कैरान्वी साहेब , मुझे वाइरस दिखाने से अच्छा है की खुद में वाइरस देखो। मैंने तो सिर्फ प्रितिबिम्ब दिखाया है, एक छोटा सा। लेख आपके फायदे मैं था इस लिए आप शांत है । नहीं तो आप क्या समझाते मुझे। समझाना ही है तो समझाइये अपने डॉ अनवर को ।
कंहा थे आप जब अनवर साहेब खुले रूप मैं धर्म ग्रंथो के बारे मैं उल्टा पुल्टा लिख रहे थे। मैंने तो सिर्फ आपके पवित्र कुरान की कॉपी दिखाई है।
किसी के धर्म ग्रंथो में से सिर्फ कमिया निकाल कर के लोगो के सामने रखना कंहा की समझदारी थी। तब तो बहुत गुरु जी गुरु जी कह कर के सर पे चढ़ा रखा thaa।
और मैंने फिर भी अपने संस्कारो का परिचय देते हुए लोगो को ये दिखाने की कोशिश की है धर्म ग्रंथो का आधार हजारो साल पहले के समाज के ऊपर आधारित था ना की आज के हिसाब से ।
कंहा थे आप जब अनवर साहेब खुले रूप मैं धर्म ग्रंथो के बारे मैं उल्टा पुल्टा लिख रहे थे। मैंने तो सिर्फ आपके पवित्र कुरान की कॉपी दिखाई है।
किसी के धर्म ग्रंथो में से सिर्फ कमिया निकाल कर के लोगो के सामने रखना कंहा की समझदारी थी। तब तो बहुत गुरु जी गुरु जी कह कर के सर पे चढ़ा रखा thaa।
और मैंने फिर भी अपने संस्कारो का परिचय देते हुए लोगो को ये दिखाने की कोशिश की है धर्म ग्रंथो का आधार हजारो साल पहले के समाज के ऊपर आधारित था ना की आज के हिसाब से ।
14 comments:
giri ji kya is dhmki pr koi saibr kanoon nhi jo karyvahi ki jaye
ye hi in ki asliyt hai hai aur hindu fir bhi nhi smjhte hai
dr. ved vyathit
वेद जी, नमस्कार,
कानून भी है और सजा भी मगर देखते हैं की हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथो के बारे मैं कितना जहर उगलते हैं। अब दिख रही है इनकी कट्टरता।
किसी नें बिल्कुल सच कहा है कि मूर्खों के सींग नहीं हुआ करते :-)
अजी आप मस्त रहो,
ये कठमुल्ले इतना घटिया और गाली गलौज वाली भाषा का प्रयोग करते हैं, कि इन्हे सभ्य नहीं कहा जा सकता| शिव का मूर्ति पूजा वाला स्वरूप, राम / क़ृष्ण का सगुण रूप तो ये कभी स्वीकार नहीं करेंगे और सर्व धर्म सद्भाव की शिक्षा देते हैं|
पहले तो इस्लाम के प्रति थोड़ी बहुत जो भी श्रद्धा थी, वह भी इन लोगों ने उसका वास्तविक रूप दिखला कर समाप्त कर दिया|
आज समझ में आया कि क्यों ये जहाँ जाते हैं, वहीं लात क्यों खाते हैं और पश्चिमी देशों में मुस्लिम होना गाली होने के बराबर क्यों हैं...
ईश्वर इन्हें सद् बुद्धि दें |
@ Tarkeshwar Giri
तारकेश्वर जी, वैसे तो मैंने अनवर साहब की काफी किताबें पढ़ी हैं, परन्तु ब्लॉग अभी पढना शुरू किए हैं. फिर भी मुझे यकीन है कि किसी भी धर्म को उन्होंने बुरा नहीं कहा होगा, जहाँ तक प्रश्नों का सवाल है, तो अगर किसी ने प्रश्न किये होंगे, तो उत्तर अवश्य ही दिए हो सकते हैं.
वैसे किसी भी धर्म को बुरा कहना गलत है, मैं इसका समर्थक नहीं हूँ. हाँ अगर किसी को भी किसी की आस्था के प्रति कोई प्रश्न है तो अवश्य ही अच्छे शब्दों का प्रयोग करके मालूम किये जा सकते हैं. अगर आपके प्रश्न हैं तो मैं अवश्य प्रयत्न करूँगा कि उनके उत्तर दे सकूँ.
मेरा और तुम्हारा अर्थात दुनिया के हर मनुष्य का कर्तव्य यह है, कि अगर उसे लगता है, कि कोई बात दुनिया के लिए अच्छी है, तो उसे दुनिया के सामने लाया जाय. अब यह लोगों का काम है, कि उसे अच्छा माने अथवा ना माने. इसमें किसी के साथ कोई भी जोर-ज़बरदस्ती नहीं होनी चाहिए.
वैसे आप की यह बात सर्वथा गलत है कि हजारों साल पहले लिखे गए धर्म ग्रन्थ, पहले के समाज के ऊपर आधारित थे. प्रभु का ज्ञान समय का बंधक नहीं होता, वह तो हमेशा के लिए होता है. चाहे वह वेद हों, बाइबल हों अथवा क़ुरान-ए -करीम. हाँ यह अवश्य है कि कुछ लोगो ने स्वार्थ अथवा लोभ की खातिर प्रभु के शब्दों में अपने शब्द मिला दिए, अथवा उनको तोड़-मरोड़ कर पेश कर दिया हो. और इसी लिए क़ुरान-ए -करीम को उतरा गया, कि ना तो इसमें बदलाव हो सकता है और ना ही इसके जैसा ग्रन्थ इसके बाद कोई दूसरा लिखा जा सकता है.
आपने जो अपने लेख में प्रश्न लिखे हैं उनके उत्तर भी मैं जल्द ही देने का प्रयास कुरंगा.
तारकेश्वर जी, आपने ऐसा कुछ नहीं कहा जिसपर किसी मुसलमान को एतराज़ हो. और उमर साहब का भी यही मतलब है. रही बात आयतों के सन्दर्भ की तो निस्संदेह शांतिकाल में वह आयतें लागू नहीं होतीं. लेकिन ऐसी सिचुएशन आज भी आ सकती है जब ये आयतें अर्थपूर्ण हो जायेंगी. जैसे की उस समय, जब कोई दुश्मन देश हमारे ऊपर हमला कर दे. या कुछ उपद्रवी किसी निर्दोष का घर जलाने की कोशिश करें.
गिरी जी,
यहाँ मैं उमर जी या उनके जैसे कुछ नासमझ टिप्पणीकारों को जवाब में लम्बी टिप्पणी(आप इसे मेरा पोस्ट समझिये) लिख रहा हूँ -
ऐसे मुद्दों पर पहले भी कहा हूँ, आज फिर दोहरा रहा हूँ. "दुनिया में हरेक व्यक्ति को सबकी आस्था का सम्मान करना सीखना पड़ेगा. कोई चाहे आस्तिक हो नास्तिक हो इस्लामिक हो या गैर इस्लामिक हो. सभी नागरिक होते हैं और सबमे प्रतिभा और पोटेंशिअल होता है."
मेरे विचार में,
मैं("सिर्फ मानवीय मूल्यों में आस्था रखने वाला") ही इश्वर हूँ और प्रत्येक बुद्धिप्राप्त प्राणी इश्वर है. इस सृष्टि में दो ही चीज़ है... जान और बेजान (Living thing & Non-living thing) मनुष्य पिछले हज़ारो/अनगिनत सदियों से अपनी बुद्धि और चेतना का निरंतर प्रयोग करते हुए आज सूचना युग में विचरण कर रहा है. मैं चाहूँ तो वैदिक काल के ऋषि या इसा पूर्व महात्मा बुद्ध या इशु या मोहम्मद या जैनगुरु महावीर की तरह किसी नए धर्म/पंथ का ईजाद कर सकता हूँ और फुर्सत की उम्र रही तो महाकाव्य(पवित्र किताब धर्मग्रंथ holi-book ) भी रच सकता हूँ और भक्तों/अंध-भक्तों (अनुयायियों) की फ़ौज मिले तो दुनिया भर में ईश्वरीय सत्ता को नए तरीके से स्थापित कर सकता हूँ. लेकिन ऐसा कर के क्या होगा क्या पृथ्वी पर मानव समुदाय का सचमुच कल्याण हो जायेगा. शायद नहीं! होगा सिर्फ इतना की आने वाले शताब्दियों में एक और युग-पुरुष/धर्मगुरु/पैगम्बर इत्यादि के रूप में सुलभ और उसके द्वारा बनाए गए इश्वर (I-S-H-W-A-R या G-O-D या A-L-L-A-H या #-#-#) को धर्म-निरपेक्ष समाज/राज में एक पंथ/धर्म के रूप में मान्यता मिल जायेगी (क्यूंकि तबतक दुनिया के कुछ प्रतिशत आबादी इसके अनुयायी रहेंगे और मानवीयता का तकाजा है सर्व:धर्म:समभाव सबकी आस्था का सम्मान होगा). लेकिन क्या मानव समुदाय सच्चा मानव बन पायेगा. शायद नहीं. स्थिति आज की तरह या इससे भी त्रासद होगी... तभी तो एक सच्चा मानव (धार्मिक/नास्तिक/आस्तिक मानव) ऐसा दुःख देखकर इस पृथ्वी से अल्पायु में ही विदा हो गया जिनको हम स्वामी विवेकानंद नाम से जानते हैं.
हर विवेकशील प्राणी का दिल ही जानता है की वो क्यूँ ऐसा स्वयं पर विश्वास करता है या क्यूँ ऐसा तर्क औरों को देता है.
मेरा मानना है, एक उम्र के बाद सबको ब्रह्मज्ञान (स्वयं ज्ञान या सृष्टि-ज्ञान ) हो जाता है. अत: शान्ति बनाए रक्खे. मैं ज्ञान के तलाश में हूँ.... इसके लिए मुझे किसी अन्य के मंतव्यों/वक्तव्यों (वेद गीता पवित्र कुराने-करीम) की जरुरत नहीं होगी. ऐसा मेरा विश्वास है.
हज़रत मुहम्मद (सल्लललाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया है कि...किसी भी मुसलमान के नज़दीक सबसे बड़ा गुनाह किसी के दिल को ठेस पहुंचाना है...
अब ये बताने की जरुरत नहीं है की ठेस कब कब कैसे लगता है.
बेहतर होगा लेखक अपनी ऊर्जा राष्ट्र के नवनिर्माण में लगाएं. जो आज बारूद के ढेर पे है. वेद कुरआन को तार्किक बहस का मुद्दा न बनाकर, राष्ट्र हित में चिंतन करें. अपने आस पास युवाओं में वैश्विक और तकनिकी शिक्षा का प्रसार करें. केवल संस्कृति, तहजीब और उचित मानवीय व्यवहार एवं चारित्रिक गुणों को पुष्ट करने के लिए "वेद, कुरआन" का सन्दर्भ लेना श्रेयष्कर रहेगा. न की यह कहना की यही सही है और अंतिम है.
शुभ भाव
सुलभ
Note: CYBER LAW IS ACTIVE IN INDIA. SO BE CAREFULL.
सभी कचड़ा ब्लोगर साथियों, टिप्पणीकर्ताओं को आगाह किया जाता है की वे इस धर्म-निरपेक्ष देश में कायदे में रह कर ब्लोगरी करें. मैं कभी भी घटिया लेखकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकता हूँ.
आपसे सहमत पूरी तरह. आपको बहुत ही कम लोग ऐसे मिलेंगे जो हिन्दुओं का मखौल न उडायें और सही रूप में निरपेक्ष हों.
पं.डी.के.शर्मा"वत्स" जी से सहमत किसी नें (ब्लागिंग में हमने) बिल्कुल सच कहा है कि मूर्खों के सींग नहीं हुआ करते :-)
ईश्वर से प्रार्थना है कि आपकी अनवर साहब से 2 अप्रेल को मुलाकात हो जाये तब के लिये मैं आशा करता हूं सारे गिले शिकवे दूर हो जायेंगे, हो सके तो हमारे कैराना में जमुना में डुबकी लगाते जायें या आते हुये लगाये
My God, क्या धमकाते है लोग, वैसे सुलभ जी ने काफी अच्छा लिखा !
Godiyal ji ne achha musalman banae wali factory ka bhandafod kiya hai apne blog main :
मार-मार कर भी एक “सच्चा मुसलमान” बनाने की कवायद, कैसे, आइये देखें ?
दीनी तालीम हासिल करने के लिए दिल्ली के मदरसे में दाखिला लिए बच्चों के साथ मारपीट व अश्लील हरकत करने का मामला सामने आया है। मदरसे से भाग कर शनिवार सुबह पुराने गाजियाबाद रेलवे स्टेशन पर बदहवास हालत में भटक रहे चार किशोरों ने आपबीती सुनाकर मामले का खुलासा किया। पूरी खबर यहाँ पढ़ सकते है !
ये लोग इतने ही बेशर्म हैं....कोई तार्किक बात करना इनको नहीं आता है....इस तरह की धमकियों से कुछ होने वाला नहीं है....यही है इनका असली चेहरा
ye kar bi kya sakte hain . sirf Sir kalam hone se darte hain. ki kanhi koi fatwa na jari kar de.
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