तन्हाई में बैठे चुप-चाप,
उनकी यादो में खोया रहते थे।
जागते हुए भी दिन में,
उनके सपने देखा करते थे।
जमाना बदल गया लोग बदल गये।
यादे बदल गई , तरीके बदल गये।
प्यार का येहशाश वो दीवानगी,
सारे तौर तरीके बदल गये।
उनकी यादो में हम,
आज भी खोये रहते हैं।
ना जाने वो किसकी,
यादो में खोये रहते हैं।
10 comments:
vaah...bahut badhiya kavita.
उनकी यादो में हम,
आज भी खोये रहते हैं ।
ना जाने वो किसकी,
यादो में खोये रहते हैं ।
बहुत बढ़िया रचना ... बधाई
गिरी जी,
मौसम का असर हो गया है आप पर भी, एन्जॉय करिये।
अन्यथा न मानें तो "प्यार का येहशाश वो दीवानगी," में सुधार कर लें।
तारकेश्वरी भाई आपकी यादें और उसका एहसास का जीवंत चित्रण अपने बहुत खूब अल्फाजों में किया हे बहुत बहुत मुबारकां भाई जान बधाई हो. अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
जमाना बदल गया लोग बदल गये।
यादे बदल गई , तरीके बदल गये।
प्यार का येहशाश वो दीवानगी,
सारे तौर तरीके बदल गये।
बहुत बढ़िया गिरी जी
महक
yahi to baat hai ,zamaane ki ravaayat ,vyaavhaariktaa (bedili )ek taraf aur hamaaraa ek tarfaa pyaar ..
veerubhai
......kalkal pal pal bahtaa rhtaa hai ...
अरे वाह!.... बेहतरीन!
बहुत अच्छी रचना......
आपका ब्लॉग इंट्रो भी अच्छा है.....
क्योंकि देर से ही सही काम करना बड़ी बात .....
ध्यान से यह post भाभी जी न पढने पाएं
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