प्रति दिन सुबह सुबह
बिस्तर पर ही लेट कर
सोचता हूँ कि ये जिंदगी,
तुम्हे कैसे -कैसे प्यार करू।
पुरे दिन कि भाग दौड़
रात को देर से सोना,
सोते हुए भी सपनो में
तुम्हे ही देखना
सोचता हूँ कि ये जिंदगी,
तुम्हे कैसे -कैसे इस्तेमाल करू।
रिश्ते -नाते परिवार
समाज, झूठो का संसार
ईमानदारी नहीं रही
और मतलब के हैं यार
सोचता हूँ कि ये जिंदगी,
तुम्हे कैसे -कैसे प्यार करू।
10 comments:
प्रश्न आपका मुश्किल नहीं है पर उत्तर बहुत मुश्किल से निकलता है
करने की सोच तो रहा है...
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (7/2/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
इन सब मे रह कर भी हम इन से अलग रह सकते हे.धन्यवाद
bahut sundar
जिंदगी,
तुम्हे कैसे -कैसे प्यार करू. सार्थक चिंतन...
बहुत मुश्किल प्रश्न है ...
achhi lagi kavita...
बहुत मुश्किल प्रश्न है .
zindagi tujhe kaise pyaar karoon/??????
kya baat hai......
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