Tuesday, September 21, 2010

ये कैसी दिल्ली- तारकेश्वर गिरी.

ये दिल्ली भी क्या चीज हैं, लोग रोज आते हैं , रोज जाते हैं , हम जैसे लोग कुछ ना कुछ रोज इसके बारे में कह जाते हैं।
अभी थोड़ी देर पहले मेरे एक प्रिय मित्र का एक SMS आया तो सोचा कि क्यों ना आप सब के साथ बाटा जाये.
"ये कैसी दिल्ली हैं भाई, हमको तो कुछ समझ ना आई"
पहाड़गंज में "पहाड़" नहीं हैं, ना दरिया गंज में "दरिया"
और ना इन्द्रलोक में "परियां"।
गुलाबी बाग "गुलाबी" नहीं , न ही चांदनी चौक में "चांदनी"।
पुरानी दिल्ली में "नई सड़क" हैं, और नई दिल्ली में "पुराना किला"
कश्मीरी गेट में "कश्मीर" नहीं, अजमेरी गेट में "अजमेर" नहीं।
रोज रात को सोते समय सोचता हूँ कि दिल्ली तो ११०० सदी में बसी थी और वो भी नई दिल्ली में। और पुरानी दिल्ली तो मात्र ५०० साल पुरानी हैं
जय हो दिल्ली और दिल्ली के दिल वालो कि।

7 comments:

Mahak said...

ये भी कमाल की रिसर्च है

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

डान का गाना याद आ गया...

Taarkeshwar Giri said...

Indraprasth ko to log bhul hi gaye

S.M.Masoom said...

Dilli waloon main Dil to hai na...

Shah Nawaz said...

वाह! क्या सरल मधुर सन्देश (SMS) पढवाया आपने.... बहुत खूब!!!!!!!!!!!!!!! :-)

अविनाश वाचस्पति said...

फिर भी मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि गिरि जी तारों की खोज कोई कल्‍पना नहीं है। तारों-सितारों की खोज के ईश्‍वर हैं वे और संत नगर में संत बसते हैं।
वैसे दिल्‍ली की मजबूती और इन्‍द्रदेवता की मेहरबानी से रूबरू होना चाहें तो, समय मिलने पर अपनी निगाहों से चटकायें बारिशरस में डूबी दिल्‍ली
दिल्‍ली के मजबूत अंग-प्रत्‍यंग

दीपक बाबा said...

कमाल कर दिया साहेब......

ये तो कबीर साहेब कि उलटबांसियां साबित हुई.