हमारे देश मैं जो भी धर्मपरिवर्तन कि गतिविधियाँ चल रही हैं, उसे देख कर येही लगता है कि धर्म परिवर्तन आस्था के साथ - साथ लालच के लिए भी किया जा रहा है. गाज़ियाबाद के विजय नगर में इसाई मशीनरियां आज भी पैसे के बल पर धर्म परिवर्तन करवा रही हैं. और वो भी मात्र ३ लाख रुपये में. गरीब और पिछड़े हुए लोग इसमें बढ़ चढ़ करके भाग ले रहे हैं. पैसे के साथ - साथ उन्हें तुरंत चमत्कार का लालच भी दिया जा रहा है. आज भी अगर आप सुबह - सुबह टी वी खोल कर के देखे तो उसमे कैसे - कैसे चमत्कार दिखा कर के लालच दिया जाता है कि आप अपना धर्म परिवर्तन करले.
रही बात इस्लाम कि तो आज कुछ लोग मात्र २ पत्नी या दो शादी करने के चक्कर में इस्लाम कबूल कर रहे हैं.
लेकिन आखिर सवाल ये है कि क्या धर्म परिवर्तन से लाभ है. हर धर्म के विद्वान लोगो का येही कहना है कि सभी धर्म सही रास्ता दिखलाते हैं , ईस्वर एक है, चाहे आप उसे अल्ल्लाह के नाम से पुकारे या चाहे शिव के नाम से या गोंड कहे या बुद्ध या भगवान महावीर या वगैरह - वगैरह. क्या फर्क पड़ता है.
हिंदुस्तान में धर्म परिवर्तन का मूल कारण रहा है , यंहा कि जाती व्यस्था या उंच -नीच का माहौल . पुरे देश में पंडितो ने जाती व्यस्था को इतना कठिन बना दिया कि निचले वर्ग के लोगो का शोषण होने लगा. और इसी का फायदा उठाया इसाई मशीनरियों ने.
डॉ भीम राव आंबेडकर ने अपने को बुधिष्ट कहा और बौध धर्म को अपनाया , उनके समर्थन में लगभग पूरा का पूरा हरिजन समाज बौध धर्म ग्रहण कर चूका है. और आज हालत ये है कि भारत में बौध धर्म एक जाती विशेष का धर्म बन कर के रह गया है. उत्तर प्रदेश कि मुख्यंत्री ने पुरे उत्तर प्रदेश में डॉ भीम राव आंबेडकर जी , कांशी राम जी, और खुद कि मूर्तियों का विशाल जाल बिछा दिया है. पूरा का पूरा उत्तर प्रदेश आंबेडकर मय हो गया है. लेकिन उसके परिणाम कुछ अलग ही दिख रहे हैं , डॉ भीम राव कि मूर्तियाँ खुले रूप में आसमान के नीचे खड़ी पड़ी है. एक संविधान निर्माता कि ये हालत. पूरा का पूरा हरिजन समाज सिर्फ आंबेडकर , कांशी राम जी कि मूर्तियों को सँभालने में व्यस्त है. और सरकार अपने आप को. आज का हरिजन समाज पहले से भी ज्यादा बुरी स्थिति में पहुँच चूका है. जब कि आज के आधुनिक समाज में सभी वर्ग के लोगो ने आपस में घुलना - मिलना शुरू कर दिया है. कौन हरिजन , कौन ब्राहमण और कौन मुस्लमान . जब तक अपनी पहचान खुद ना बताये तब तक आप पता नहीं लगा सकते और ये व्यस्था आगे चल कर के और नजदीकियां लाएगी.
लेकिन आखिर धर्म परिवर्तन कि जरुरत है क्यों. मेरे समझ से तो धर्म परिवर्तन सिर्फ कायर लोग करते हैं , जो अपने समाज को सुधारने कि बजाय किसी और समाज को अपना लेते हैं. अगर किसी परिवार में माता - पिता कि भूमिका संदिग्ध लगे तो क्या माता- पिता का साथ छोड़ कर के किसी और को अपना माता - पिता बना लेना उचित है, या अपने माता - पिता रूपी समाज को सुधारना उचित है. ये गारंटी कौन लेगा कि धर्म परिवर्तन करने बाद उसकी स्थिति सुधार जाएगी. अगर इस बात कि गारंटी होती तो सभी के सभी अपना धर्म बदल चुके होते. और आज का पूरा भारत देख रहा कि जो लोग हिन्दू धर्म को छोड़ करके गए हुए हैं वो आज भी उसी तरह से जी रहे हैं जिस तरह से बाकि हिन्दू समाज.
बल्कि धर्म परिवर्तन से हिंदुस्तान को नुकसान ही हुआ है. आज का भारतीय समाज अलग- अलग धर्म को अपना करके एक दुसरे से अलग हुआ पड़ा है. और कंही - कंही तो एक दुसरे कि जान के दुश्मन बने पड़े हुए है.
रही बात इस्लाम कि तो आज कुछ लोग मात्र २ पत्नी या दो शादी करने के चक्कर में इस्लाम कबूल कर रहे हैं.
लेकिन आखिर सवाल ये है कि क्या धर्म परिवर्तन से लाभ है. हर धर्म के विद्वान लोगो का येही कहना है कि सभी धर्म सही रास्ता दिखलाते हैं , ईस्वर एक है, चाहे आप उसे अल्ल्लाह के नाम से पुकारे या चाहे शिव के नाम से या गोंड कहे या बुद्ध या भगवान महावीर या वगैरह - वगैरह. क्या फर्क पड़ता है.
हिंदुस्तान में धर्म परिवर्तन का मूल कारण रहा है , यंहा कि जाती व्यस्था या उंच -नीच का माहौल . पुरे देश में पंडितो ने जाती व्यस्था को इतना कठिन बना दिया कि निचले वर्ग के लोगो का शोषण होने लगा. और इसी का फायदा उठाया इसाई मशीनरियों ने.
डॉ भीम राव आंबेडकर ने अपने को बुधिष्ट कहा और बौध धर्म को अपनाया , उनके समर्थन में लगभग पूरा का पूरा हरिजन समाज बौध धर्म ग्रहण कर चूका है. और आज हालत ये है कि भारत में बौध धर्म एक जाती विशेष का धर्म बन कर के रह गया है. उत्तर प्रदेश कि मुख्यंत्री ने पुरे उत्तर प्रदेश में डॉ भीम राव आंबेडकर जी , कांशी राम जी, और खुद कि मूर्तियों का विशाल जाल बिछा दिया है. पूरा का पूरा उत्तर प्रदेश आंबेडकर मय हो गया है. लेकिन उसके परिणाम कुछ अलग ही दिख रहे हैं , डॉ भीम राव कि मूर्तियाँ खुले रूप में आसमान के नीचे खड़ी पड़ी है. एक संविधान निर्माता कि ये हालत. पूरा का पूरा हरिजन समाज सिर्फ आंबेडकर , कांशी राम जी कि मूर्तियों को सँभालने में व्यस्त है. और सरकार अपने आप को. आज का हरिजन समाज पहले से भी ज्यादा बुरी स्थिति में पहुँच चूका है. जब कि आज के आधुनिक समाज में सभी वर्ग के लोगो ने आपस में घुलना - मिलना शुरू कर दिया है. कौन हरिजन , कौन ब्राहमण और कौन मुस्लमान . जब तक अपनी पहचान खुद ना बताये तब तक आप पता नहीं लगा सकते और ये व्यस्था आगे चल कर के और नजदीकियां लाएगी.
लेकिन आखिर धर्म परिवर्तन कि जरुरत है क्यों. मेरे समझ से तो धर्म परिवर्तन सिर्फ कायर लोग करते हैं , जो अपने समाज को सुधारने कि बजाय किसी और समाज को अपना लेते हैं. अगर किसी परिवार में माता - पिता कि भूमिका संदिग्ध लगे तो क्या माता- पिता का साथ छोड़ कर के किसी और को अपना माता - पिता बना लेना उचित है, या अपने माता - पिता रूपी समाज को सुधारना उचित है. ये गारंटी कौन लेगा कि धर्म परिवर्तन करने बाद उसकी स्थिति सुधार जाएगी. अगर इस बात कि गारंटी होती तो सभी के सभी अपना धर्म बदल चुके होते. और आज का पूरा भारत देख रहा कि जो लोग हिन्दू धर्म को छोड़ करके गए हुए हैं वो आज भी उसी तरह से जी रहे हैं जिस तरह से बाकि हिन्दू समाज.
बल्कि धर्म परिवर्तन से हिंदुस्तान को नुकसान ही हुआ है. आज का भारतीय समाज अलग- अलग धर्म को अपना करके एक दुसरे से अलग हुआ पड़ा है. और कंही - कंही तो एक दुसरे कि जान के दुश्मन बने पड़े हुए है.
14 comments:
आज कल मायावती जी मूर्तियों को सभालने में जितना रूपया खर्च कर रही है , अगर वो इतना पैसा दलित विकास में खर्च करती तो आने वाला कल दलित समाज के लिए स्वर्णिम युग कहलाता.
"दलित समाज के लिए स्वर्णिम युग..."
मायावती जी अपने लिए स्वर्णिम युग बनाना चाहती है..
Yehi to dikkat hain Ranjan Ji.
लालच, स्वार्थ और दबाव के बूते धरम परिवर्तन ग़लत है .
लेकिन अगर कोई शख्स किसी धरम को मन से अपनाता है यह मानकर की उसकी नज़र में यह रास्ता ही सीधा और सच्चा है तो इसमें ग़लत क्या है?
तारकेश्वर जी गौर कीजिए आज जीतने प्रयोग ईश्वर के नाम पर इंसान ने किए हैं उतने प्रयोग अन्य के साथ नही हुवे .ईश्वर के साथ इससे बड़ा मज़ाक और क्या हो सकता है? ईश्वर ने जिस इंसान को बनाया उसी इंसान ने उस ईश्वर की छवि के साथ केसा मज़ाक किया है या कर रहे हैं आप बेहतर जानते हैं. ऐसे में अगर कोई सच्चे ईश्वर और सच्चे धरम को ,जिसके लिए उसका मन गवाही देता है अपनाता तो, आख़िर इसमें ग़लत क्या है.
तारकेश्वर जी मेरा मन आपका मन तोड़ना नही ,बस अपनी बात आपके सामने पेश करना है.
इस्लामिक जी -बहुत ही सरल तरीके से आप ने अपनी बात रखी है, मैं आपसे सहमत हूं. लेकिन ये भी सच है की खुदा - खुद मैं ही है कंही और नहीं. धरम बदलने के बजाय खुद को बदला जाय.
@ Tarkeshwar Giri
धरम बदलने के बजाय खुद को बदला जाय.
तारकेश्वर जी आपकी यह बात ठीक है कि धर्म की जगह खुद को बदला जाए, वैसे इस खुद के बदलने को ही लोग धर्म परिवर्तन का नाम दे देते हैं, जबकि आस्था अलग-अलग हो सकती है लेकिन धर्म तो पुरे विश्व के धार्मिक व्यक्तियों का एक ही है. और वह है प्रभु को पहचानना, उसके बताए हुए रास्ते पर चलना.
वैसे आस्था का मामला एकदम निजी है, इसमें किसी और का हस्तक्षेप तो हो ही नहीं सकता है, क्योंकि आस्था का संबंध हृदय से होता है इसलिए मनुष्य उसी राह पर चलता है जिस पर उसका दिल हां कहता है। इसलिए अगर कोई ज़बरदस्ती अथवा लालच देकर धर्म परिवर्तन की कोशिशें करता है तो उसका विरोध अवश्य ही होना चाहिए. वैसे भी ऐसी हरकतों से धर्म परिवर्तन करने वाले लोग पूरी दुनिया को बेवक़ूफ़ बनाने का कार्य ही करते हैं. क्योंकि धर्म का संबंध आस्था से होता है और आस्था का संबंध हृदय से होता है। और कोई भी मनुष्य पूरी दुनिया से तो असत्य कह सकता है परंतु अपने हृदय से कभी भी असत्य नहीं कह सकता है। हृदय को तो पता होता है कि उस पर किस का राज है।
लेकिन ये भी सच है की खुदा - खुद मैं ही है कंही और नहीं.
मित्र हम स्वयं उस परमेश्वर की रचना ही हैं, इसलिए उसकी ताकत, कुदरत तो हम खुद ही हैं. लेकिन वह हर ऐब से पवित्र है अर्थात हर आवश्यकता से परे है. इसलिए वह हमारे अन्दर होने की आवश्यकता से पाक है अर्थात उसको हमारे अन्दर होने की आवश्यकता ही नहीं है. क्योंकि वह तो बिना किसी आवश्यकता के ही हर कार्य को अंजाम देने की ताकत वाला है. और ताकत भी तो स्वयं उसने ही बनाई है :-)
हर इंसान में खुदा के होने की बात केवल उपमा ही है, जैसे की कोई कहे कि मेरे अन्दर मेरी माँ है अथवा मेरी माँ में मैं हूँ. तो इसका मतलब होगा कि मेरी माँ की खूबियाँ उसके अन्दर हैं. उपमा का क्या है शायर तो किसी भी चीज़ की उपमा किसी भी चीज़ में दे देते हैं, कभी प्रेमिका को समुन्द्र की लहरों जैसा चंचल तो कभी फूलों जैसा कोमल बना देते हैं. ;-)
bilkul sahi kaha hai apne sahnavaj ji. Lekin Saleem saheb kya wo to ab Chand pe Maszid Banvane ki bat kar rahe hain.
@ हर धर्म के विद्वान लोगो का येही कहना है कि सभी धर्म सही रास्ता दिखलाते हैं
बिलकुल सही कहते है मानव का धर्म तो मानवता ही रहेगा. चाहे उपासना पद्दति कोई सी भी हो.
कोई भी ना तो धर्म परिवर्तन कर सकता है ना करवा सकता है. हाँ उपासना पद्दति का तरीका जरूर परिवर्तित किया जा सकता है. अब उपासना पद्दतियों के परिवर्तन के लिए मानवता से हटना कैसे धर्म कहलायेगा ?????? धर्म तो बिचारा पीछे छूट गया और अपनी अपनी उपासना पद्दति को श्रेष्ठ बताने के चक्कर में चारों ओर अधर्म का डंका बज रहा है
"दलित समाज के लिए स्वर्णिम युग...
‘‘यह नाटक होने के बाद रानी कहती है - महिलाओं, मुझसे कोई भी संभोग नहीं करता। अतएव यह घोड़ा मेरे पास सोता है।....घोड़ा मुझसे संभोग करता है, इसका कारण इतना ही है अन्य कोई भी मुझसे संभोग नहीं करता।....मुझसे कोई पुरुष संभोग नहीं कर रहा है इसलिए मैं घोड़े के पास जाती हूँ।'' इस पर एक तीसरी कहती है - ‘‘तू यह अपना नसीब मान कि तुझे घोड़ा तो मिल गया। तेरी माँ को तो वह भी नहीं मिला।''
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ना मैं मंदिर, ना मैं मस्जिद, ना काबे-कैलास में...
मोको कहां ढूंढे रे बंदे, मैं तो तेरे पास में...
आपने एकदम सच लिखा है .... किसी का ह्रदय परिवर्तन हो और उस वजह से वो धर्मपरिवर्तन करे तो बात समझ में आती है ... पर ये भी सच है कि आज के दिन ९९ % धर्म परिवर्तन केवल लालच और ज़बरदस्ती से हो रहा है ... कहीं पैसे की लालच, कहीं स्वर्ग की, कहीं दो शादियों की, कहीं आरक्षण की तो कहीं जातिप्रथा से मुक्ति की ... पर क्या सचमुच मुक्ति मिलती है इस तरह ... मेरे ख्याल से तो नहीं ... मैंने जितना भी देखा जाना है, धर्म परिवर्तन से केवल मुट्ठीभर लोगों को ही फायदा पहुंचा है ...
सबको चाहिए की अपनी आत्मा की बुराईयों से लादे और उन बुराईयों को ख़त्म करे. खुद को बदलो धर्म को नहीं. वैसे कितना माल मिलता है धर्म बदलने का और कौन देता है? कुछ कमाई ही हो जाए?. यदि आप को "अमन के पैग़ाम" से कोई शिकायत हो तो यहाँ अपनी शिकायत दर्ज करवा दें. इस से हमें अपने इस अमन के पैग़ाम को और प्रभावशाली बनाने मैं सहायता मिलेगी,जिसका फाएदा पूरे समाज को होगा. आप सब का सहयोग ही इस समाज मैं अमन , शांति और धार्मिक सौहाद्र काएम कर सकता है. अपने कीमती मशविरे देने के लिए यहाँ जाएं
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