आदमी वही अच्छा होता है जिसके अन्दर इंसानियत होती है। धर्म वो ही अच्छा होता है जिसके अन्दर समाज को जोड़ने की कला होती है। सिर्फ धार्मिक बनने या वेद कुरान का नारा लगाने वाला इन्सान कभी भी समाज के बारे मैं नहीं सोचेगा। वो तो सिर्फ अपने धर्म के बारे मैं ही सोचेगा। सिर्फ अपने धर्म को ही अच्छा कहेगा।
ना ही कोई हिन्दू देवी -देवता गलत हो सकता है और ना ही पैगम्बर मुहम्मद साहेब गलत हो सकते है और ना ही ईसा मशीह और ना ही वेद और गीता गलत है और ना ही कुरान और बाइबल। सब अपने -अपने ज़माने के महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रन्थ है। उस ज़माने मैं फैली हुई बुराइयों को दूर करने के लिए श्री कृष्ण का अवतार हुआ, ईसा मसीह और पैगम्बर मुहम्मद साहेब का अवतार हुआ। उन लोगो ने उस ज़माने मैं पुरे विश्व के कल्याण के लिए महतवपूर्ण योगदान दिया।
लेकिन आज के ज़माने मैं लोगो को क्या हो गया है। आज के लोग ज्यादा तर अपना समय सिर्फ दुसरे धर्मो को नीचा दिखाने मैं लगाते हैं। कोई कुरान को गलत बताता है तो कोई गीता और वेदों को गलत साबित करने मैं लगा हुआ है। कोई कुरान मैं फेर बदल से मना करता है तो कोई अपना समाज बदलने के लिए तैयार नहीं है।
मेरे पड़ोस मैं एक इसाई परिवार रहता है, किसी काम की वजह से थोड़ी देर पहले वो लोग मेरे पास ही बैठे थे , उसी दौरान उनके एक रिश्तेदार भी मेरे घर आ गए उनके रिश्तेदार ने मुझसे तो नमस्ते किया और उनसे जय मशीह कर के उनका अभिवादन किया। मैं आपका ध्यान जय मशीह शब्द पर दिलाना चाहता हूँ । इसाई समाज जय शब्द को कैसे इस्तेमाल कर रहा है , जबकि जय शब्द तो हिन्दू जाती से मतलब रखता है । लेकिन शायद इसाई धर्म गुरुवो को ये बात पता है की वो हिन्दुस्तानी है और हिन्दुस्तानी सभ्यता उनकी अपनी सभ्यता है। जबकि बाइबिल सिर्फ उस सभ्यता की बात करती जिस सभ्यता मैं उसका जन्म हुआ। लेकिन बाइबिल के उपदेश उनके लिए महत्तवपूर्ण है।
आगे और ................... जल्द ही ...................
9 comments:
inshaniyat hi hindutwa hai .yah aap kewal hindu ke nate likh rahe hai ,yahi apki bhawana hi hindutwa hai.
dhanyabad
बहुत प्रासंगिक लेख है... शुभकामनाएं...
हर मज़हब अपनी जगह अच्छा है और हर धार्मिक किताब इंसानियत का सबक़ देती है, लेकिन कुछ लोग मज़हब' के ठेकेदार' बनकर मज़हब की आड़ में अपना उल्लू सीधा करते हैं... और मज़हब को बदनाम करते हैं... दरअसल, अपने मज़हब को 'श्रेष्ठ' और दूसरे के मज़हब को 'तुच्छ' समझने की मानसिकता ही नफ़रत फैलाती है...
जिन लोगों का मक़सद सिर्फ़ नफ़रत की आग फैलाना होता है... शायद वो नहीं जानते कि एक न एक दिन ये आग उनका घर भी फूंक सकती है... देश में हुए कुछ दंगे इसी बात का सबूत हैं...
जय हिन्द
वन्दे मातरम्
Badhiya Baat!
shaandaar aalekh...........soye huyo ko jagane ke liye aisi hi mansikata ki jaroorat hai. aapka aalekh charcha manch mein le rahi hun.
मज़हब तो सबका एक ही है उस एक को पहचानौ प्यार मौहब्बत भाईचारा बढ़ाओ
Fidaus ji, दरअसल, अपने मज़हब को 'श्रेष्ठ' और दूसरे के मज़हब को 'तुच्छ' समझने की मानसिकता ही नफ़रत फैलाती है...
Bilkul shi kaha hai aapne. jab tak ham insan is mansikta se bahar nahi nikalenge, tab uljhe hi rahenge.
Ziadi saheb aur Vandana ji Apko Dhanyawad
उम्दा सोच पर आधारित प्रस्तुती के लिए धन्यवाद / ऐसे ही सोच की आज देश को जरूरत है / आप ब्लॉग को एक समानांतर मिडिया के रूप में स्थापित करने में अपनी उम्दा सोच और सार्थकता का प्रयोग हमेशा करते रहेंगे,ऐसी हमारी आशा है / आप निचे दिए पोस्ट के पते पर जाकर, १०० शब्दों में देश हित में अपने विचार कृपा कर जरूर व्यक्त करें /उम्दा विचारों को सम्मानित करने की भी व्यवस्था है /
http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/04/blog-post_16.html
अपना समय दुसरे धर्मो को नीचा दिखाने मैं न लगा के अपने कर्मों को ऊंचा उठाने में लगते तोह कितना अच्छा होता.
बहुत सही कहा है "कुछ लोग मज़हब' के ठेकेदार' बनकर मज़हब की आड़ में अपना उल्लू सीधा करते हैं... और मज़हब को बदनाम करते हैं" अपने मज़हब को 'श्रेष्ठ' समझने में कोई बुरी नहीं और हर एक इंसान को जिस धर्म का है, अपने मज़हब को 'श्रेष्ठ' समझना चाहिए और दूसरों के मज़हब की इज्ज़त करनी चाहिए. वैसे फिरदौस जी ऐसे भी लोग हैं जो वाहवाही के लिए ,अपना उल्लू सीधा करने के लिए अपने मज़हब में दोष निकलते हैं यह अपने ही धर्म को बदनाम करते हैं. धर्म अपना हो या दुसरे का किसी को बदनाम करना ठीक नहीं.
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