Wednesday, August 4, 2010

राम का अस्तित्व और राम जन्मभूमि - तारकेश्वर गिरी

असलम साहेब बहुत ही अच्छा कहा हैं आपने, हम तो उस समय थे ही नहीं जब भगवान राम पैदा हुए थे और ना ही आप उस समय थे जब मुहम्मद साहेब पैदा हुए थे. लेकिन इतना जरुर हैं कि मक्का और मदीना ये चिल्ला - चिल्ला के कहते हैं कि मुहम्मद साहेब थे. ठीक उसी तरह हिंदुस्तान में अयोध्या , चित्रकूट, पंचवटी, नेपाल में जनक पुर और श्री लंका भी ये चिल्ला - चिल्ला के कहते हैं कि भगवान श्री राम का अस्तित्व था. अगर बाल्मीकि रामायण को आप झूठा मानते हैं तो रामचरित मानस तो तुलसी दास जी ने १५०० शताब्दी में लिख था. उस समय इतने साधन नहीं थे कि समुन्द्र के अन्दर जा कर के ये देखा जाय कि भगवान राम ने पुल कंहा बनवाया था.

रही बात भारत सरकार कि तो आज भारतीय कम और इटालियन सरकार ज्यादा दिखती हैं.

चलिए छोडिये इतना तो पता होगा कि बाबर से पहले राम का मंदिर विवादित नहीं था. और बाबर को क्या जरुरत पड़ी थी मंदिर को मस्जिद के रूप में ढालने कि . और अगर आप ये मानते हैं कि किसी भी मुस्लिम राजा ने किसी भी हिन्दू मंदिर को कभी भी नहीं तोडा था , तो मेरे पास उसी दिल्ली सरकार का बोर्ड हैं आपको दिखाने के लिए आप कभी जाइये और देखिये महरौली के पास कुब्बत -उल - इस्लाम मस्जिद हैं उसकी दिवालो पर आज भी हिन्दू और जैन देवी देवतावो कि तस्वीर नजर आ जाएगी.

11 comments:

SANSKRITJAGAT said...

रहने दो तारकेश्‍वर भाई
ये बदतमीज लोग केवल कुतर्क करना जानते हैं ।

हर बार ये गलत हो जाते हैं पर तुरंत ही कोई नया कुतर्क प्रस्‍तुत कर देते हैं ।


इनको अब प्‍यार से समझाना अरण्‍यरुदन है बस ।

इनके लिये तो बस मुँहतोड जबाब नहीं बल्कि ऐसे ही आक्षेप वाले धार्मिक प्रश्‍न रखने चाहिये ।

इसी से इनका दिमाग ठीक होगा ।

Bhavesh (भावेश ) said...

गिरी जी आप अंधे को रास्ता दिखा सकते है, लेकिन अगर कोई आँखे होते हुए भी नहीं देखे तो उसका आप कुछ नहीं कर सकते. वैसे इस तरह के लेख केवल (बद)नाम के लिए और विवाद पैदा करने के हथकंडो से ज्यादा कुछ नहीं है, क्योंकि धर्म और धार्मिक आस्थाये व्यक्तिगत विषय है सामूहिक नहीं.
क्षमा चाहूँगा लेकिन कुछ हद तक गलती आप और हम जैसे कई पाठकों की भी है कि वे क्यों इस तरह के विवादस्पद लेख पढते है. मैं लेख पढ़ने से पहले उसकी url चेक करता हूँ और कुछ लोग जिनकी मानसिक स्थिति का कुछ हद तक मुझे अनुमान है और जिन्हें मैंने ब्लैक लिस्ट कर रखा है अगर वो एग्रीगेटर में ऊपर भी होते है तो भी मैं उस ब्लॉग पर जा कर व्यर्थ समय नष्ट नहीं करना चाहता फिर चाहे उसने कुछ भी क्यों न लिखा हो. खैर मैंने ऐसे किसी भी लेख को न तो पढ़ा है और न ही मेरी ऐसे किसी उटपटांग लेख को पढ़ने में कोई रूचि है.
कविवर हरिओम शरण ने अपनी प्रसिद्द कविता राम मंदिर में कहाँ है " जो तुलना करते है बाबर राम की, उनकी बुद्धि होगी किसी गुलाम की". राम हमारे घाट घाट के भगवान है, राम हमारी भारत की पहचान है, राम हमारी पूजा है अरमान है, राम हमारे अंतर्मन के प्राण है, मंदिर मस्जिद केवल पूजा के सामान है.

Taarkeshwar Giri said...

कुछ काबिल दोस्त जरुर पूरी दुनिया को इस्लाम मय देखना चाहते. इस्लाम बड़ी ही तेजी से पूरी दुनिया में फेल चूका हैं, इस्लाम के मानने वालो कि संख्या भी बाकि धर्मो कि अपेछा ज्यादा हैं. इस्लाम ने इराक , अफगानिस्तान पाकिस्तान, और भी सभी बाकि देशो कि अपनी पहचान मिटा दी हैं, इस्लाम जंहा - जंहा भी फैला विवादित रहा हैं,

लेकिन फिर भी देखिये हम भारतीय लोग इस्लाम को गले लगाये हुए हैं , और खुद हिन्दू ही इस बात को कहता हैं कि हिन्दू - मुस्लिम भाई - भाई. लेकिन जरा इस्लामिक देशो में देखिये रोज सैकड़ो जाने सिर्फ इसलिए जाती हैं कि कोई शिया हैं तो कोई सुन्नी .

Anonymous said...
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Anonymous said...

तारकेश्वर जी, आपको अब तक इन लोगो की मानसिकता समझ मे आ गई होनी चाहिये थी, यह लोग सिर्फ और सिर्फ झूठ का सहारा लेते हैं अपनी बातों के समर्थन मे। और आपको तो personal message आया था सुनीता विलियम्स का इस्लाम स्वीकार करने का (आपका post मज़ेदार था)। राम मंदिर तो छोडिये, आज की तारीख में यह अपने उन बाप दादाओं को नही पहचानते जिनको धोखा दे कर इन्होने धर्मांतरण किया।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

आनन्द पाण्डेय जी ने सही लिखा है. जैसे को तैसा की आवश्यकता है. बस हिन्दू नेताओं और अफसरों को पहले सुधारना चाहिये.

sproutsk said...

giri uncle ji pranam,
itna satik lokhne wale bahut kam dekhe hain,, lekin dil se kahun to bahut din bad itni bebaki padhne ko mili,, bachpan mein panchajanya bahut padhi hai,, ab tarkeshwar ji ka blog,, dil se badhai,, sproutsk.blogspot.com

नीरज मुसाफ़िर said...

मुसलमानों को जन्म से ही मदरसे में इस्लाम की रक्षा करना और हिन्दुओं का संहार करना सिखाया जाता है। इनकी कुरान भी यही सिखाती है। बाद में ये लोग पढ-लिखकर कितना भी आधुनिक बन जायें लेकिन सोच तो वही रहती है- मुहम्मद साहब के जमाने की अरब संस्कृति वाली।
नहीं सुधर सकते ये लोग।

शेरघाटी said...

राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज
अहल-ए-नज़र समझते हैं इस को इमाम-ए-हिन्द

तलवार का धनी था, शुजाअत में फ़र्द था
पाकिज़गी में, जोश-ए-मोहब्बत में फ़र्द था

आपका प्रयास

सराहनीय है प्रेरणास्पद है.

मनुष्य समाज का जो क़बीला ,जो जाति जो धर्म सत्ता में आ जाता है वह समाज की श्रेष्ठता के पैमाने अपनी श्रेष्ठता के आधार पर ही बना देता है [यह श्रेष्ठता होती भी है या नहीं यह अलग प्रश्न है] यानी सत्ता आये हुए की शक्ती ही व्यवस्था और कानून हो जाया करती है,


सशंकित होना क्या जायज़ नहीं कि क्या वास्तव में आज ऐसा हो रहा है !!

गर हो रहा है तो मुखर विरोध होना चाहिए.

ब्लॉग जगत में फैली हिन्दू-मुस्लिम घमासान पर पढ़िए

शमा ए हरम हो या दिया सोमनाथ का
http://saajha-sarokaar.blogspot.com/2010/08/blog-post.html

aarya said...

तारकेश्वर जी !
मै भी इसका इतिहास छान रहा हूँ ! और इन मुल्लाओ को बता दूँ कि तुम्हारे सब सुल्तानों ने और इतिहासकारों ने राम का वर्णन और अयोध्या को राम कि जन्मभूमि माना है,जल्दी ही इसपर एक रिसर्च पेपर तैयार करके इस देश के मुल्लाओं से और सरकार से जबाब मांगूंगा .................

Unknown said...

hello, giri bhai apko pata hai kya aapke dada ke, dada ke, dada ke, dada ke, dada ke, name agar malum hai to batao ki kya name tha aapke dada ka. usi tarah bharat bhi hinuo ka tha aour rahega. understand my point.