बड़ा अजीब जमाना है, आज कल का, अभी कल की बात है मैं कलर चैनेल पर एक प्रोग्राम देख रहा था प्रोग्राम को छोटे-छोटे बच्चे प्रेजेंट कर रहे थे \
एक छोटी सी बच्ची मंच पर आती है और अपना प्रोग्राम चालू करती है,उस बच्ची का प्रोग्राम बिल्कुल ही फूहड़ होता है ,लेकिन उस समय बच्ची के माँ और बाप बड़े ही चटकारे ले ले कर के उसके प्रोग्राम को देखते है, उस दौरान उस प्रोग्राम मैं उपस्दिथ आयोजक भी बड़े ही मजे ले ले कर उस प्रोग्राम का आन्नद लेते हैं, लेकिन मेरे जैसा दर्सक उस प्रोग्राम को देख कर के इतना दुखी होता की बस क्या बतावूँ ,मेरा तो दिमाग ख़राब हो गया की हे प्रभु ये आज कल के कैसे माता और पिता है जी इस छोटी सी उम्र मैं अपने बच्चो को सेक्स का पाठ पढ़ा कर मंच पर प्रस्तुत कर रहें है।
किधर गया वो हमारा संस्कार जब हम अपने बच्चो को अपनी संस्कृत के बारे मैं बताना चालू करेंगे .
4 comments:
jald hii
हर जगह पैसा हावी है तारकेश्वर जी। इन छोटे-छोटे बच्चे-बच्चियों को जिन्हें अपने गाये गये गानों का शायद अर्थ भी मालूम नहीं होगा, उनको जब मंच पर फूहड़ता की हद पार करते देखता हूं तो इच्छा होती है कि उनके मां बाप को वहीं जा दो हाथ लगाये जायें। पर किस-किस को रोकेंगें हजारों हजार अपने दूधमुंहों को गोद में उठाये अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। खेलने खाने की उम्र में बच्चों को कमाऊ मशीन बना कर रख दिया है, इन अपने जीवन में खुद कुछ ना कर पाने वाले असफल लोगों ने।
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