आखिर क़ुरबानी में जानवरों को ही कुर्बान क्यों किया जाता है । क्या इंसानों और जानवरों को जीवन देने वाला भगवान या आल्लाह सचमुच इस बात के लिए आज्ञा देता है इंसानों को ? शायद नही, क्योंकि उसकी नजर में सभी जीव जंतु चाहे वो इन्सान के रूप में हो या जानवर के रूप में सब बराबर हैं। बलि की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है, हजारो सालो से इंसानों ने अपनी मनो कामना पूर्ण करने के लिए देवी और देवातावो और अल्लाह के सामने जानवरों का क़त्ल किया है, मगर कालांतर में आते -आते कुछ समाज ने इस प्रथा का बहिस्कार भी किया है, खास कर के अगर उत्तर भारत में देखा जाए तो माता वैष्णो को बलि के रूप में नारिअल तोडा जाता है . साउथ इंडिया में भी बलि का रिवाज ख़त्म हो गया है, नेपाल या गडवाल में कुछ रूप में बलि की प्रथा आज भी प्रचलित है साथ साथ बंगाल और आसाम में भी।
भारत के (हिंदू वर्ग) के लोगो ने अपने आप को समय के साथ बदलना सिखा है और सदियों से जब जब जरुरत पड़ती रही है अपने आप को और अपनी परम्परा में अपनी जरुरत के हिसाब से बदलाव किया है, और सही भी है, आज अगर हमें चावल नही मिला तो हम रोटी ही खा लेंगे और दाल नही मिली तो सब्जी से कम चल जाएगा।
आज जरुरत है तो मुष्लिम समाज को अपनी परम्परा को बदलने की , जरुरी नही है की सदियों पुरानी परम्परा को आज भी उसी तरह से चलायें, समय के हिसाब से बहुत कुछ बदल गया है। किसी ज़माने में मुष्लिम धर्म में फ़िल्म और फोटो पर प्रतिबन्ध था मगर आज अफगानिस्तान को छोड़कर के लग भग हर देश का मुसलमान अपनी फोटो रखता है और फ़िल्म देखता है। बुर्के का रिवाज भी बहुत कम प्रचलन में देखा जाता है।
भारत के (हिंदू वर्ग) के लोगो ने अपने आप को समय के साथ बदलना सिखा है और सदियों से जब जब जरुरत पड़ती रही है अपने आप को और अपनी परम्परा में अपनी जरुरत के हिसाब से बदलाव किया है, और सही भी है, आज अगर हमें चावल नही मिला तो हम रोटी ही खा लेंगे और दाल नही मिली तो सब्जी से कम चल जाएगा।
आज जरुरत है तो मुष्लिम समाज को अपनी परम्परा को बदलने की , जरुरी नही है की सदियों पुरानी परम्परा को आज भी उसी तरह से चलायें, समय के हिसाब से बहुत कुछ बदल गया है। किसी ज़माने में मुष्लिम धर्म में फ़िल्म और फोटो पर प्रतिबन्ध था मगर आज अफगानिस्तान को छोड़कर के लग भग हर देश का मुसलमान अपनी फोटो रखता है और फ़िल्म देखता है। बुर्के का रिवाज भी बहुत कम प्रचलन में देखा जाता है।
5 comments:
पुस्तक ''इस्लाम में परदा और नारी की हैसियत''..संछिप्त विवरण: सामूहिक जीवन में औरत और मर्द का संबंध किस तरह होना चाहिए, यह इंसानी सभ्यता की सब से अधिक पेचीदा और सब से अहम समस्या रही है, जिसके समाधान में बहुत पुराने ज़माने से आज तक दुनिया के सोचने-समझने वाले और विद्वान लोग परेशान हैं, जबकि इसके सही और कामयाब हल पर इंसान की भलाई और तरक्क़ी टिकी हुई है। इतिहास का पन्ना पलटने से पता चलता है कि प्राचीन काल की सभ्याताओं से लेकर आज के आधुनिक पिश्चमी सभ्यता तक किसी ने भी नारी के साथ सम्मान और और न्याय का बर्ताव नहीं किया है! वह सदैव दो अतियों के पाटन के बीच पिसती रही है। इस घोर अंधेरे में उसको रौशनी एक मात्र इस्लाम ने प्रदान किया है, जो सर्व संसार के रचयिता का एक प्राकृतिक धर्म है, जिस ने आकर नारी का सिर ऊँचा किया, उसे जीवन के सभी अधिकार प्रदान किये, समाज में उसका एक स्थान निर्धारित किया और उसके सतीत्व की सुरक्षा की..
इस पुस्तक में इतिहास से मिसालें दे कर यह स्पष्ट किया गिया है कि दुनिया वालों ने नारी के साथ क्या व्यवहार किया और
उसके कितने भयंकर प्रमाण सामने आये, इसके विपरीत इस्लाम धर्म ने नारी को क्या सम्मान दिया, उसकी नेचर के अनुकूल उसके लिये जीवन में क्या कार्य-क्षेत्र निर्धारित किये, उसके के रहन-सहन के क्या आचार नियमित किये तथा सामाजिक जीवन में मर्द और औरत के बीच संबंध का किस प्रकार एक संतुलित व्यवस्था प्रस्तुत किया जिसके समान कोई व्यवस्था नहीं। विशेष कर नारी के परदा (हिजाब) के मुद्दे को विस्तार रूप से उठाया गया है और इसके पीछे इस्लाम का उद्देश्य क्या है? उसका खुलासा किया गया है, तथा जो लोग नारी के परदा का कड़ा विरोध और उसका उपहास करते हैं, इसके पीछा उनका उद्देश्य क्या है और यह किस प्रकार उनके रास्ते का काँटा है, इस से भी अवगत कराया गया है। कुल मिलाकर वर्तमान समय के हर मुसलमान बल्कि हर बुद्धिमान को इस पुस्तक का अध्ययन करना चाहिए।
http://www.islamhouse.com/p/223546
फिल्म और फोटू पर आज भी प्रतिबंध है, सऊदी अरब में एक भी सिनेमा नहीं है, फोटू केवल आवश्यकता के लिए खिंचवाया जा सकता है जैसे पासपोर्ट बनवाना, नोकरी के लिए आवेदन आदि, बुर्के का रिवाज पर असर है, उतना भी नहीं कि एसे धार्मिक रूप में खत्म कर दिया गया हो, अल्लाह ने 1400 वर्ष पूर्व जो कुरआन में जो कह दिया वह न बदला है न बदलेगा, न कोई समर्थ है उसे बदलने में, कुरआन में शायद बुर्के नहीं परदे बारे में आया है, परदे और इस्लाम बारे में उपयोगी 250 प्रष्ठ की पुस्तक
''इस्लाम में पर्दा और नारी की हैसियत''
डायरेक्ट पुस्तक लिंक
कुरबानी बारे में अधिक जानकारी निम्न इस्लाम की 74 भाषाओं की वेबसाइट से ली जा सकती है,
http://www.islamhouse.com
qurbani jeev jatya nahi...
भई आपको ये भी नहीं पता कि कुरबानी तो बडे पुण्य का काम है...आपको तो इन ज्ञानियों से कुछ सीख लेनी चाहिए !
फलानी फलानी किताब में लिखा है....इसलिए ये बिल्कुल सही काम है :(
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