चाहे सास बहु हो या ननद भाभी कि लड़ाई हमेशा कंही ना कंही औरत ही औरत कि दुश्मन बनी नज़र आती हैं. दहेज़ का मामला हो या दहेज़ के चक्कर मैं हत्या का मामला हो कंही न कंही ननद या सास ही दोषी नज़र आती हैं और सजा भी मिलती हैं.
भारत जैसे पुरुष प्रधान देश में भी आज भी हालत ये हैं कि घर कि मुखिया औरत ही होती हैं, और हर काम में उसकी दखलंदाजी भी पूरी तरह से होती जैसे कि आज कि भारत सरकार में श्रीमती सोनिया गाँधी कि. किसी भी मीडिया में अगर भारत सरकार का प्रचार हो रहा हैं तो प्रधान मंत्री से पहले श्रीमती सोनिया गाँधी जी कि फोटो जरुर लगी होती हैं.
एक नई नवेली बहु शादी करके एक अंजान परिवार में अपने पति के साथ रहने आती हैं तो सबसे पहले उसे ये दर्द सताता हैं कि उसकी सास और ननद कैसी होंगी. लेकिन वही बहू जब ननद थी तो वो भूल गई थी कि वो भी कभी किसी घर कि बहु बनेगी. और जब वो सास बन जाती हैं तो फिर वो भूल जाती हैं कि वो भी कभी बहु थी.
हर भारतीय घर कि लड़ाई हैं ये .............................
6 comments:
अब इस "घरेलू" मामले में बाहरी शक्तियों का हस्तक्षेप करना भी तो नहीं बनता!
सहमत हे जी बहुत कम सुना हे कि ससुर या जेठ से बहू की लडाई हुयी हो , आग लगाने वाली यह नारी ही होती हे नाम बदनाम मर्दो का होता हे, बेचारा मनमोहन बेकार मे बदनाम हो रहा हे मजे कोई ओर ले रही हे:)
बात तो पते की कही है, पर इसका कोई उपाय भी तो निकलना चाहिए।
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काम की बातें
मर्द भी औरतों के दुश्मन हैं । बाप अपने लड़के की शादी में ख़र्च भी करता है और अपना घर दुकान और खेत खलिहान भी उसी को देकर मरता है ।
भाइयों की शादी के बाद और माँ बाप की मौत के बाद बेटियाँ जब अपने जन्म स्थान पर आती हैं तो बस मेहमान की तरह और अपने पति के घर भी रहती हैं तो बस एक मेहमान की तरह ।
भारत के रिश्वतख़ोर अफ़सरों और भ्रष्ट नेताओं ने ज़रूर अपनी पत्नियों और लड़कियों को माल से लाद दिया है । भ्रष्टों ने वह कर डाला जो तथाकथित ईमानदारों ने न तो किया और न ही करने के लिए तैयार हैं ।
औरतों की कमियाँ अपनी जगह लेकिन अगर ससुर , पति और घर के दूसरे पुरूष सदस्य ध्यान दें और लापरवाही न बरतें तो किसी बहू का उत्पीड़न संभव ही नहीं है ।
१०० प्रतिशत सही कहा गिरी जी। मैंने पूरी प्लानिंग कर ली है। मैं अगले जनम में औरत बनूँगा और डॉ. अनवर जमाल की चौथी बीबी बनकर इसकी बाकी तीन बीबीयों का पत्ता काट दूँगा। और फिर इसके बाद अनवर को भी अपने पास न फटकने दूँगा। क्योंकि मैं बहुत सुन्दर रहूँगा अगले जन्म में, तो ये पगला जाएगा मेरे पीछे। मगर मैं मेहर की रकम इतनी सैट करवा दूँगा (दूँगी) कि इसकी देते देते सट....................के हाथ मे आ जाएगी.......छोड़िए भी (कहीं किसी ने ‘स’ को ‘फ’ कह दिया तो ? हा हा)
बहुत ही सुनदर लेख. आपने जो लिखा वह हमारे समाज का एक कड़वा सच है. इसी विषय को और भी शानदार ढंग से मैंने यहं पढा है आप भी एक नजर डालें " http://socialissues.jagranjunction.com/2012/10/25/girl-child-abortion-%E0%A4%AD%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%A3-%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE/
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