Sunday, April 18, 2010

डॉ अनवर बड़ा या कुरान.

समाज के अन्दर फैली हुई बुराइयों को दूर करने के लिए ही लोगो ने धर्म का सहारा लिया । लेकिन समाज, समय के साथ बदलता रहा है। और जब समाज बदल सकता है तो धार्मिक कर्मकांड क्यों नहीं।

धर्म से समाज का जन्म कभी भी नहीं हुआ है, हाँ समाज से ही धर्म का जन्म हुआ है। आज से हजारो साल पहले की परम्परा को निभाना जरुरी है और जरुरी नहीं भी , देखना ये है की समाज को जरुरत किस चीज की है।

फिरदौस जी आपका कदम सराहनीय है । हम सब आपके साथ हैं। सतीश जी आपकी चिंता नाहक ही आपको परेशान कर रही है, अब आप और मैं बहुसंख्यक नहीं रहे। क्योंकि हमारे बीच से लोग निकलकर हमारा ही विरोध करते हैं।

ये कंही अरब से इम्पोर्ट तो हुए नहीं हैं। इनकी सारी पुश्ते राम-राम करती रही। मगर क्या करे इनके बाप दादा तो ठहरे अनपढ़ गंवार, अपने पुरे खानदान मैं तो येही तीनों पढ़े लिखे निकले, और पढ़े भी तो क्या गीता और ved जिसके खानदान मैं कभी किसी ने संस्कृत न बोला हो वो आज संस्कृत के श्लोको का हिंदी मैं अनुवाद करके लोगो को बता रहा है।

कुरान तो ये पढ़ नहीं सकते क्योंकि इन्हें अरबी पढनी नहीं आती, हाँ अरब के लोग कैसे जीते हैं वो जरुर इन्हें अच्छी तरह से आता है।

अनवर जमाल तो कभी हरिद्वार आयेंगे नहीं , सलीम खान साहेब को एक बार फ़ोन किया मैंने तो उस दिन के बाद उनका फ़ोन ही बंद जा रहा है। अब एक दिन इस कैरंवी का हालचाल पता करता हूँ की ये जनाब कितने पानी मैं हैं.

18 comments:

फ़िरदौस ख़ान said...

गिरी जी, हम ख़ुद को अल्पसंख्यक नहीं मानते... क्योंकि हम हिन्दुस्तानी समाज का ही हिस्सा हैं... और हिन्दुस्तानी तहज़ीब (संस्कृति) का दुनिया में कहीं कोई सानी नहीं है...
आज जिस तरह से कुछ मंडली बनाकर दूसरे धर्मों की पवित्र किताबों और देवी-देवताओं के बारे में अपमानजनक लेख और टिप्पणियां लिख रहे हैं... उससे इनकी नीयत ज़ाहिर हो जाती है... यानी इनका मक़सद सिर्फ़ धार्मिक भावनाएं भड़काकर देश के चैन-अमन के माहौल को ख़राब करना और नफ़रत फैलाना ही है... ये लोग अपने गिरेबान में नहीं झांकते... जबकि यहां तो टॉयलेट में जाने से संबंधित आयतें भी हैं... ये बहुसंख्यक वर्ग की महानता है कि वो इस तरह की बातों को बीच में नहीं लाते... नफ़रत, नफ़रत को बढ़ाती है... और प्रेम, सिर्फ़ प्रेम का माहौल ही पैदा करता है...हमें इस नफ़रत की आग को फैलने से रोकना है... ताकि देश और समाज को तोड़ने की गद्दारों की किसी भी साजिश को कामयाब न होने दें...

जय हिंद
वन्दे मातरम्

VICHAAR SHOONYA said...

अरे साहब ये लोग सिर्फ अरबों के कपड़ो की नक़ल कर सकते हैं। ये तो यह भी नहीं जानते की अरब लोग कैसे जीते हैं। एक अरबी शेख दुसरे अरबी शेख से किस इज्जत से पेश आता है ये आप उन लोगों से पूछिये जो वहां जाकर नोकरी करते हैं। मेरे कुछ मुस्लिम दोस्त अरब देशों में नोकरी कर रहे हैं वो बताते हैं की वहां इन मुस्लिमों के साथ किस दर्जे का व्यव्हार होता है। अरबी लोग भारतीय मुसलमानों को दोयम दर्जे का मानते हैं। वो लोग खुद को ही सच्चा मुस्लमान मानते हैं। आप अपने देश में ही देखें । क्या कोई भारतीय मूल का मुस्लमान दिल्ली की जामा मस्जिद का इमाम बन सकता है। कहते हैं की इस्लाम में सब बराबर हैं तो ये असमानता किस लिए।
ओह हो मैं भी कहाँ की बात ले बैठा। आपका लेख हमेश की तरह से शानदार है।

Taarkeshwar Giri said...

Firdaush ji Thanks
and pandeyji Thanks

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

giri sahaab अगर गधे को शेर की खाल पहना दी जाए तो क्या वह शेर हो जाता है ?

Satish Saxena said...

किसी भी गलती के लिए पूरी कौम को दोष नहीं दिया जा सकता और न एक व्यक्ति खुद को पूरी कौम का रहनुमा समझने की भूल करे ! मुझे तो पूरा विश्वास है गिरी भाई कि हमारे देश में प्यार की कोई कमी नहीं है और हर आदमी प्यार के साथ रहना चाहता है ! समस्या तब शुरू होती है जब कुछ ठेकेदार आगे आते हैं और आम आदमी इनके बहकावे में आ जाता है !
फिर भी मुझे लगता है कि ऐसे लोगों के अरमान अब कभी पूरे नहीं हो सकते !
सादर !

Taarkeshwar Giri said...

Ji bilkul nahi Godiyal saheb.

Taarkeshwar Giri said...

Satish ji, ye log hamare pyar ka hi faiyda utha rahe hain

अविनाश वाचस्पति said...

पानी में कोई नहीं है

इनकी आंखों का पानी भी

मर चुका है बंधु

ये तो रेगिस्‍तान है

और रेगिस्‍तान ही
देखना चाहते हैं
इस पूरे भू पर।

Ayaz ahmad said...

गिरी जी आप ख़ाली कमेँट ही लिखते है या पोस्ट भी पढ़ते है क्योकि आपके कमेँट का पोस्ट के साथ मेल नही होता

Ayaz ahmad said...

गिरी जी आप ख़ाली कमेँट ही लिखते है या पोस्ट भी पढ़ते है क्योकि आपके कमेँट का पोस्ट के साथ मेल नही होता

विवेक रस्तोगी said...

तारकेश्वर जी,

अगर इनके जैसे लोग गीता का ज्ञान अर्जित करने लगे तो वाकई संसार में अमन कायम हो जायेगा।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

दुष्ट को, मूर्ख को और बहके हुए को प्रतिबोध देना अर्थात उसे समझा पाना निहायत ही कठिन कार्य है। इसलिए अब ये लोग समझाने से समझने वाले नहीं...ये लातों के भूत हैं, लातों से ही मानेंगे।

क्या वास्तव में धर्म एक अनावश्यक ढोंग है ?

sarita gujar said...

मेरी तमाम मुस्लिम दोस्तों को देखती हूं....पर इस चांडाल चौकङी का कोई जवाब नहीं......क्यों कि ये मुसलमानों के नाम पर ......हैं....मुसलमान तो फिरदौस जी हैं....

Unknown said...

@आपसे अनुरोध (नहीं) है कमेंटस moderation लगालो फिर झूठ ही कह सकोगे मुझे ध‍मकियां दी जा रही हैं, ऐसे खुली कमेंटस में सच कहने की आवश्‍यकता ही नहीं रहती अपने आप दूसरों को दिखायी देती हैं ध‍मकियां

दोस्‍तो आओ हम असामाजिक तत्वों का बहिष्कार करने में मदद करें

ब्लॉगवाणी से अनुरोध : असामाजिक तत्वों का बहिष्कार करे...

http://firdausdiary.blogspot.com/2010/04/blog-post_18.html

Kulwant Happy said...

ए मौला रहमत कर,
सोच को सलामत कर
कोई तो करामात कर
हिन्दु मुस्लिम मिटा,
सब एक जमात कर

DR. ANWER JAMAL said...

@ भाई गिरी ! आप बेशक विरोध करें लेकिन .....
खैर आप जो चाहे करें , अब एक बार आपसे प्यार कर बैठे तो आपको हम अपने दिल से तो निकल नहीं सकते . आप तो हमें minus vote देते हो जबकि हमने आप को कल भी पलुस में vote किया था .

DR. ANWER JAMAL said...

@ भाई गिरी जी ! ये टिपण्णी कि थी आज . सोचा आप से चेक करवा लूं . कोई ग़लती हो बता देना , मैं सुधार लूँगा .
@ जनाब महक जी ! बाबा रामदेव जी से आपको लाभ मिला , दूसरों कि बीमारियाँ भी दूर हुईं , इसकी मैं तारीफ करता हूँ . समाज कि भलाई में हर मौके पर हम उनके साथ खड़े होकर उनके हाथ मजबूत करेंगे . लेकिन किसी के बड़े नाम को देख कर मैं अपने तर्क और चिंतन का गला तो नहीं घोंट सकता . योग का मकसद है आत्म ज्ञान कि प्राप्ति . योग दर्शन में कुल १९४ सूत्र हैं , उनमे से केवल १ सूत्र नंबर ९७ में आसन का बयान है . गौण विषय को मुख्य और मुख्य को गौण बना देना तो योगदर्शन कार पतंजलि का अनुसरण नहीं कहलायेगा . दुर्भाग्य से आज योग को पश्चिम के नज़रिए से देखा जा रहा है . पश्चिम ने योग को exercise और तमाशा बना कर रख दिया है .
आपको मेरे वचन से दुःख हुआ , मैं आप से माफ़ी मांगता हूँ . आपका आदर भी ज़रूरी है और सत्य कहना भी .

Anonymous said...

"धर्म से समाज का जन्म कभी भी नहीं हुआ है, हाँ समाज से ही धर्म का जन्म हुआ है।"
विचारनीय वचन