई बुरी बात है । तेल वहीं लगाना चाहिए जहां कि वास्तव में उसके लगाने से किसी का कष्ट दूर होता हो ।
जो करोड़ों भक्त भगवान समझकर पेड़ के तेल लगा रहे हों उनकी निंदा करके आपने महान सुधारकों जैसा काम अनायास ही कर डाला है ?
श्री कृष्ण जी गीता जी में कहते हैं कि
मैं समस्त वृक्षों में पीपल हूं । - गीता , 10 , 26
सांपों में वासुकि हूं । -गीता 10, 28
मछलियों में मगरमच्छ हूं ।
-गीता 10, 31
जब कोई हिंदू अपने बाप को साँप और मगरमच्छ नहीं कह सकता तो फिर ईश्वर का सम्मान करने का यह कौन सा तरीक़ा है ?
धन्यवाद !
..पर इसी की आड में कुछ लोग बेवकूफ बनाकर अपना उल्लू भी तो सीधा कर रहे हैं. अच्छी पोस्ट.
पुराने ऋषि मुनियों ने जो बातें कही हैं| वे सब प्रकृति को बचे रखने के लिए ही कही गए हैं|
अंध विश्वासी तो हर धर्म मे होते हे, सिर्फ़ हिन्दूयो मे ही अंध विश्वासी नही होते, आप किसी भी धर्म मे जाये वहां कोई मना कर तो मानू की उन के धर्म मे कोई अंध विश्वासी नही,
दुसरी बात पेश पोधॊ की पुजा... हमारे बुजुर्गो ने इन चीजो की महता समझ ली थी, ओर उन्हे पता था कि आने वाले लोग कही लालच मे इन्हे नष्ट ना कर दे इस लिये उन्होने सभी उपयोगी चीजो की पुजा शुरु करवा दी, क्योकि जिस की हम पुजा करते हे उसे साफ़ ओर समभाल कर रखते हे, लेकिन अब धीरे धीरे नालायक बढने लगे ओर वो सब खारव ओर अंध विश्वासी लगने लगी,धन्यवाद इस अति सुंदर लेख के लिये
काफी हद तक आपसे सहमत हूँ..लाजवाब पोस्ट.
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