सलीम साहेब पहले तो आप खुद एक अच्छा मुसलमान बन कर के दिखाइए उसके बाद अपने उन सारे भाई बंधू लोगो को सही इस्लाम की शिक्षा दीजिये , जिनके अन्दर सिर्फ कुरान -कुरान भरा पड़ा है। अरे कंही से तो इन्सान भी नज़र आवो । कुरान और मोहम्मद साहेब से पहले भी दुनिया थी और शायद आज से ज्यादा ही खुबसूरत थी। कुरान तो सिर्फ अरबियन समाज के इर्द गिर्द ही घुमती है। लेकिन कुछ तो क़द्र करो अपनी मातावो और अपनी बहनों का। कुछ तो क़द्र करो अपने देश के संविधान का। कुछ तो क़द्र करो अपने पूर्वजो का ।
तुम्हे गाय के मूत्र से इतनी दिक्कत होती है तो क्यों खाते हो आयुर्वेदिक और इंग्लिश दवाइयों को। क्या पता किसी और जानवर का मूत्र या हड्डी मिली हो किसी दवा मैं, और क्या पता वो जानवर तुम्हारे लिए हराम हो। गाय का मूत्र मिला प्रसाद खाने मैं आपको इतनी तकलीफ हो रही है , मगर जानवरों के मल-मूत्र की थैली मसाले के साथ पका कर के खाने मैं तो बड़ा ही आनंद आता होगा।
अफगानिस्तान मैं सारे तालिबानियों से पूरी अफगान जनता परेशान हैं। कश्मीर का आम आदमी पाकिस्तानी मुस्लिम आतंकवादियो से परेशान है। वो पाकिस्तान जिसने अपने देश मैं तालिबानियों के कहने पर इशलामिक कानून लागु किया , खुद ही अपने बुने जाल मैं फंस गया है। क्या वो लोग कुरान को नहीं मानते है। अगर नहीं मानते हैं तो फिर अपने आप को मुसलमान क्यों कहते हैं । और अगर अपने आप को मुसलमान मानते हैं तो क्या कुरान उन्हें कत्ले आम की इजाजत देता है। क्यों पाकिस्तान और अफगानिस्तान मैं मुस्लिम महिलावो की स्थिति दिन प्रतिदिन बिगडती जा रही है। क्या वंहा पर आप जैसा कोई कुरान का विद्वान नहीं है क्या।
मेरे प्रिय सलीम खान साहेब मेरे द्वारा कहे गए किसी भी शब्द को दिल पर मत लीजियेगा हाँ दिमाग पर जरुर लीजियेगा।
अरे प्यार करना तो कोई हिन्दुस्तानियों से सीखे । हम तो इंसानों के साथ -साथ जानवरों से भी प्यार करते हैं। चिड़ियों, पेड़ पौधों से प्यार करते हैं । नदियों , नालो, तालाबो और कुंवो से प्यार करते हैं। मछलियों से प्यार करते हैं। अपने देश की मिटटी से प्यार करते हैं , अपने देश के पर्वतों से प्यार करते हैं। अपने उन पूर्वजो से प्यार करते हैं जिन्होंने हमें यह प्यार की राह दिखाई है। हम तो हर उस जीव और निर्जीव वस्तु से प्यार करते हैं जो इस संसार मैं कंही ना कंही विराजमान है। सच्चा प्यार ही सच्ची पूजा है, श्रीमान सलीम खान साहेब। छोडिये ये वेद-कुरान और हिन्दू मुष्लिम का राग।
तुम्हे गाय के मूत्र से इतनी दिक्कत होती है तो क्यों खाते हो आयुर्वेदिक और इंग्लिश दवाइयों को। क्या पता किसी और जानवर का मूत्र या हड्डी मिली हो किसी दवा मैं, और क्या पता वो जानवर तुम्हारे लिए हराम हो। गाय का मूत्र मिला प्रसाद खाने मैं आपको इतनी तकलीफ हो रही है , मगर जानवरों के मल-मूत्र की थैली मसाले के साथ पका कर के खाने मैं तो बड़ा ही आनंद आता होगा।
अफगानिस्तान मैं सारे तालिबानियों से पूरी अफगान जनता परेशान हैं। कश्मीर का आम आदमी पाकिस्तानी मुस्लिम आतंकवादियो से परेशान है। वो पाकिस्तान जिसने अपने देश मैं तालिबानियों के कहने पर इशलामिक कानून लागु किया , खुद ही अपने बुने जाल मैं फंस गया है। क्या वो लोग कुरान को नहीं मानते है। अगर नहीं मानते हैं तो फिर अपने आप को मुसलमान क्यों कहते हैं । और अगर अपने आप को मुसलमान मानते हैं तो क्या कुरान उन्हें कत्ले आम की इजाजत देता है। क्यों पाकिस्तान और अफगानिस्तान मैं मुस्लिम महिलावो की स्थिति दिन प्रतिदिन बिगडती जा रही है। क्या वंहा पर आप जैसा कोई कुरान का विद्वान नहीं है क्या।
मेरे प्रिय सलीम खान साहेब मेरे द्वारा कहे गए किसी भी शब्द को दिल पर मत लीजियेगा हाँ दिमाग पर जरुर लीजियेगा।
अरे प्यार करना तो कोई हिन्दुस्तानियों से सीखे । हम तो इंसानों के साथ -साथ जानवरों से भी प्यार करते हैं। चिड़ियों, पेड़ पौधों से प्यार करते हैं । नदियों , नालो, तालाबो और कुंवो से प्यार करते हैं। मछलियों से प्यार करते हैं। अपने देश की मिटटी से प्यार करते हैं , अपने देश के पर्वतों से प्यार करते हैं। अपने उन पूर्वजो से प्यार करते हैं जिन्होंने हमें यह प्यार की राह दिखाई है। हम तो हर उस जीव और निर्जीव वस्तु से प्यार करते हैं जो इस संसार मैं कंही ना कंही विराजमान है। सच्चा प्यार ही सच्ची पूजा है, श्रीमान सलीम खान साहेब। छोडिये ये वेद-कुरान और हिन्दू मुष्लिम का राग।
11 comments:
अरे-अरे ये आप किसको समझाने निकल पड़े ।आपने वो कहानी नहीं सुनी कुयें और समुद्र के मेंढक वाली। समुद्र के मेंढक ने कितना समझाया उस कुंयें के मेंढ़क को कि समुद्र कुयें से बड़ा होता है पर कुयें का मेंढक कहां माना। उसमें उस कुयें के मेंढक का क्या कसूर वेचारा कभी कुयें से वाहर जो नहीं गया था। हिन्दूस्थानी संस्कृति समुद्र है पर इसे वो ही समझ सकता है जिसके अन्दर इनसान का दिल हो ....जिनका दिलोदिमाग इन्सानों और पशुओं को हलाल करते-कतरे खुद ...बन चुका हो वो भला इस संस्कृति को क्या समझेंगे.
आपसे सहमत
फ़िरदौस जी, भी इंसानियत और भारतीय संस्कृति की बात कर रही हैं तो आज उन्हें काफ़िर ही घोषित कर दिया गया है. सलीम खान ने अपने ब्लॉग पर पोस्ट लिखकर फ़िरदौस जी पर गंभीर आरोप लगाये हैं. इस्लाम का प्रचार करने वाले सलीम खान कितने सभ्य (असभ्य या जंगली कहना उचित रहेगा) हैं, आपके बारे में लिखी इनकी पोस्ट देखकर ही पता चल जाता है.
दिमाग़ से पैदल ये कुतर्की भारत को भी तालिबान बनाने पर तुले हुए हैं, जब इन्हें भरतीय संस्कृति से इतनी ही नफ़रत है तो क्यों न यह अरब जाकर ही बस जाए. इस देश को इन जैसे तालिबानियों की ज़रूरत नहीं.
आज फ़िरदौस जी जैसे मुसलमानों की देश को बहुत ज़्यादा ज़रूरत है, साथ ही उनके अभियान को समर्थन देने की, ताकि और देशभक्त लोग आगे आ सकें !!!
आपसे सहमत
फ़िरदौस जी, भी इंसानियत और भारतीय संस्कृति की बात कर रही हैं तो आज उन्हें काफ़िर ही घोषित कर दिया गया है. सलीम खान ने अपने ब्लॉग पर पोस्ट लिखकर फ़िरदौस जी पर गंभीर आरोप लगाये हैं. इस्लाम का प्रचार करने वाले सलीम खान कितने सभ्य (असभ्य या जंगली कहना उचित रहेगा) हैं, आपके बारे में लिखी इनकी पोस्ट देखकर ही पता चल जाता है.
दिमाग़ से पैदल ये कुतर्की भारत को भी तालिबान बनाने पर तुले हुए हैं, जब इन्हें भरतीय संस्कृति से इतनी ही नफ़रत है तो क्यों न यह अरब जाकर ही बस जाए. इस देश को इन जैसे तालिबानियों की ज़रूरत नहीं.
आज फ़िरदौस जी जैसे मुसलमानों की देश को बहुत ज़्यादा ज़रूरत है, साथ ही उनके अभियान को समर्थन देने की, ताकि और देशभक्त लोग आगे आ सकें !!!
आपसे सहमत
फ़िरदौस जी, भी इंसानियत और भारतीय संस्कृति की बात कर रही हैं तो आज उन्हें काफ़िर ही घोषित कर दिया गया है. सलीम खान ने अपने ब्लॉग पर पोस्ट लिखकर फ़िरदौस जी पर गंभीर आरोप लगाये हैं. इस्लाम का प्रचार करने वाले सलीम खान कितने सभ्य (असभ्य या जंगली कहना उचित रहेगा) हैं, आपके बारे में लिखी इनकी पोस्ट देखकर ही पता चल जाता है.
दिमाग़ से पैदल ये कुतर्की भारत को भी तालिबान बनाने पर तुले हुए हैं, जब इन्हें भरतीय संस्कृति से इतनी ही नफ़रत है तो क्यों न यह अरब जाकर ही बस जाए. इस देश को इन जैसे तालिबानियों की ज़रूरत नहीं.
आज फ़िरदौस जी जैसे मुसलमानों की देश को बहुत ज़्यादा ज़रूरत है, साथ ही उनके अभियान को समर्थन देने की, ताकि और देशभक्त लोग आगे आ सकें !!!
आप सब से सहमत..
@ Giri ji ki nazre inayat hai ye link - गाय काटने वाले मुसलमानों की प्रार्थना ऊपर वाला कैसे सुन सकता है जी ? - भोले भाले गिरी जी ने पुराण मर्मज्ञ महर जी को टोका ।
पार्ट 4 Pan ke desh me
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2010/04/question.html
Aur khush hokar Ek vote bator Eidy peshgi apko diya .
Anwar saheb bus yehi aap main kami hai ki aap sirf apni kahte hain. sunane ki takat aap main nahi hai.
गिरी भाई, सच्ची बात सुनते ही पिछवाड़े में मिर्ची लगने की परम्परा बहुत पुरानी है।
फ़िरदौस ने अपनी पिछली कुछ पोस्टों से ऐसी आग सुलगाई है कि बरेली से लेकर देवबन्द तक दौड़े फ़िर रहे हैं।
कैरानवी, अनवर को अपना गुरु बताता है, वाकई जमाल गोटे के लेख देखकर ही समझ आता है कि शागिर्दी में पागलपन जमाल से ही मिला है सलीम और कैरानवी दोनों को। विश्वास न हो तो जमाल की यहाँ टिप्पणी देख लो।
फ़िरदौस बहन बधाई की पात्र हैं, इतनी मिर्ची तो इन लोगों को हिन्दूवादियों के लेख पढ कर भी नहीं लगती।
Bilkul sahi kah rahe hain. inhe mirchi kuch jyada hi lagti hai. Inhe khud nahi pata hota hai ki bolna chaihye aur kya bole dete hain ye log.
वो कहते ना; सच्ची बात जैसे ..... पे लात!अब किसी को केवल बात ही सुनाई देती है, किसी को लात भी दिखाई दे जाती है!
सलीम भाई और डॉक्टर साहब अगर खुद को मुसलमान से पहले इंसान मान ले तो उनकी एनेर्जी काफी काम आ सकती है इनके लिए जो देश के विकास में सहायक भी हो सकती है!लेकिन हम और आप इतने अच्छे सपेरे कहाँ जो भैंस भी बीन तान पर नाचने लग जाए!
कुंवर जी,
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