Wednesday, September 22, 2010

तेरी आँखों कि नमी - तारकेश्वर गिरी.

तेरी आँखों कि नमी से हम गीले,
ये आसमान गीला ये धरा गीली।

हर जगह नमी हैं , तेरी आँखों में सूनापन,
धरा हरी-भरी हैं, लगता अपनापन हैं।

कोई रूठा हैं अपना, जैसे एहसास होता हैं,
जब याद आती हैं उनकी, तो लगता सब कुछ पास पास होता हैं।

तेरी आँखों कि नमी , हमें रुला न दे,
ये दूरियां कभी हमें, हमेशा के लिए सुला ना दे.

2 comments:

S.M.Masoom said...

कोई रूठा हैं अपना, जैसे एहसास होता हैं,
जब याद आती हैं उनकी, तो लगता सब कुछ पास पास होता हैं।
बहुत खूब

Ayaz ahmad said...

अच्छा चित्रण