बड़े बेआबरु होकर 'हमारी अन्जुमन' से हम निकलें।
ये सिर्फ नकारात्मक सोच का ही परिणाम है की एक ब्लोगेर पाकिस्तान मैं हुए सिखों की हत्या के विरोध मैं कुछ लिखता तो उसी के समाज के लोग उसके ब्लॉग का बहिस्कार करते हैं और बाद मैं धार्मिक ब्लॉग का हवाला देते हुए माफ़ी भी मांगते हैं। लेकिन इससे हमारी अंजुमन के करता धर्ता श्रीमान सलीम खान और श्रीमान उमर साहेब के विचारो के बारे मैं लोगो को पता चलता है की, एक भारतीय मुस्लमान होते हुए इन लोगो को ये तकलीफ हुई है कोई पाकिस्तानी सिखों के बारे मैं इतने सहानिभूति भरी बीतें कैसे कर रहें है । उसका परिणाम श्रीमान सिद्दीकी साहेब के सामने है।http://haqbaat.blogspot.com/2010/03/blog-post.html
5 comments:
aapne ek achchhi post se milwaya. yahi antar hai ek bhartiya aur ek talibani musalman me.
कल जिस बात का जिक्र मैंने अपनी पोस्ट में किया था अगर आपने उसे पढ़ा हो तो बात खुद व खुद समझ में आ जायेगी कि कुछ कायर कितने गिरे और घटिया है ! यहाँ ये गिरे हुए चरित्र दूसरे लोगो को "कुरआन" और 'कुरान' का उच्चारण सिखलाते फिरते है और दूसरे के धर्म के प्रति क्या जहर उगलते है, यह इसकी "राहुल" नाम की आईडी और " धर्म की बात" वाले ब्लॉग से और बाद में दूसरी आईडी नत्थू गोदियाल से किये गए कोमेंट और दिए गए २५ वे कॉमेंट के रिफरेन्स को गौर से देखे तो सारी बात समझ में आजायेगी ! आज भी यहाँ बहुत से नमकहराम ऐसे है जो खाते इस देश का है और गुणगान किसी और का करते है !
जनाब जिस सिखों से सम्बन्धित पोस्ट की आप बात कर रहे हैं, उस पर तुरन्त ही मेरी प्रतिक्रिया दी गयी थी, कुछ कमी रह गयी हो बताना
Mohammed Umar Kairanvi said...
रजिया जी से सहमत, पाकिस्तान हमेशा हमारे लिये शर्मिन्दगी का कारण रहा है, हम पाकिस्तान में सिखों सहित इन्सानियत की हत्याओं का विरोध करते रहे हैं, फिर से करते हैं, हमेशा करते रहेंगे, हर तरह करते रहेंगे
पाकिस्तान में सिखों की हत्याओं का विरोध करें भारतीय मुसलमान
http://haqbaat.blogspot.com/2010/02/blog-post_23.html
@ Tarkeshwar Giri जी कुछ नासमझ कोट का बटन कहीं मिल जाये तो हर एक के लगा के देखते हैं कि किसके कोट के बटनों से मिलता है, जिधर की बातें की गयी उधर किसी ईमेल की आवश्यकता नहीं होती, उधर कोई भी कभी भी नत्थू बन सकता है, जैसे मक्कार इधर हैं उससे अनुमान होता है चोर मचाये शोर
आप जाकर देखो दोनों तरफ एक ईमेल का प्रयोग नहीं हुआ, उधर इमेल, वेब, कमेंटस लिखना होता है, नत्थू गोदियाल बनके कुछ भी लिख सकते हो,
कैरानवी साहब कम से कम इस बात पर तो आपका विरोध जायज नहीं थे.....मारवाङी मैं एक कहावत है ....खाय खसम को और गीत गावे बीरा का...
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