Friday, July 9, 2010

माँ को भी नमन नहीं कर सकते है, सिवाय अल्लाह के - तारकेश्वर गिरी.

भाई वाह , आखिर दिल की बात एक ब्लोगेर (मुस्लिम ब्लोगेर ) ने कह ही दी की हम माँ को नमन नहीं कर सकते चाहे जो भी हो जाये । हमारे लिए तो अल्लाह के सिवाय और कोई नहीं है। ये एक टिप्पड़ी मिली है मेरे प्रिय मित्र श्रीमान सहनावज जी के ब्लॉग पे ।

तारकेश्वर जी, दिखावे के लिए क्यों गंवाना चाहते हैं "वन्दे मातरम"?



सहसपुरिया जी, आप अपनी ही बात पर सहमती नहीं बना पा रहे हैं. एक तरफ तो कह रहें हैं की ( की जब कि ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा है कि अगर वह मनुष्यों में से किसी को नमन करने की अनुमति देता तो वह पुत्र के लिए अपनी माँ और पत्नी के लिए अपने पति को नमन करने की अनुमति देता.) लेकिन दूसरी तरफ खुदी कह रहे हैं की (हम अपनी माँ से प्यार करते हैं, परन्तु उस प्रेम को दर्शाने के लिए उनकी पूजा नहीं करते हैं. यह हमारी श्रद्धा नहीं है कि हम ईश्वर के सिवा किसी और को नमन करें, यहाँ तक कि माँ को भी नमन नहीं कर सकते हैं.)

येही तो समस्या है आप जैसे अरबियन सोच रखने वालो की. जो की माँ को भी नमन नहीं करते हैं. और येही वजह है आप की, कि आप वन्दे मातरम का बिना सोचे समझे विरोध करते हैं.

9 comments:

Anonymous said...

अरेबियन सोच...उजाड़ रेगिस्तानी बंजर रेतीली सोच... भारत भी रेगिस्तान बनता जा रहा है धीरे धीरे

राज भाटिय़ा said...

अजी हमे क्या यह उन की सोच है जो चाहे करे, जो चाहे ना करे

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

पत्थर पर सर फोड़ कर देख लिया...
महफूज जी, फिरदौस और फौजिया जैसे गिनती के लोग हैं, बाकी अधिकतर तालिबानी सोच रखते हैं..

सहसपुरिया said...

गिरी जी आपकी हमेशा यही यही समस्या रही है इक आप पढ़ें बगेर ही कमेंट करते हैं . पहली बात तो ये कमेंट शाहनवाज़ भाई के ARTICLE से ही QUOTE किया था.
दूसरी बात ये इस में आपके सवाल का जवाब है. आप से अनुरोध है की आप इक बार दुबारा सब पर नज़र डालें .

sproutsk said...

tarkeswar ji sadar pranam,,
aapka comment mila hardik dhanyawaad aap jaise log rahenge to likhne ki himmat badhegi,, plz mera blog jarur padhen

sproutsk said...

giri ji sadar pranam,,
aapke comment ke liya hardik dhanyawaad,, aapke jaise log blog padhenge to likhne ki himmat badhegi,, plz mera blog padhte rahen

Ayaz ahmad said...

@गिरी जी शायद आपने मुलाकात के समय हमारे द्वारा भेंट की पत्रिका वंदेईश्वरम् नही पढ़ी कृप्या उसे ध्यान से पढ़ें आपको आपके प्रश्नों का उत्तर मिल जाएगा

सत्य गौतम said...

http://webcache.googleusercontent.com/search?q=cache:kxQ91driM94J:vangmaypatrika.blogspot.com/2008/05/blog-post_29.html+%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF+%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BF+%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3&cd=12&hl=en&ct=clnk&gl=in
कोई भी स्त्री मेरे समान सौभाग्यशालिनी एवं उत्तम पुत्र वाली नहीं है। मेरे समान कोई भी स्त्री न तो पुरुष को अपना शरीर अर्पित करने वाली है और न संभोग के समय जाँघों को फैलाने वाली है।(ऋ. १०/८६/६) ऋग्वेद-डॉ. गंगा सहाय शर्मा, संस्कृत साहित्य प्रकाशन, नई दिल्ली, दूसरा संस्करण १९८५)

सत्य गौतम said...

कोई भी स्त्री मेरे समान सौभाग्यशालिनी एवं उत्तम पुत्र वाली नहीं है। मेरे समान कोई भी स्त्री न तो पुरुष को अपना शरीर अर्पित करने वाली है और न संभोग के समय जाँघों को फैलाने वाली है।(ऋ. १०/८६/६) ऋग्वेद-डॉ. गंगा सहाय शर्मा, संस्कृत साहित्य प्रकाशन, नई दिल्ली, दूसरा संस्करण १९८५)