Saturday, July 31, 2010

भैया जरा बच के , जाना दिल्ली में, -तारकेश्वर गिरी.

भैया जरा बच के , जाना दिल्ली में,

कोई पता नहीं कब कौन सा पुल आ गिरे आपके सर पे।

लाल बत्ती सब ख़त्म हो गई हैं, मर्सिडीज बिना ड्राईवर के दौड़ रही हैं,

जिंदगी सबकी चल रही हैं, भैया जरा बच के , जाना दिल्ली में।।

रोटी नहीं हैं, सीमेंट और ईंट का ढेर हैं,

हर तरफ अधिकारी और नेता चोर हैं.

ना जाने कौन सी सड़क पे गहरा सा छेद हैं,

भैया जरा बच के , जाना दिल्ली में।।

21 comments:

सुज्ञ said...

एकदम सटीक हास्य व्यंग्य!!
गिरि जी जिस दिल्ली की सडको पर दोडते हो उसी में छेद करते हो? हा,हा,हा।

honesty project democracy said...

बहुत बढ़िया सब तरफ लूट ही लूट है और नेताओं और दलालों की मौज ही मौज है ....शानदार प्रस्तुती ..

नीरज मुसाफ़िर said...

हम तो जी दिल्ली में जाते ही दिलशाद गार्डन मेट्रो पकडते हैं। ना लाल बत्ती का चक्कर, ना गड्ढों का।

राज भाटिय़ा said...

अब दिल्ली का नाम लंका रख देना चाहिये, राज तो अब वहां रावण का ही चल रहा है, आप से सहमत है जी

Bhavesh (भावेश ) said...

बहुत सही और सच्ची बात. वैसे राज भाटिया जी की बात भी गौर करने लायक है!!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

अब दिल्ली का नाम लंका रख देना चाहिये, राज तो अब वहां रावण का ही चल रहा है, आप से सहमत है जी

Tafribaz said...

लगता है तुम भी तफ्रीबाज़ हो?

Tafribaz said...

लगता है तुम भी तफ्रीबाज़ हो?

Tafribaz said...

लगता है तुम भी तफ्रीबाज़ हो?

Tafribaz said...

लगता है तुम भी तफ्रीबाज़ हो?

Tafribaz said...

लगता है तुम भी तफ्रीबाज़ हो?

Tafribaz said...

लगता है तुम भी तफ्रीबाज़ हो?

Tafribaz said...

लगता है तुम भी तफ्रीबाज़ हो?

Tafribaz said...

लगता है तुम भी तफ्रीबाज़ हो?

Tafribaz said...

लगता है तुम भी तफ्रीबाज़ हो?

شہروز said...

स्पष्टवादिताहै.अच्छा लगा !
ताफ्रीह्बाज़ भी !! हा हा हा !!!!!
समय हो तो पढ़ें
मीडिया में मुस्लिम औरत http://hamzabaan.blogspot.com/2010/07/blog-post_938.html

Ayaz ahmad said...

गिरी जी दिल्ली तो बच कर चले जाएँगे पर आप आजकल कहाँ है ब्लाग जगत मे नज़र नही आते बड़े बचे बचे फिर रहे है

अजय कुमार झा said...

अब तो दिल्ली आ लिए अब क्या करें ...........इस पर प्रकाश डालिए ..

Shah Nawaz said...

अजय जी ने सही कहा..... दिल्ली में जो आगए हैं या रह रहे हैं वह बेचारे क्या करें???? ;-)

DR. ANWER JAMAL said...
This comment has been removed by the author.
DR. ANWER JAMAL said...

@भाई तारकेश्वर गिरी जी ! आप अपनी आदत के मुताबिक़ पोस्ट पर बस सरसरी नज़र दौड़ाकर ही कमेंट कर देते हैं। पूरी पोस्ट पढ़ते तो आप जान लेते कि अनवर को ‘सुधारगृह‘ भेजने की धमकी नहीं चेतावनी दी जा रही है। मैं तो हिन्दू महापुरूषों के नाम के साथ कभी ‘जी‘ लगाये बिना बात नहीं करते और लोग-बाग कह रहे हैं कि मैं उनका सम्मान नहीं करता। सम्मान करने के नाम पर मैं उनसे जुड़ी ऐसी बातें तो नहीं मान सकता जिन्हें आज खुद बहुत से हिन्दू नहीं मानते।
जनाब सतीश सक्सेना जी की टिप्पणी आपकी सुविधा के लिये यहां दे रहा हूं-
@अनवर जमाल !
"मुसलमानों को चाहिए कि वे लोगों को बताएं कि मंदिरों की किसकी पूजा होती है और मस्जिद में किसकी ? मंदिर में जिनकी पूजा होती है उनका जीवन कैसा था ? और मस्जिद में नमाज अदा करना सिखाने वाले नबी साहब स. का जीवन कैसा था ? "
बेहद अफ़सोस जनक लिखा है आज डॉ अनवर जमाल ने , मैं यह उनसे उम्मीद नहीं करता था ! किसी भी धर्म के अनुयायियों को दूसरों की आस्था पर कहने का अधिकार नहीं होना चाहिए ! दूसरों को छोटा और ख़राब और अपने को अच्छा बताने वाले कभी अच्छे नहीं हो सकते !दो अलग आस्थाओं कि तुलना करने वाले क्या देना चाहते हैं इस देश में ....??
मुझे ऐसे लोगो की बुद्धि पर तरस आता है ! ऐसा करने वाले सिर्फ दूसरों के दिलों में नफरत ही बोयेंगे ! और यह नफरत हमारे मासूमों के लिए जहर का काम करेगी ! मुझे नहीं लगता कि इस्लाम में कहीं भी यह लिखा है कि काफिरों को समझाओ कि तुम्हारा ईमान ख़राब है ....
बेहद दुखी हूँ ऐसे अफ़सोस जनक वक्तव्य के लिए !