दिल्ली के पास महरौली मैं स्थित ये मस्जिद क़ुतुब मीनार के प्रांगन मैं स्थित है. जिसके अन्दर घुसने से पहले ही दरवाजे पर दिल्ली सरकार का सूचना बोर्ड लगा हुआ है, कि ये मस्जिद २७ हिन्दू और जैन मंदिरों को तोड़ कर के बनाई गई है. जब आप इस मंदिर (मस्जिद) मैं लगे हुए खम्बो को देखेंगे तो तुरंत पता चल जायेगा, उन पर उकेरी हुई देवी और देवातावो कि परतिमाये और घंटियाँ ये चिल्ला - चिल्ला के कहती हैं कि ये मस्जिद नहीं बल्कि एक वेधशाला थी. देवी और देवातावो कि प्रतिमावो को ऊपर से छील दिया गया है.
पश्चिम से आये मुस्लिम लड़ाके , अपनी जीत दर्ज करने के बाद अपना गुस्सा हिन्दू मंदिरों पर उतारते थे. हिन्दू मंदिरों को तोड़ कर के वंहा पर किसी न किसी प्रमुख मुस्लिम व्यक्ति कि कब्र बना देना उनकी आदत थी, इस काम मैं उन्हें क्या आनंद आता था ?........पता नहीं.
दिल्ली का इतिहास महाभारत काल से विद्यमान है, सबसे पहले पांड्वो ने अपनी राजधानी २५०० ई. पु. मैं बनाई, जिसका नाम उन्होंने ने इन्द्रप्रस्थ रखा, इन्द्रप्रस्थ से भी पहले इसका नाम खंडवाप्रस्थ था. ७३६ ए डी से लेकर के ११९२ तक तोमर-चौहान वंस के राजावो ने राज्य किया.
उसके बाद १२०६-१२९० तक माम्लुक्स वंस के लोगो ने दिल्ली पर राज्य किया, खिलजी वंस का राज्य १२९०- १३२० तक चला, फिर आया तुगलकी फरमान वालो का नम्बर जिन्होंने १३२०-१४१३ तक दिल्ली पर राज्य किया, उसके बाद सैयेद बंधू ने भी अपनी किश्मत १४१४ से लेकर १४५१ तक आजमाई. फिर आये श्रीमान लोधी वंस के शासक जिन्होंने लोधी वंस के दीपक को १४५१ से लेकर के १५२६ तक जलाया. लम्बा समय निकला मुग़ल शासको ने १५२६ से लेकर के १८५७ तक उसके बाद शुरू हुआ भारत कि आज़ादी का दौर . अंग्रेजो ने भी १८५७ से १९४७ तक भारत कि तरक्की मैं पूरा योगदान दिया. और अब तो बाबा आक्टोपस ही बताएँगे कि दिल्ली मैं दीक्षित और इटालियन वंस का साम्राज्य कब चलेगा।
महरौली मैं मीनार बनाने के श्रेय पृथ्वीराज चौहान को जाता है, मीनार से पहले वंहा पर बहुत ही सुन्दर सा किला और किले के पास अतिसुन्दर सी वेधशाला (ज्योतिष गड़ना) के लिए बनी थी. महाराजा पृथ्वी राज चौहान ने उसी प्रांगन मैं मीनार बनवाने काम शुरू किया. लेकिन काम ख़त्म होने से पहले ही ११९२ मैं गजनी के हाथो हुई हार से बाकि काम रुक गया और श्रेया मिला कुतुब्दीन एबक को.
पश्चिम से आये मुस्लिम लड़ाके , अपनी जीत दर्ज करने के बाद अपना गुस्सा हिन्दू मंदिरों पर उतारते थे. हिन्दू मंदिरों को तोड़ कर के वंहा पर किसी न किसी प्रमुख मुस्लिम व्यक्ति कि कब्र बना देना उनकी आदत थी, इस काम मैं उन्हें क्या आनंद आता था ?........पता नहीं.
दिल्ली का इतिहास महाभारत काल से विद्यमान है, सबसे पहले पांड्वो ने अपनी राजधानी २५०० ई. पु. मैं बनाई, जिसका नाम उन्होंने ने इन्द्रप्रस्थ रखा, इन्द्रप्रस्थ से भी पहले इसका नाम खंडवाप्रस्थ था. ७३६ ए डी से लेकर के ११९२ तक तोमर-चौहान वंस के राजावो ने राज्य किया.
उसके बाद १२०६-१२९० तक माम्लुक्स वंस के लोगो ने दिल्ली पर राज्य किया, खिलजी वंस का राज्य १२९०- १३२० तक चला, फिर आया तुगलकी फरमान वालो का नम्बर जिन्होंने १३२०-१४१३ तक दिल्ली पर राज्य किया, उसके बाद सैयेद बंधू ने भी अपनी किश्मत १४१४ से लेकर १४५१ तक आजमाई. फिर आये श्रीमान लोधी वंस के शासक जिन्होंने लोधी वंस के दीपक को १४५१ से लेकर के १५२६ तक जलाया. लम्बा समय निकला मुग़ल शासको ने १५२६ से लेकर के १८५७ तक उसके बाद शुरू हुआ भारत कि आज़ादी का दौर . अंग्रेजो ने भी १८५७ से १९४७ तक भारत कि तरक्की मैं पूरा योगदान दिया. और अब तो बाबा आक्टोपस ही बताएँगे कि दिल्ली मैं दीक्षित और इटालियन वंस का साम्राज्य कब चलेगा।
महरौली मैं मीनार बनाने के श्रेय पृथ्वीराज चौहान को जाता है, मीनार से पहले वंहा पर बहुत ही सुन्दर सा किला और किले के पास अतिसुन्दर सी वेधशाला (ज्योतिष गड़ना) के लिए बनी थी. महाराजा पृथ्वी राज चौहान ने उसी प्रांगन मैं मीनार बनवाने काम शुरू किया. लेकिन काम ख़त्म होने से पहले ही ११९२ मैं गजनी के हाथो हुई हार से बाकि काम रुक गया और श्रेया मिला कुतुब्दीन एबक को.
10 comments:
सादर वन्दे !
तारकेश्वर जी आपने एकदम कम शब्दों में जिस सत्य इतिहास को सबके सामने रखा है वह बधाई योग्य है !
पता नहीं क्यों हमारी सरकारें देश का गलत इतिहास पढ़ाती हैं, और हमारा बुद्धिजीवी वर्ग चुप रहता है !
एक बार पुनः बधाई !
रत्नेश त्रिपाठी
ये कैसी रामचरितमानस!!! जहा नायक (राम) और खलनायक (रावण)की पैदाइस मे गडबड है
http://blondmedia.blogspot.com/2010/07/blog-post_12.html
ॐ शांति । क्या बात है जनाब ? सब ख़ैरियत तो है न ?
गिरी जी आपने सच्चाई सबके सामने रख कर सराहनीय काम किया है। हिन्दू मन्दिरों को मुसलमानों ने तोड़ कर मस्जिदें बनबाई इसमें कोई शक नहीं लेकिन सेकुलर गद्दार तो वाकी मन्दिरों को भी मुसलिम आतंकवादियों से तुड़वाने के चक्कर में हैं।
@ Tarkeshwar ji ! ise bhi dekhen . कंधमाल में ईसाईयों का संहार सुनियोजित था। फादर जोसेफ बताते हैं कि यह घटना एकाएक नहीं हुई। इसके लिए संघ परिवार ने गाँव -गाँव में लोगों से मिलकर कई वर्षोपूर्व ईसाईयों के विरूद्ध नफरत फैलाना आरम्भ कर दिया था। कंधमाल के आदिवासी और दलितों में भी कट्टरपंथियों ने अपनी भारी पैठ बना ली थी। हम लोग समझ नहीं पाये थे। स्वामी लक्ष्मणानन्द की हत्या तो सिर्फ बहाना था उनकी हत्या की जिम्मेदारी माओवादियों ने स्वयं ले लिया था। माओवादियों का आरोप था कि लक्ष्मणानन्द धर्म के काम नहीं कर रहे थे। वे लोगों में नफरत फैला रहे थे, गरीबों की जमीन पर कब्जा कर रहे थे। http://ayodhyakiawaj.blogspot.com/2010/05/blog-post.html
तारकेश्वर जी
नमस्ते
अपने सत्य को उजागर किया है वास्तव में मुसलमानों क़े कर्म इसी प्रकार है देश आज़ादी क़े पश्चात् यह सब ठीक हो जाना चाहिए था लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ क्यों की सत्ता गोरे अंग्रेजो ने काले अंग्रेजो क़े हाथ में दी ,लेकिन आपके पोस्ट पर कुकुर मुत्तो क़ा कमेन्ट अच्छा नहीं लगा.
धन्यवाद
Part 1of 4
बहुत दिनों से एक विचार मेरे मन की गहराइयों में हिलोरे खा रहा था लेकिन उसे मूर्त रूप प्रदान करने के लिए आप सबका सहयोग चाहिए इसलिए उसे आप सबके समक्ष रखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था की पता नहीं कहीं वो असफल और अस्वीकार ना हो जाए लेकिन तभी ये विचार भी आया की बिना बताये तो स्वीकार होने से रहा इसलिए बताना ही सही होगा .
दरअसल जब भी मैं इस देश की गलत व्यवस्था के बारे में कोई भी लेख पढता हूँ, स्वयं लिखता हूँ अथवा किसी से भी चर्चा होती है तो एक अफ़सोस मन में होता है बार-2 की सिर्फ इसके विरुद्ध बोल देने से या लिख देने से क्या ये गलत व्यवस्थाएं हट जायेंगी , अगर ऐसा होना होता तो कब का हो चुका होता , हम में से हर कोई वर्तमान भ्रष्ट system से दुखी है लेकिन कोई भी इससे बेहतर सिस्टम मतलब की इसका बेहतर विकल्प नहीं सुझाता ,बस आलोचना आलोचना और आलोचना और हमारा काम ख़त्म , फिर किया क्या जाए ,क्या राजनीति ज्वाइन कर ली जाए इसे ठीक करने के लिए ,इस पर आप में से ज़्यादातर का reaction होगा राजनीति !!! ना बाबा ना !(वैसे ही प्रकाश झा की फिल्म राजनीति ने जान का डर पैदा कर दिया है राजनीति में कदम रखने वालों के लिए ) वो तो बहुत बुरी जगहं है और बुरे लोगों के लिए ही बनी है , उसमें जाकर तो अच्छे लोग भी बुरे बन जाते हैं आदि आदि ,इस पर मेरा reaction कुछ और है आपको बाद में बताऊंगा लेकिन फिलहाल तो मैं आपको ऐसा कुछ भी करने को नहीं कह रहा हूँ जिसे की आप अपनी पारिवारिक या फिर अन्य किसी मजबूरी की वजह से ना कर पाएं, मैं सिर्फ अब केवल आलोचना करने की ब्लॉग्गिंग करने से एक step और आगे जाने की बात कर रहा हूँ आप सबसे
आप सबसे यही सहयोग चाहिए की आप सब इसके मेम्बर बनें,इसे follow करें और प्रत्येक प्रस्ताव के हक में या फिर उसके विरोध में अपने तर्क प्रस्तुत करें और अपना vote दें
जो भी लोग इसके member बनेंगे केवल वे ही इस पर अपना प्रस्ताव पोस्ट के रूप में publish कर सकते हैं जबकि वोटिंग members और followers दोनों के द्वारा की जा सकती है . आप सबको एक बात और बताना चाहूँगा की किसी भी common blog में members अधिक से अधिक सिर्फ 100 व्यक्ति ही बन सकते हैं ,हाँ followers कितने भी बन सकते हैं
तो ये था वो सहयोग जो की मुझे आपसे चाहिए ,
मैं ये बिलकुल नहीं कह रहा हूँ की इसके बदले आप अपने-२ ब्लोग्स लिखना छोड़ दें और सिर्फ इस पर ही अपनी पोस्ट डालें , अपने-2 ब्लोग्स लिखना आप बिलकुल जारी रखें , मैं तो सिर्फ आपसे आपका थोडा सा समय और बौद्धिक शक्ति मांग रहा हूँ हमारे देश के लिए एक बेहतर सिस्टम और न्याय व्यवस्था का खाका तैयार करने के लिए
1. डॉ. अनवर जमाल जी
2. सुरेश चिपलूनकर जी
3. सतीश सक्सेना जी
4. डॉ .अयाज़ अहमद जी
5. प्रवीण शाह जी
6. शाहनवाज़ भाई
7. जीशान जैदी जी
8. पी.सी.गोदियाल जी
9. जय कुमार झा जी
10.मोहम्मद उमर कैरान्वी जी
11.असलम कासमी जी
12.राजीव तनेजा जी
13.देव सूफी राम कुमार बंसल जी
14.साजिद भाई
15.महफूज़ अली जी
16.नवीन प्रकाश जी
17.रवि रतलामी जी
18.फिरदौस खान जी
19.दिव्या जी
20.राजेंद्र जी
21.गौरव अग्रवाल जी
22.अमित शर्मा जी
23.तारकेश्वर गिरी जी
( और भी कोई नाम अगर हो ओर मैं भूल गया हों तो मुझे please शमां करें ओर याद दिलाएं )
मैं इस ब्लॉग जगत में नया हूँ और अभी सिर्फ इन bloggers को ही ठीक तरह से जानता हूँ ,हालांकि इनमें से भी बहुत से ऐसे होंगे जो की मुझे अच्छे से नहीं जानते लेकिन फिर भी मैं इन सबके पास अपना ये common blog का प्रस्ताव भेजूंगा
common blog शुरू करने के लिए और आपको उसका member बनाने के लिए मुझे आप सबकी e -mail id चाहिए जिसे की ब्लॉग की settings में डालने के बाद आपकी e -mail ids पर इस common blog के member बनने सम्बन्धी एक verification message आएगा जिसे की yes करते ही आप इसके member बन जायेंगे
प्रत्येक व्यक्ति member बनने के बाद इसका follower भी अवश्य बने ताकि किसी member के अपना प्रस्ताव इस पर डालते ही वो सभी members तक blog update के through पहुँच जाए ,अपनी हाँ अथवा ना बताने के लिए मुझे please जल्दी से जल्दी मेरी e -mail id पर मेल करें
mahakbhawani@gmail.com
हमारे इस common blog में प्रत्येक प्रस्ताव एक हफ्ते के अंदर अंदर पास किया जायेगा , Monday को मैं या आप में से इच्छुक व्यक्ति अपना प्रस्ताव पोस्ट के रूप में डाले ,Thursday तक उसके Plus और Minus points पर debate होगी, Friday को वोटिंग होगी और फिर Satuday को votes की गणना और प्रस्ताव को पास या फिर reject किया जाएगा वोटिंग के जरिये आये हुए नतीजों से
आप सब गणमान्य ब्लोग्गेर्स को अगर लगता है की ऐसे कई और ब्लोग्गेर्स हैं जिनके बौधिक कौशल और तर्कों की हमारे common ब्लॉग को बहुत आवश्यकता पड़ेगी तो मुझे उनका नाम और उनका ब्लॉग adress भी अवश्य मेल करें ,मैं इस प्रस्ताव को उनके पास भी अवश्य भेजूंगा .
तो इसलिए आप सबसे एक बार फिर निवेदन है इसमें सहयोग करने के लिए ताकि आलोचना से आगे भी कुछ किया जा सके जो की हम सबको और ज्यादा आत्मिक शान्ति प्रदान करे
इन्ही शब्दों के साथ विदा लेता हूँ
जय हिंद
महक
जय भीम । आठवीं शताब्दी में शंकराचार्य द्वारा किया बौद्धो का नरसंहार का इतिहास भी पढ़े कि कैसे पूरे देश के बौद्धो को मारा गया कि पूरे देश मे दिया लेकर ढूँढने से भी बौद्ध नही मिलता था
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