Tuesday, September 20, 2011

मोदी और इस्लामिक टोपी.




मोदी को कुछ मुस्लिम धर्म गुरुवो ने इस्लामिक टोपी पहनने को दी , जिसे नरेन्द्र मोदी ने लेने से मना कर दिया. उसकी जगह उन्होंने ने धार्मिक गुरु से शाल लेना उचित समझा.

इससे कौन नाराज हुआ और कौन नहीं . लेकिन खबर जंगल कि आग कि तरह फ़ैल जरुर गई. और अगर मोदी महोदय उस टोपी को ले भी लेते तो कुछ खास प्रतिक्रिया नहीं आती. लोगो कि नजरो में भाई चारा जरुर बढता. लेकिन क्या टोपी ले कर के पहन लेने से दूरियां ख़त्म हो जाएँगी. शायद नहीं.

इसी तरह अगर कोई हिन्दू धर्म गुरु किसी मुस्लिम नेता को गेरुआ वस्त्र या ऐसी कोई भी धार्मिक वस्तु भेंट देता तो क्या होता. किसी को पता हैं ? ..................में बताता हूँ. ............................... कंही ना कंही से फ़तवा जारी हो जाता.

जंहा तक मेरा विचार हैं, कि धार्मिक वस्तुए उसी इन्सान को भेंट दी जानी चाहिए जो उसकी इज्जत कर सके. मुस्लिम टोपी कि जितनी इज्जत एक मुसलमान कर सकता हैं , शायद एक हिन्दू या कोई और नहीं कर सकता. हिन्दू अगर अपनी धार्मिक वस्तु किसी और धर्म को मानने वाले को देगा तो शायद अपमान ही होगा.

मोदी ने टोपी ना लेकर के किसी वर्ग का अपमान होने से बचाया हैं. क्योंकि मोदी उसकी वो इज्जत नहीं कर पाते जो एक मुसलमान लोग कर सकते हैं.

13 comments:

S.M.Masoom said...

. हिन्दू अगर अपनी धार्मिक वस्तु किसी और धर्म को मानने वाले को देगा तो शायद अपमान ही होगा
,
किसी और धर्म कि बात तो नहीं जानता लेकिन मुसलमान को देगा तो अपमान नहीं होगा.

Taarkeshwar Giri said...

प्रिय मासूम साहेब में आपको एक उदहारण देता हूँ. : मानिये कि में आपको दो धार्मिक पुस्तके एक गीता और दूसरी कुरान भेंट देता हूँ. तो दोनों को आप सामान इज्जत देंगे मगर कुरान को रोज आप माथे पे लगायंगे पूजा करेंगे और गीता कि (सिर्फ सजा कर रख देंगे}???????????????????????????? . यानि कि गीता आपके लिए अनुपयोगी साबित होगी.

दिनेशराय द्विवेदी said...

फिजूल की बात। इंसान ही इस्लामिक, ईसाई, सनातनी, शैव वैष्णव आदि होते हैं, वस्तुएँ नहीं। ये खास बीमारी तो खुद इंसान ने पैदा की है, वही भुगत रहा है।

S.M.Masoom said...

तार्केश्वेर जी मेरी नज़र में मेरी माँ कि जगह आप कि माँ नहीं ले सकती यह सत्य है लेकिन माँ कि अजमत और उसकी मुहब्बत कि कद्र ज़रूरी हुआ करती है. आप कि माँ यदि मुझे प्यार देगी तो में उसे वही इज्ज़त दूंगा जो अपनी माँ को देता हूँ जबकि दर्जे में फर्क अवश्य होगा. वैसे ही गीता और कुरान है.
किसी के दिल को दुखाना इस्लाम में मना है.

Shah Nawaz said...

Tarkeshwar bhai... Topi Topi hai, ismein Islamic ya gair-Islamic jaisi loi cheez nahi hoti... Kyonki Topi ka maqsad sar dhankna bhar hota hai... Vaise topi izzat ka Paimana bhi hoti hai...

DR. ANWER JAMAL said...

आप जानते तो यह बात न लिखते कि गेरूआ वस्त्र पहनने पर फ़तवा जारी हो जाता।
आपको पता होना चाहिए कि मुसलमान मौलाना सफ़ेद लिबास पहनते हैं और चिश्ती साबरी दरवेश गेरूआ रंग भी इस्तेमाल करते हैं। हिंदू आचार्य और सन्यासी भी इन दोनों रंगों को इस्तेमाल करते हैं और दोनों ने ही आज तक इन दोनों रंगों को लेकर कोई फतवा जारी नहीं किया है।
मोदी भाई साहब ने मुस्लिम टोपी नहीं ली तो उनकी इच्छा।
इसमें मुसलमानों को नाराज नहीं होना चाहिए।
वैसे भी नाराज तो उससे हुआ जाता है जिससे प्यार का कोई रिश्ता हो।
हम तो उनसे नाराज हैं जो टोपियां पहन पहन कर वहां गए, मोदी जी को 'टोपी पहनाने'।

Unknown said...

मेरी नजर में तो इस घटना के बाद मोदीजी का कद और बढ़ गया है क्यूंकि अगर वो तुष्टिकरण की राजनीति कर रहे होते तो वो निश्चय ही टोपी पहनते|

Anonymous said...

जब इंदिरा गाँधी के घर मे एक प्रसंग मे श्रृंगेरी पीठ के शंकराचार्य सबको तिलक लगा रहे थे लेकिन तत्कालीन केबिनेट रेल मंत्री अब्दुल रहमान अंतुले ने शंकराचार्य का हाथ पकड लिया और कहा की इस्लाम मे तिलक हराम है वो नहीं लगवाएंगे .. तब सम्भावना कहा थी ??

एस एम् मासूम said...
This comment has been removed by the author.
एस एम् मासूम said...

ऐसा है क्या दीपक जी कि मोदी जिस धर्म को मानते हैं उसमें टोपी पहनना हराम है? तब तो सही किया मोदी ने. शिकायत कि क्या बात है इसमें.

Shah Nawaz said...

टोपी और पगड़ी एक ही बात है, दोनों का प्रयोग सर ढंकने के लिए किया जाता है और दोनों ही सम्मान का सूचक हैं....

तिलक और टोपी में काफी फर्क है. तिलक केवल हिन्दू धर्म की प्रथा है, जबकि टोपी सभी धर्मों में धारण की जाती है. इस्लाम में किसी विशेष प्रकार की टोपी नहीं पहनी जाती. बल्कि कोई भी टोपी पहनी जा सकती है.

जहाँ तक तिलक की बात है... इस तरह सद्भावना के लिए आयोजन अगर कोई मुस्लिम भी करता और उसको तिलक लगाया जाता तो उसका इनकार किया जाना गलत होता. और अगर कोई ऐसा काम करने का आग्रह होता जो धर्म विरुद्ध है तो क्षमा सहित उसको समझाया जाता कि इस कार्य की आज्ञा मेरा धर्म नहीं देता है.

सही आचरण तो यही होना चाहिए, लेकिन दंभ रखने वाले ऐसा आचरण कैसे कर सकते हैं भला?

संजय भास्‍कर said...

तार्केश्वेर जी
जो राजनीति कर रहे होते तो वो निश्चय ही टोपी पहनते|

Anonymous said...

अभी दशहरे पर हामिद करजई MMS और सोनिया के साथ रामलीला मैदान गये, सबने राम जी की आरती की पर हामिद ने नही।

शाहनवाज़, इस्लाम मे टोपी पहनी तो सैकड़ो सालों से जा रही है पर अब इस्लाम टोपी पहनाने पर आ गया है, पर मोदी के सामने तुम लोगो की चतुराई नही चलेगी।