नाम तो बनारस का लगा हुआ हैं, क्या करे जैसे अमिताभ बच्चन जी ने बनारसी पान को प्रसिद्धी दिलाई हैं , उसी तरह से बनारस के नाम पर बनारसी साड़ियाँ कि प्रसिद्धी मिली हुई हैं.
आजमगढ़ से मात्र १५ किलोमीटर कि दुरी पर हैं, छोटा लेकिन आज बहुत ही बड़ा सा क़स्बा जिसका नाम हैं मुबारक पुर. मुबारक पुर कि आर्थिक स्थिति लगभग ९०% तक सिर्फ बनारसी साड़ियों पर ही टिकी हुई हैं. कसबे के अन्दर और बाहर रहने वाले जुलाहे पूरी तरह से बनारसी साड़ी बनाने में लगे रहते हैं, लेकिन आज कल माहौल बदल गया हैं, अब कौन जुलाहा कौन पठान और कौन हिन्दू सभी इस काम में लगे हुए हैं.
छोटे -छोटे गाँव में गरीब परिवार भी अब इस काम को अपने अपने घरो में करने लगे हैं.
आज जरुरत हैं इस तरह के छोटे-छोटे रोजगार को प्रोत्सहित करने के लिए. लेकिन राज्य कि सरकार इस तरफ बिलकुल भी ध्यान नहीं दे रही हैं.
12 comments:
बहुत खूब गिरी जी //
प्रसिद्धि का लेवल बनारस पर लग गया है ...एक अंदरूनी जानी कारी के लिए आप बधाई के पार्त्र है ...मेरे ब्लॉग पर भी पधारी ..
http:babanpandey.blogspot.com
वाह, ऐसा भी होता है !
गिरी जी
अच्छी जानकारी दी है... अब तो मुबारकपुर जाना ही पड़ेगा...
... saarthak abhivyakti ... dhyaan dilaanaa padegaa !!!
बनारस और आज़मगढ़ दोनों धर्म के लिए भी मशहूर हैं
सनातन है इस्लाम , एक परिभाषा एक है सिद्धांत
ईश्वर एक है तो धर्म भी दो नहीं हैं और न ही सनातन धर्म और इस्लाम में कोई विरोधाभास ही पाया जाता है । जब इनके मौलिक सिद्धांत पर हम नज़र डालते हैं तो यह बात असंदिग्ध रूप से प्रमाणित हो जाती है ।
ईश्वर को अजन्मा अविनाशी और कर्मानुसार आत्मा को फल देने वाला माना गया है । मृत्यु के बाद भी जीव का अस्तित्व माना गया है और यह भी माना गया है कि मनुष्य पुरूषार्थ के बिना कल्याण नहीं पा सकता और पुरूषार्थ है ईश्वर द्वारा दिए गए ज्ञान के अनुसार भक्ति और कर्म को संपन्न करना जो ऐसा न करे वह पुरूषार्थी नहीं बल्कि अपनी वासनापूर्ति की ख़ातिर भागदौड़ करने वाला एक कुकर्मी और पापी है जो ईश्वर और मानवता का अपराधी है, दण्डनीय है ।
यही मान्यता है सनातन धर्म की और बिल्कुल यही है इस्लाम की ।
अल्लामा इक़बाल जैसे ब्राह्मण ने इस हक़ीक़त का इज़्हार करते हुए कहा है कि
अमल से बनती है जन्नत भी जहन्नम भी
ये ख़ाकी अपनी फ़ितरत में न नूरी है न नारी है
बहुत ही खास किस्म की अंदरूनी जानकारी है ये तो।
बढ़िया।
अमिताभ को बनारस के पान ने मशहूर किया था क्यों की बनरस का पान अमिताभ के जन्म के पहले से मशहूर था. अरे भैया मुबारकपुर मैं भी अब duplicate काम की सड़ी भी मिलने लगी है. सच्चा काम चाहिए तो पहचान वाले से बात करनी पड़ती है. इसका कारण बहुत से हैं, जिसमें मुबारक पुर के सड़ी बनाने वालों की ग़लती नहीं है.
@ भाई तारकेश्वर जी ! आप पास हमारे आये तो सही .
आपसे सहयोग की आशा है . आगे भी आते रहें. मैं अपनी उन गलतियों को तलाश कर रहा हूँ जो कि आप मेरे पूछने के बावजूद भी नहीं बताते .
mubarakpur jindabad !sarakar aur sahyog , ajib bat !sarakar aur sarakari karmachari pablik ko kitana lut sakate hai?, yah sochane ka bishay hai, kaise lut sakate hai kanun banakar |
सबसे निचले पायदान पर बैठा व्यक्ति भी लाभान्वित हो,तभी सर्वसमावेशी विकास का स्वप्न साकार होना संभव!
आप के ब्लोग पर आ कर बहुत अच्छा लगा ! लेख में रोचकता है !मैं आप को फ़ोलो कर रह हूं ! कृप्या म्रेरे ब्लोग पर आ कर फ़ोलो करें व मर्ग प्रशस्त करे !
गिरि जी, इसी बात का तो रोना है। सरकार को अपने वोटबैंक की चिंता ही ज्यादा रहती है।
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त्रिया चरित्र : मीनू खरे
संगीत ने तोड़ दी भाषा की ज़ंजीरें।
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