Friday, November 6, 2009

वो चिल्ला रहा था -लोग उसके टुकड़े -टुकड़े कर रहे थे -मैं सिर्फ़ देखता रह गया.

वो चिल्ला रहा था, जोर - जोर से रो रहा था, लोग उसके टुकड़े -टुकड़े कर रहे थे और मैं सड़क के दुसरे किनारे पर खड़ा हो कर के देखता ही रह गया। मैं अकेला कुछ कर भी तो नही सकता था , वो तो इतना डरा हुआ था की उसका सारा खून भी सूख चुका था, वो तो बस इस उम्मीद में था, की कोई कर के उसे बचा ले मगर उसकी सुनता कौन लोग तो उसे जड़ से काटने मैं ही ब्यस्त . सरकारी आदेश जो मिला था उन लोगो को सड़क के किनारे सालों से खड़े उन पुराने पेडों को ओलंपिक खेल की भेंट में चढाने के लिए/ सरकार दिल्ली को सुंदर बनाने में लगी हुई है, हर तरफ़ निर्माण का काम बड़ी तेजी से चालू है, चाहे पुल को बनाने में या सड़क को चौडा करने में , इस समय दिल्ली सरकार पुरी तरह से रोड पर ब्यस्त है, सरकार विकास के सामने इंतनी अंधी हो चुकी है, की उसे पर्यावरण की कोई चिंता ही नही है। जिनके स्वागत के लिए इतनी तैयारी सरकार कर रही है , अगर उनको पता चल जाए तो शायद वो लोग दिल्ली आना ही भूल जायें। कुछ पेड़ तो जिनकी उम्र ७० को पार कर गई थी उनको भी कुछ तो नए सबको काट दिया गया, दिल्ली में इस समय अगर सड़क पर कुछ है तो वो सिर्फ़ धुल और मिटटी। ये कैसा विकास हो रहा है दिल्ली का ,
अगर विकास को सही दिशा में रख कर के निर्माण कार्य किए जायें कुछ पेडों को जरुर बचाया जा सकता है।

आपकी की क्या राय है, जरुर बतायें।

6 comments:

श्यामल सुमन said...

कट जायेंगे पेड़ तो होगा फिर क्या हाल।
अभी प्रदूषण इस कदर जगत बहुत बेहाल।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

संगीता पुरी said...

प्रकृति से इतना बडा खिलवाड .. क्‍या हो रहा है ??

Mithilesh dubey said...

बहुत ही दुःखदायक है।

Aadarsh Rathore said...

दुखद है...

परमजीत सिहँ बाली said...

पता नही तरक्की के नाम पर अभी प्रकृति का कितना विनाश किया जाएगा ......

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

जी हां , सड़क पर आते जाते मैं भी इसी तरह रोज कूढ़ता हूँ, आजकल जब भी निजामुदीन ब्रिज पर अक्षरधाम के पास से गुजरता हूँ तो जुबा पर सिर्फ और सिर्फ गालिया ही होती है !