क्या मिला एक दिन के मानसून से , फिर वोही गर्मी। और क्या मिला एक दिन के बंद से फिर वोही मंहगाई। अरे मानसून तो बिलकुल मुंबई वाला होना चाहिए और बंद बिलकुल बंगाल वाला।
बंद से लगभग १३ अरब रुपये का नुकसान हुआ , ( बाप रे बाप ) यानि की रोज १३ अरब रुपये का फायदा होता था। इतना फायदा होने के बावजूद इतनी मंहगाई फिर क्यों , कंहा जाता है ये रोज का १३ अरब रूपया। खैर हमें क्या हमारी दाल रोटी चल ही रही है, हम क्यों फटे मैं अपनी टांग अडाये।
लेकिन नहीं, सबको अपनी -अपनी टांग अडानी चाहिए नहीं तो जिन्दा नहीं रह पाएंगे।
बंद से लगभग १३ अरब रुपये का नुकसान हुआ , ( बाप रे बाप ) यानि की रोज १३ अरब रुपये का फायदा होता था। इतना फायदा होने के बावजूद इतनी मंहगाई फिर क्यों , कंहा जाता है ये रोज का १३ अरब रूपया। खैर हमें क्या हमारी दाल रोटी चल ही रही है, हम क्यों फटे मैं अपनी टांग अडाये।
लेकिन नहीं, सबको अपनी -अपनी टांग अडानी चाहिए नहीं तो जिन्दा नहीं रह पाएंगे।
4 comments:
टांग अड़ाते रहिये..शुभकामनाएँ एवं मेरी भी राम राम!
bilkul theek..
बहुत पते की बात कही आपने
बिलकुल सही कहा आपने गिरी जी. नेता लोग हमें बेवक़ूफ़ समझते हैं, इसलिए यह सब नाटक चलता है. सबसे बेहतर बात तो यह होनी चाहिए, कि अगर कोई परेशानी है तो बंद की जगह उसका हल सुझाया जाए, ताकि जनता का दिल भी जीता जा सके और देश का भला भी हो सके.
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