आदरणीय शरीफ खान जी चरण स्पर्श।
मान्यवर बुजुर्ग महोदय , मुझसे कंही ज्यादे दुनिया देखि हैं आपने , बहुत करीब से आपने बहुत से दंगो को देखा होगा, हर धर्म के लोग आपके साथ होंगे।
लेकिन श्रीमान जी ये भी सत्य हैं कि http://haqnama.blogspot.com/2010/10/definition-of-terrorism-sharif-khan.html
आतंकवाद का नाम आते ही इस्लाम सामने आ जाता हैं। लड़ाई झगडे तो हर समाज और हर धर्म में होते हैं, और कभी - कभी भयानक भी हो जाते हैं, लेकिन अगर वोही लड़ाई झगडे अगर इस्लाम से जुड़े हो तो सदैव भयानक ही होगा।
श्रीमान जी अगर भारत भी इस्लामिक देश होता तो शायद आप और आप का पूरा कुनबा इतना सुरक्षित नहीं होता जितना कि आज आप हैं। पाकिस्तान , अफगानिस्तान , इराक में आज हालत ये हैं कि मुसलमान मस्जिद में नमाज पढने से डरता हैं। कब कौन सा आदमी मानव बम हो और कितनो को अपने साथ उडा ले जाये पता नहीं।
भारत के अन्दर जितने दंगे हिन्दू और मुसलमानों के बीच हुए हैं उनसे ज्यादा दंगे शिया और सुन्नी के बीच रोज होते हैं।
आप कहते हैं कि बाबरी मस्जिद गिरा करके लोगो ने गलत किया।
आतंक कि शुरवात तो खुद मुस्लिम आक्रमण कारियों ने कि हैं, क्यों भूल गए आप जब तैमुर लंग ने पूरी दिल्ली को आग के हवाले कर दिया था। क्यों भूल रहे हैं आप कि हिंदुस्तान में जितने भी मस्जिदे उस ज़माने में बनाई गई थी या तो मंदिर कि जगह या मंदिर के मलवे को इस्तेमाल कर के ही बनाई गई थी।
कभी मौका मिले तो दिल्ली कि कुतुबमीनार देखने जरुर जाइएगा, तब आप को पता चलेगा कि आप के पूर्वजो ने कितनी अच्छी जमीन आप लोगो के लिए तैयार कि हैं। पुरे कुतुबमीनार कि दिवालो और आस पास के भवनों पर आप को आज भी हिन्दू और जैन देवी - देवातावो कि तस्वीर नजर आ जाएगी।
कुछ बुरा लगा हो तो बच्चा समझ कर के माफ़ कर दीजियेगा। क्योंकि हमारी संस्कृति हमें बड़ो कि इज्जत करना सिखाती हैं।
18 comments:
आदरणीय शरीफ खान जी चरण स्पर्श। ???
क्या हो गया है, गिरि भाई?
ख़ाली-पीली अहंकार क्यों ?
आदरणीय भाई पी.सी.गोदियाल जीने हकनामा ब्लॉग पर दूसरे ब्लोगर्स के कमेंट्स को उलटी दस्त की उपमा दी है जोकि सरासर अनुचित है और अहंकार का प्रतीक भी । अहंकार से और अशिष्ट व्यवहार से दोनों से ही रोकती है भारतीय संस्कृति जिसका झंडा लेकर चलने का दावा करते है, मुझे लगता है कि दावा सच नहीं है ।
Ejaj Saheb khule dill se padhiye aur tippdi kijiye. Fatwe se kya darna
बात सही है, लेकिन समझेगा कौन. एजाज जी की बातों से स्पष्ट है..
मैं ये भी बता दू की जितना एक हिन्दू इस देश मैं सुरक्षित है उतना ही और धर्म के लोग भी. कुछ पढ़े लिखे ब्लोगेर या लेखक बेवजह इस बात का बतंगड़ बनाते है की , इस देश मैं मुसलमानों के साथ अनान्य हो रहा है.
आप उच्च नयायालय की बात कर रहे हैं, तो उसके फैसले को पुरे देश की जनता ने सर आँखों पर लिया. लेकिन मुझे ये लगता है की बिना खून देखे आप को खाना हज़म नहीं होता है.
सारे विश्व में सर्बाधिक सुरक्षित मुसलमान भारत में है इसी क़ा नाजायज फायदा ये उठाते है.
क्यों गुस्सा है तारकेश्वर जी क्या बात है समझ में नहीं आया ----- एक मुसलमान केवल मुसलमान होता है वह और कुछ नहीं होता. यह बात ध्यान रखने की है
शरीफ खान साहब की पोस्ट मैंने पढ़ी, मुझे उसमें ऐसी कोई बुराई नहीं नजर आयी. देखें मैंने भी उसमें ज़रा सा फेर बदल कर के कुछ लिखा है. क्या कुछ ग़लत कहा?
मैं भी कहता हूँ आतंकवाद और इस्लाम विपरीत धारा है और कभी भी इन्हें एक दूसरे से नहीं जोड़ा जा सकता। आमतौर पर कोई भी मुस्लमान आतंकवादी गतिविधियों में शामिल नहीं होता ।
अब यह कौन लोग है जो इस्लाम के नाम पे, या हिंदुत्वा के नाम पे आतंक फैला रहे हैं?
यह गन्दी राजनीति से प्ररित इंसानियत और देश के दुश्मन है.
गिरि भाई आतंकवाद का कोई मज़हब नहीं होता. जैसे की चोरों, का डकैतों का कोई मज़हब नहीं होता. इसका सुबूत है की आतंकवाद का अधिकतर शिकार खुद मुसलमान हुए हैं. अगर यह आतंकवादी मुसलमान होते तो मुसलमानों को ना मारते?
यह सही है की आतंकवाद का नाम आते ही मुस्लमान का नाम आता है. लेकिन यह इस्लाम के खिलाफ साजिश का नतीजा है वरना सब जानते हैं ९९% मुस्लमान अमन पसंद हुआ करता है.
बाबरी मस्जिद गिरी यह आतंकवाद था, अगर वहां कोई मंदिर था और उसे गोराया गया वोह भी सही नहीं था. क्या एक ज़ुल्म का जवाब दूसरा ज़ुल्म है?
कोई तो शांति की बात करे? कहीं तो या एक दूसरे के मंदिर मस्जिद तोड़ने का अंत हो? आज भी यह मंदिर मस्जिद का मुद्दा धार्मिक कम और राजीनीति अधिक है.
कब हम गन्दी राजनीति से बाहर आके इंसानियत की और अपना वदम बढ़ेंगे? कब आखिर कब?
मैं तारकेश्वर गिरी भाई की इस बात से सहमत हूँ की "भारत मैं मुसलमान पकिस्तान जैसे देश से अधिक सुरछित है " इमाम हुसैन (अ.स) ने भी जंग मैं यजीद से कहा था मैं तुम सब से दूर हिंदुस्तान जाना चाहता हूँ जहाँ मुस्लमान (मुनाफ़िक़) तो नहीं लेकिन इंसान बसते हैं.
गिरी जी इन लोगो को विदेशों से पैसे मिलते हैं देश मे फसाद पैदा करने के, इनके बारे मे परेशान मत होवो, बस इनकी सच्चाई देखो और सबको बताओ। नही तो इतना झूठ की खान साहब ने डर कर फैसला दिया किसी को हजम नही हुइ यह बात, जहाँ लोग अफजल से डरते हैं और दुनिया देख रही है कि हमारी सरकार अफजल को फांसी की सजा पर अपनी सहमति देते हुए टिप्पणी मे लिखती है कि कानून व्यवस्था कौन संभालेगा, ऐसे मे हिन्दु से डर कर फैसला, इससे बढिया चुटकुला मैने नही पढा।
मासूम जी सही कहा "क्या एक ज़ुल्म का जवाब दूसरा ज़ुल्म है?" पर पहला जुल्म जिस पर हुआ उसको न्याय कब और कैसे मिलेगा जरा इस पर सोच कर बताए, अभी बहुत कुछ करना बाकी है आप अपना योगदान दे सकते हैं, यथा आप लोगो को हज यात्रा पर छूट मिलती है, हमे कुम्भ मेले के लिए ट्रेन टिकट पर सरचार्ज देना पडता है, क्या आप इस पर विरोध प्रकट करेंगे? जम्मू मे अमरनाथ यात्रा के लिए जो कुछ एकड जमीन के लिए इतना बवाल मचाया गया था, आज तक किसी मुस्लिम संगठन ने उसका विरोध नही किया जब कि हज हाउस के नाम पर हमने देश भर मे DLF से ज्यादा संपत्ति इकठ्ठा कर रखी है। मुद्दे बहुत हैं अगर मुझे लगा कि आपसे बात आगे बढाना फलदायी होगा तो निश्चित तौर पर लिखुंगा अन्यथा राम राम।
फिर ये जनाव सरीफ नहीं कहलायेंगे :)
मासूम साहब,
अतिसुन्दर!!
इमाम हुसैन (अ.स) ने भी जंग मैं यजीद से कहा था मैं तुम सब से दूर हिंदुस्तान जाना चाहता हूँ जहाँ मुस्लमान (मुनाफ़िक़) तो नहीं लेकिन इंसान बसते हैं.
इस्लाम के सच्चे रहनुमा थे,इमाम हुसैन (अ.स)
उन्होने ही समझा था अल्लाह के अहिंसक पैगाम को। इसीलिये अहिंसाप्रधान भूमि को महत्व दिया।
बाक़ी मुस्लमान (मुनाफ़िक़) तो इस्लाम को हिंसक धर्म साबित करने पर तुले है।
अमन के साथ साथ कुरआन से अहिंसा के सिद्धांत भी प्रकाशित होने चाहिए। और हिंसा की कुरितियां खत्म होनी चाहिए।
यही इमाम हुसैन (अ.स)की भावनाओं का सच्चा सम्मान होगा।
agar hindustan main musal man apne ko safe nahi samajhate to pakista jakar bas jaye ...
Ravindra Nath @जे मुद्दे बहुत हैं लेकिन हल क्या नफरत और झगडा है? ज़रा ग़ौर से देखिएं हर इंसान के घेर मैं भी बहुत से मुद्दे होते हैं, जंग नहीं हुआ करती. कारण एक दूसरे से प्रेम है. नाइंसाफी किसी के भी साथ हो, तो हर इंसान का धर्म है उसका साथ दे.
यही तो परेशानी है मासूम जी, यहाँ हिदुस्तान मे मुस्लिमों को स्थान और अधिकार प्राप्त हैं वो कई इस्लामी राष्ट्र मे भी नही मिलेगा, पर यहाँ तो हर जरा जरा सी बात पर इस्लाम खतरे मे पड जाता है, तो ऐसे मे हम क्या सोचें? यहाँ से जो मुस्लिम गए हैं पाकिस्तान वो रोज वहाँ डर डर कर दोयम दर्जे के नागरिक की जिंदगी बिता रहे हैं, और तो और बांग्लादेश का निर्माण भी प. पाकिस्तान (तत्कालीन) के औपनिवेशिक बर्ताव के चलते हुआ, आज भी बलूचिस्तान मे बलूच लोगो के प्रति भेद भाव हो रहा है। अब जरा भारत के मुस्लिमों से तुलना करें - हज सब्सिडी, मुस्लिमों के उत्थान हेतु अल्पसंख्यक मंत्रालय (जी हाँ इसके अधिकतर कार्यक्रम मुस्लिम वर्ग को ध्यान मे रख कर बनते हैं), प.म. द्वारा प्रतिदिन मुस्लिमों को विशेष दर्जा देने का राग गायन, लगभग १६ योजनाए मुस्लिमों (सिर्फ मुस्लिमों) के लिए केन्द्र द्वारा, राज्यों की अलग से। इन सबके बाद भी जब यह सुनने मे आता है कि भारत मे इस्लाम खतरे मे है तो प्रेम कहाँ से पनपेगा? हम तो अपने हिस्से को भी आपके हवाले करते जा रहे हैं और आपकी इच्छाएं हैं कि कभी पूरी ही नही होती, जरा एक बार स्वयं को एक दूसरे देश के नागरिक के रूप मे रख कर सोचिएगा, चाहे अरब देश का नागरिक ही सही फिर कहिएगा कि आप को क्या कम मिल रहा है यहाँ, मैं ओमान और कतर मे काम कर चुका हूँ अतः मैं सत्य जानता हूं।
जरा जरा सी अफवाहों पर तो दंगा कर देते हैं आपके बंधु, आप ही बताईए कि डैनिस कार्टूनिस्ट के विरोध मे लखनऊ मे तोड फोड किस प्रकार से प्रेम बढाने मे सहायक है?
खबर - दिल्ली मे कुरान का अपमान हुआ, बाद मे मालूम पडता है कि अफवाह थी, पर तब तक तो कानपुर मे दंगा हो चुका होता है, यह किस प्रकार से प्रेम बढाएगा तनिक स्पष्ट करें?
एक समाचार पत्र मुहम्मद साहब के सदाशयता के बारे मे कहानी लिखता है और बताता है कि किस प्रकार अपने उपर कूडा फेकने वाली स्त्री का भी वो ख्याल करते थे - पत्र के कार्यालय पर हमला हो जाता है, अब आप ही बताएं कि मैं इसमे प्रेम कहां ढूढूं?
यही तो परेशानी है मासूम जी, यहाँ हिदुस्तान मे मुस्लिमों को स्थान और अधिकार प्राप्त हैं वो कई इस्लामी राष्ट्र मे भी नही मिलेगा, पर यहाँ तो हर जरा जरा सी बात पर इस्लाम खतरे मे पड जाता है, तो ऐसे मे हम क्या सोचें? यहाँ से जो मुस्लिम गए हैं पाकिस्तान वो रोज वहाँ डर डर कर दोयम दर्जे के नागरिक की जिंदगी बिता रहे हैं, और तो और बांग्लादेश का निर्माण भी प. पाकिस्तान (तत्कालीन) के औपनिवेशिक बर्ताव के चलते हुआ, आज भी बलूचिस्तान मे बलूच लोगो के प्रति भेद भाव हो रहा है। अब जरा भारत के मुस्लिमों से तुलना करें - हज सब्सिडी, मुस्लिमों के उत्थान हेतु अल्पसंख्यक मंत्रालय (जी हाँ इसके अधिकतर कार्यक्रम मुस्लिम वर्ग को ध्यान मे रख कर बनते हैं), प.म. द्वारा प्रतिदिन मुस्लिमों को विशेष दर्जा देने का राग गायन, लगभग १६ योजनाए मुस्लिमों (सिर्फ मुस्लिमों) के लिए केन्द्र द्वारा, राज्यों की अलग से। इन सबके बाद भी जब यह सुनने मे आता है कि भारत मे इस्लाम खतरे मे है तो प्रेम कहाँ से पनपेगा? हम तो अपने हिस्से को भी आपके हवाले करते जा रहे हैं और आपकी इच्छाएं हैं कि कभी पूरी ही नही होती, जरा एक बार स्वयं को एक दूसरे देश के नागरिक के रूप मे रख कर सोचिएगा, चाहे अरब देश का नागरिक ही सही फिर कहिएगा कि आप को क्या कम मिल रहा है यहाँ, मैं ओमान और कतर मे काम कर चुका हूँ अतः मैं सत्य जानता हूं।
जरा जरा सी अफवाहों पर तो दंगा कर देते हैं आपके बंधु, आप ही बताईए कि डैनिस कार्टूनिस्ट के विरोध मे लखनऊ मे तोड फोड किस प्रकार से प्रेम बढाने मे सहायक है?
खबर - दिल्ली मे कुरान का अपमान हुआ, बाद मे मालूम पडता है कि अफवाह थी, पर तब तक तो कानपुर मे दंगा हो चुका होता है, यह किस प्रकार से प्रेम बढाएगा तनिक स्पष्ट करें?
एक समाचार पत्र मुहम्मद साहब के सदाशयता के बारे मे कहानी लिखता है और बताता है कि किस प्रकार अपने उपर कूडा फेकने वाली स्त्री का भी वो ख्याल करते थे - पत्र के कार्यालय पर हमला हो जाता है, अब आप ही बताएं कि मैं इसमे प्रेम कहां ढूढूं?
... prabhaavashaalee abhivyakti !!!
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