नारी से पुरुष है तो पुरुष से नारी. दोनों एक दुसरे के बिना अधूरे हैं. लेकिन ये जरुरी है की पुरुष अपनी मर्यादा में ही रहे और नारी अपनी मर्यादा में. निर्मला जी की बातो से सहमत हूँ की कंही न कंही औरत समाज की स्थिति दयनीय है और उसका जिम्मेदार पुरुष ही है . लेकिन वोही पुरुष समाज दूसरी तरफ महिलावो को समाज से जोड़ने में मदद भी कर रहा है.
अगर में एक माँ का बेटा हूँ तो दो बहनों का भाई भी हूँ और एक बेटी का पिता भी हूँ तो साथ मैं पति की भूमिका मैं भी . ये मेरी जिम्मेदारी है. ठीक उसी तरह से जिम्मेदारी महिलावो की भी है.
नारी कभी भी किसी की गुलाम नहीं रही है , ना ही कभी रहेगी. लेकिन इसका मतलब ये नहीं की नारी के अन्दर सारे गुण पुरुष की तरह हो जाय.
अभी पंजाब का एक वाकया सबको पता हो गा , जंहा पर दो लड़कियों ने आपस मैं शादी की है. इस शादी या आज़ादी का मतलब क्या है. क्या इस से नारी या पुरुष का चरित्र साफ होता है, शायद नहीं. जिंदगी की शुरुवात सिर्फ नारी या सिर्फ पुरुष से संभव नहीं है दोनों का साथ जरुरी है. दोनों के बीच आपसी तालमेल जरुरी है.
भारतीय समाज की तुलना अगर अरबियन समाज से या यूरोपियन समाज से की जाय तो पता चलता है की भारत के अन्दर महिलावो की स्थिति बाकि समाज से काफी अलग और मजबूत है.हिंदुस्तान मैं कंही ना कंही औरत की महत्वता को समझते हुए ऋषि -मुनियों ने वेदों मैं काफी ऊँचा स्थान दिया है.
यूरोपियन और अरबियन समाज मैं औरत सिर्फ बच्चा पैदा करने का और मनोरंजन का साधन मात्र है. यूरोपियन समाज मैं किस बच्चे का पिता कौन है , ये उस बच्चे की माँ को भी नहीं पता चल पता. यूरोपियन समाज की औरतो ने एक अच्छी जिंदगी जीने के लिए अगर अपनी जमीन तैयार की है, तो उसकी वजह मात्र शिक्षा है. लेकिन उनकी शिक्षा के आगे उनका समाज आड़े आ जाता है और एक नई बीमारी जो की कैरिअर के रूप मैं है.
भारतीय समाज के अन्दर शादी -विवाह नाम की मजबूत व्यस्था और मजबूत सामाजिक ढांचा होने की वजह से उपरोक्त नौबत नहीं आती है। लेकिन अब भारती नारी समाज को भी यूरोपियन तरीके की आज़ादी रास आने लगी है.
अगर में एक माँ का बेटा हूँ तो दो बहनों का भाई भी हूँ और एक बेटी का पिता भी हूँ तो साथ मैं पति की भूमिका मैं भी . ये मेरी जिम्मेदारी है. ठीक उसी तरह से जिम्मेदारी महिलावो की भी है.
नारी कभी भी किसी की गुलाम नहीं रही है , ना ही कभी रहेगी. लेकिन इसका मतलब ये नहीं की नारी के अन्दर सारे गुण पुरुष की तरह हो जाय.
अभी पंजाब का एक वाकया सबको पता हो गा , जंहा पर दो लड़कियों ने आपस मैं शादी की है. इस शादी या आज़ादी का मतलब क्या है. क्या इस से नारी या पुरुष का चरित्र साफ होता है, शायद नहीं. जिंदगी की शुरुवात सिर्फ नारी या सिर्फ पुरुष से संभव नहीं है दोनों का साथ जरुरी है. दोनों के बीच आपसी तालमेल जरुरी है.
भारतीय समाज की तुलना अगर अरबियन समाज से या यूरोपियन समाज से की जाय तो पता चलता है की भारत के अन्दर महिलावो की स्थिति बाकि समाज से काफी अलग और मजबूत है.हिंदुस्तान मैं कंही ना कंही औरत की महत्वता को समझते हुए ऋषि -मुनियों ने वेदों मैं काफी ऊँचा स्थान दिया है.
यूरोपियन और अरबियन समाज मैं औरत सिर्फ बच्चा पैदा करने का और मनोरंजन का साधन मात्र है. यूरोपियन समाज मैं किस बच्चे का पिता कौन है , ये उस बच्चे की माँ को भी नहीं पता चल पता. यूरोपियन समाज की औरतो ने एक अच्छी जिंदगी जीने के लिए अगर अपनी जमीन तैयार की है, तो उसकी वजह मात्र शिक्षा है. लेकिन उनकी शिक्षा के आगे उनका समाज आड़े आ जाता है और एक नई बीमारी जो की कैरिअर के रूप मैं है.
भारतीय समाज के अन्दर शादी -विवाह नाम की मजबूत व्यस्था और मजबूत सामाजिक ढांचा होने की वजह से उपरोक्त नौबत नहीं आती है। लेकिन अब भारती नारी समाज को भी यूरोपियन तरीके की आज़ादी रास आने लगी है.
28 comments:
यूरोपियन समाज मैं किस बच्चे का पिता कौन है , ये उस बच्चे की माँ को भी नहीं पता चल पता.
-ये कौन सी धारणा पाले बैठे हैं आप??? आप यूरोप या पश्चिमी देशों को क्या समझ रहे हैं..कोई ब्रोथेल है क्या??? प्रतिशत की बजाय अंको में गिने तो हम ही जीते नजर आयेंगे भारत में..जरा करीब से जानिये..तब धारणा बनाईये. मित्रवत सलाह है.
आप बहुत अच्छा लिखते हैं अतः निवेदन है कि ऐसा लिखने से बचें.
मैं इस बात से सहमत नहीं. यह मात्र यहाँ के खुले और स्वतंत्र विचारों को गलत नजरिये से देखने का परिणाम स्वरुप निर्धारित धारणा है.
समीर लाल जी की बातों से शत प्रतिशत सहमत हूँ....
इस तरह की गलत धारणा न तो आप अपने मन में पालें नहीं ही इसे हवा दें....यहाँ भी सभी इंसान रहते हैं....जानवर नहीं...
कभी आइये और देखिये...और जहाँ तक इस तरह के आकर्षण का प्रश्न है यह अनादिकाल से चला आरहा है....भारत भी इससे अछूता कभी नहीं रहा है.....हाँ कानूनी दर्ज़ा देने में पश्चिम के समाज ने पहल ज़रूर की है....
मुझे आपकी बातों से सख्त एतराज़ हुआ है...
समीर जी सही कह रहे हैं.. पश्चिमी देशों के बारे में लोगों ने सिर्फ मनगढ़ंत कहानी-किस्से सुन गलत धारणा पाल रखी है, बेहतर है कि हर भारतीय नागरिक एक बार इस जीवनशैली को खुद देखे, समझे तब किसी नतीजे पर पहुंचे.. ऐसे पूर्वाग्रह पालना ठीक नहीं. आभार.
I endorese the view by sameer and ada and also i object to your writing because you have tried to abuse the contemprory indian woman
Its high time you let indian woman decide what is good and bad for her
आदरणीय समीर जी, अदा जी , रचना जी और दीपक जी, शुभ प्रभात.
बहुत अच्छा लगा की आप सब लोग मेरे ब्लॉग पर आये. लेकिन आप लोगो ने सिर्फ एक शब्द को पकड़ कर के एक ही शब्दों में जबाब दे दिया . अच्छा लगा. में कभी यूरोप , अमेरिका या कनाडा नहीं गया. लेकिन आये दिन खबरे पढता रहता हूँ की वंहा के मूल लोगो की सामाजिक स्थिथि क्या है. सेक्स एक आम और खुली हुई अवधारणा है. उपरोक्त देशो में सेक्स सिर्फ आनंद की चीज है. परिवार क्या होता है , और पारिवारिक रिश्ते क्या होते हैं ये तो मुझसे बढ़िया तरीके से आप लोग देख रहे होंगे वंहा पर.
हर समय एक जैसा ही रिश्ता देखने को मिलता है की फ़ला नाम की लड़की बिना शादी किये हुए ही दो बच्चो की माँ बन गई है. शादी कब करेगी ये नहीं पता . पूछने पर पता चलता है की अभी देख रहे की मियां और बीबी (आदमी और औरत कहना ज्यादा उचित होगा क्योंकि) की आपस में बनती है या नहीं. कुछ दिन बाद पता चलता है की आदमी ने किसी और औरत के साथ शादी कर ली और औरत ने किसी और आदमी के साथ. बच्चो का भविष्य दोनों की सोच के उपर ............. अपने सुख ले किये बछो का भविष्य दावँ पर.
आदरणीय समीर जी, और अदा जी आप लोगो से उम्र में छोटा हूँ अगर कुछ गलत लिखा है मैंने तो .... आपकी सलाह हमेशा सर आँखों पर.
गिरी जी पच्छिमी समाज की मूल समस्या परिवार के विघटन की है. परिवार नामक संस्था के नष्ट-प्राय हो जाने के कारण संस्कारों का हस्तांतरण रुक जाने की समस्या पैदा हो गयी है जिससे विवाह नामक व्यवस्था भी छिन्न-भिन्न हो गयी. और जहाँ परिवार या समाज का अंकुश नहीं हो वहा यह विकृति तो आना स्वाभाविक ही है.
भारत में pa विवाह को सोलह संस्कारों में से एक संस्कार माना गया है। विवाह = वि + वाह, अत: इसका शाब्दिक अर्थ है - विशेष रूप से (उत्तरदायित्व का) वहन करना। पाणिग्रहण संस्कार को सामान्य रूप से हिंदू विवाह के नाम से जाना जाता है। अन्य धर्मों में विवाह पति और पत्नी के बीच एक प्रकार का करार होता है जिसे कि विशेष परिस्थितियों में तोड़ा भी जा सकता है परंतु हिंदू विवाह पति और पत्नी के बीच जन्म-जन्मांतरों का सम्बंध होता है जिसे कि किसी भी परिस्थिति में नहीं तोड़ा जा सकता। अग्नि के सात फेरे ले कर और ध्रुव तारा को साक्षी मान कर दो तन, मन तथा आत्मा एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं। हिंदू विवाह में पति और पत्नी के बीच शारीरिक संम्बंध से अधिक आत्मिक संम्बंध होता है और इस संम्बंध को अत्यंत पवित्र माना गया है।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार मानव जीवन को चार आश्रमों (ब्रम्हचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, सन्यास आश्रम तथा वानप्रस्थ आश्रम) में विभक्त किया गया है और गृहस्थ आश्रम के लिये पाणिग्रहण संस्कार अर्थात् विवाह नितांत आवश्यक है। हिंदू विवाह में शारीरिक संम्बंध केवल वंश वृद्धि के उद्देश्य से ही होता है।
@ तारकेश्वर भाई !
" यूरोपियन और अरबियन समाज मैं औरत सिर्फ बच्चा पैदा करने का और मनोरंजन का साधन मात्र है. यूरोपियन समाज मैं किस बच्चे का पिता कौन है , ये उस बच्चे की माँ को भी नहीं पता चल पता." मैं यह मान रहा हूँ कि यह शब्द असावधानी वश लिखे होंगे ! कृपया इन्हें तुरंत हटा दें ! किसी देश समाज और समूह का अपमान करने का हमारा कोई हक़ नहीं होता !
सादर
" यूरोपियन और अरबियन समाज मैं औरत सिर्फ बच्चा पैदा करने का और मनोरंजन का साधन मात्र है. यूरोपियन समाज मैं किस बच्चे का पिता कौन है , ये उस बच्चे की माँ को भी नहीं पता चल पता."
समीर जी से पूर्णत सहमत सिर्फ पढ़ी हुई बातों पर पूर्वाग्रह बना लेना ठीक नहीं परिवार पश्चिमी देशों में भी होते हैं ..और जो तथाकथित कमियां आपने बताईं .वो भारत में भी पाई जाती हैं और हमेशा से थीं. हर समाज में खूबियां और कमियां होती हैं और बिना उन्हें जाने समझे इस तरह लिखना ठीक नहीं.
आज़ादी का मतलब ये कभी भी नही है की हम अपने सामाजिक नियमों को भूल जाएँ ... पाश्चात्य देश भी अपनी सांस्कृति को नही भूलते ... ये सब भ्रांतियाँ हैं की वहाँ कौन किसका बाप है इसका पता नही चलता ... समीर भाई ने ठीक लिखा है ... करीब से देखने की ज़रूरत है ...
वैसे बहुत कुछ सीखने की भी ज़रूरत है उनसे ... ये समझने की भी ज़रूरत है की क्यों वो हम लोगों से इतने आगे हैं ...
यूरोपियन समाज मैं किस बच्चे का पिता कौन है , ये उस बच्चे की माँ को भी नहीं पता चल पता. हां मेने यहां देखा है ऎसा होता, ओर यह एक कडबी सच्चाई है, जिसे हम झुठला नही सकते, मेरे मित्र के आठ भाई बहिन है, सभी के अलग अलग बाप हे, ओर वो मुझे खुद बताता है ओर यह सब बिना शादी के है, कुछ समय पहले पढा था कि एक आदमी ने १८ साल बाद डी एन ऎ करवा कर अपनी पहली बीबी पर मुकद्दमा ठोंक दिया कि जिस बच्चे का खर्च वो लेती रही असल मे वो बच्चा किसी ओर का था, असल मै य्रुरोप मै यह आम बात है, इस लिये मै आप की बात से सहमत हुं अमेरिका ओर कानाडा के बारे मुझे नही पता.... ओर हम लोग ही इन बातो को तुल देते है, इन्हे कोई फ़र्क नही पडता.
भाटिया जी सबसे पहले तो आप मेरा नमस्कार स्वीकार करे.
में तो निराश हो चूका था, लेकिन इतना भरोषा था की मैंने गलत नहीं लिखा है लेकिन आपकी टिप्पड़ी ने कुछ राहत दी है, इसके लिए धन्यवाद्.
एक बात कहूं हम लोग नैतिक होने का ढ़िंढोरा पीटते रहते हैं लेकिन घोर अनैतिक हैं. आज से पचास साल पहले के मूल्यों में अब के मूल्यों में जमीन आसमान का अन्तर है.. हर व्यक्ति दूसरे को धोखा दे रहा है और यही हमारी फितरत बन गयी है.
सच्चाई कडवी ही होती है भारतीय समाज ना पुरुष प्रधान था ना स्त्री प्रधान. भारतीय समाज परिवार प्रधान समाज था, और अभी भी है. लेकिन पश्चिम के विकारों को आजादी का नाम देकर जिस तरह से अपनाये जाने की घिनोनी भेडचाल मची उससे सारा ढांचा ही भरभरा रहा है. विकार सब जगह मौजूद होते है. विवाह नामक संस्था जो की परिवार का मूल आधार है के विचलन के ही परिणाम है यह सब.
@ ये समझने की भी ज़रूरत है की क्यों वो हम लोगों से इतने आगे हैं ...------------ क्या भौतिक उन्नति ही सब कुछ है?????
परिवार के नाम तो लगभग दिवालियेपन की कगार पर है शायद, और उन्ही को आदर्श मानकर भारत भी उसे रह पर चलने की कोशिश में.
तारकेश्वर जी आप की बात से तो मैं भी सहमत नहीं हूँ. मुझे लगता है की पश्चिम में माँ को तो पता होता है की बच्चा किस का है पर पिता को पता नहीं होता की जिसे वो अपना बच्चा समझ रहा है असल में वो किस का बच्चा है. bechara sari umr जिसे अपना समझ kar palata है वो असल में kisi dusare की santan होता है. baki bateen मुझे khud lekh likh kar kahani padengi.
अमित शर्मा जी की बात से पूर्णत: सहमत हूँ.
अमित शर्मा said...
सच्चाई कडवी ही होती है भारतीय समाज ना पुरुष प्रधान था ना स्त्री प्रधान. भारतीय समाज परिवार प्रधान समाज था, और अभी भी है. लेकिन पश्चिम के विकारों को आजादी का नाम देकर जिस तरह से अपनाये जाने की घिनोनी भेडचाल मची उससे सारा ढांचा ही भरभरा रहा है. विकार सब जगह मौजूद होते है. विवाह नामक संस्था जो की परिवार का मूल आधार है के विचलन के ही परिणाम है यह सब.
@ ये समझने की भी ज़रूरत है की क्यों वो हम लोगों से इतने आगे हैं ...------------ क्या भौतिक उन्नति ही सब कुछ है?????
परिवार के नाम तो लगभग दिवालियेपन की कगार पर है शायद, और उन्ही को आदर्श मानकर भारत भी उसे रह पर चलने की कोशिश में.
jangadna kaa kaarya chal rahaa haen aur maa kaa naam hi puchha jaa rahaa haen yahaan jaraa pataa karey aesa sarkaar kyun kar rahee haen
गिरी जी,
अपवाद हर समाज में होता है...
अगर भाटिया जी ने ऐसा देख है तो कितने परिवारों में देखा है...और उस एक घटना से पूरे समाज के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता है...
ऐसा ही उदहारण हमारे महाभारत में भी है....लेकिन अब कितनी द्रौपदियां मिलतीं हैं देखने को ......दबे छुपे यह सब भारत में भी है....फर्क सिर्फ इतना है कि यहाँ लोग इमानदारी से इसे स्वीकार करते हैं...
मेरी बात बुरी लग सकती है...लेकिन ईमानदारी से आप अगर पांडवों के जन्म के बारे में पढ़ें तो आप क्या पायेंगे....आप सोच सकते हैं...हम भारतीयों में यह बहुत भरी कमी है....हर वक्त आत्ममुग्धता में ही लगे रहते हैं....यूरोप और पश्चिम का समाज अपनी गलतियों से आँखें नहीं चुराता है ....जैसे कि भाटिया जी ने बताया ..उनके दोस्त ने खुद ही उसे बताया है कि उसके हर भाई-बहन का अलग पिता है....जाहिर सी बात है ..यह बात उसकी माँ ने बताया होगा अपने बच्चों को ....अब आप ईमानदारी से बताइए क्या हमारे समाज में इतनी ईमानदारी मिलेगी आपको देखने को...मेरे विचार न बिलकुल नहीं मिलेगी.....
आपको बता दूँ यहाँ भी परिवार हैं....मेरे घर के चारों तरफ हर जगह के लोग हैं ...ब्रिटिश , पोलिश, फ्रेंच, कनाडियन....और हर कोई परिवार वाला है....खुश है....
पिता अपने बच्चे को अपना इसलिए समझता है क्योंकि पत्नी ऐसा कहती है....यह बात सिर्फ पत्नी ही जानती है कि बच्चा किसका है....पति अपने पत्नी पर विश्वास करता है इसलिए वह मान लेता है...वर्ना सच्चाई कुछ भी हो सकती है....
आदरणीय अदा जी में आपके उदहारण से पूर्ण सहमत हूँ की महाभारत में क्या हुआ, लेकिन जो भी हुआ सबको पता है, छुपा हुआ नहीं है. महाभारत जैसी द्रोपदियां आज भी हिमाचल के कुछ आदिवासी समाज में पाई जाति है. लेकिन आपको ये भी पता होना चाहिए की द्रोपती को तुरंत ही बता दिया गया था की उसके कितने पति होंगे.
लेकिन पश्चिमी समाज की हालत अलग है , उसको हम महाभारत से तुलना नहीं कर सकते. रही बात मेरे लेख का तो इसका मतलब वंहा के मूल निवाशियों से है.
आदरणीय रचना जी, हमारी सरकार भी तो विदेशी महिला के हाथ में ही है. आप ये क्यों भूल रही हैं. ये विदेशी महिला वाली सरकार ने वैष्णो देवी और अमरनाथ यात्रा पर जजिया कर लगा दिया है शायद ये आपको पता हो और दूसरी तरफ हज में जाने वालो को सब्सिडी दी जा रही है. तो ये तो हमारी सरकार है ही निराली. रही बात माँ के नाम की तो भारतीय समाज में शादी के दौरान लड़के और लड़की के नानी तक की रिपोर्ट ली जाती थी. बच्चे के साथ माँ और बाप का नाम हमेशा से ही जुड़ा हुआ है न की सिर्फ माँ का नाम.
ये हुई ना काम की बात
@ भाई गिरी जी ! आप की सक्रियता देखकर अच्छा लगा। अब पहले से ही इतने लोग आपका पीछा दबाये बैठे हैं सो अच्छा नहीं लगता कि मैं भी आप पर चढ़ बैठूं लेकिन इतना ज़रूर कहूंगा कि अब हिन्दू समाज में भी विवाह एक संस्कार नहीं बचा। इस्लामी नियम को नाम लिये बिना ही अपना लिया गया है। अब यह एक समझौता ही है। पति पत्नी दोनों तलाक़ लेकर दूसरा विवाह कर सकते हैं। पिछले दिनों कोर्ट ने भी तलाक़ को आसान बना दिया है।
अमित जी को यहां देखकर और उनके विद्वत्तापूर्ण वचन पढ़कर अच्छा लगा।
आज रचना जी को भी देख लिया, बहुत नाम सुना था साहिबा का ।
अदा जी का एक ख़ास अदा के साथ खिंचवाया गया फ़ोटो व उनका कथन अच्छा लगा।
मुझे नहीं लगता कि औरत ग़ुलाम है....
मेनै यह तो कही नही कहा कि युरोप मे कोई परिवार नही होता, अजी होता है, मैने यह तो कही नही कहा कि यह लोग गलत है, या झुठे है, गलत तो हम लोग है जो इन की नकल हर बात मै करते है, मै तो हमेशा कहता हुं हमे इन लोगो से बहुत सी अच्छी बाते सीखनी चाहिये, लेकिन हमे सिर्फ़ गलत बाते ही अच्छी लगती है,वेसे इन लोगो मै बहुत सी अच्छी बाते है तो बुराई भी तो है, यहां सिर्फ़ कानून सख्त है वरना यह लोग भी कम नही, कभी पोलेंड, रुस लेंड मै जा कर देखे,लोगो का क्या हाल है,
चेको, हंगरी,ऊंगारिया जेसे देशो मै जा कर देखे, ओर तो ओर इतली ने नेपल्स मै एक बार घुम आये इस सब देशो मै गोरे ही भरे पडे है हकीकत पता चल जायेगी, यहां लोगो के हालात हमारे देश से भी गंदे है,
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सत्य गौतम said... भगवान बुद्ध द्वारा की धार्मिक क्रांति के फलस्वरूप सात सौ वषोर्ं तक भारत में जातिवाद दब कर मानवतावाद का बोलबाला रहा। इतिहासवेत्ता जानते हैं कि ये ही सात सौ वर्ष भारतवर्ष का स्वर्णयुग है। इसी काल में भारत में अशोक और चंद्रगुप्त जैसे सम्राट हुए, जिनकी यूरोप और एशिया के महान् सम्राटों से मैत्राी रही। यही वह काल है जब भारत में साहित्य और दर्शन एवं शिल्पकला, चित्राकला, स्थापत्यकला इत्यादि कलाओं की श्लाघनीय उन्नति हुई। किन्तु देश के अभ्युदय को जातिवाद रूपी अजगर निगल गया। अंतिम मौर्य सम्राट महाराज वृहद्रथ को मार कर उनके ब्राह्मण सेनापति पुष्यमित्रा ने राज सिंहासन पर अपना अधिकार कर लिया और अपना शुंगवंशीय ब्राह्मण राज्य चलाया। इस ब्राह्मण राज्य में बौद्धों पर अमानुषी अत्याचार होने लगा। बौद्ध विहारों, बौद्ध विद्यालयों और बौद्ध मूर्तियों को नष्ट किया जाने लगा और बौद्ध भिक्षुओं, स्थविरों और महास्थविरों को इस तरह सताया और त्राास दिया जाने लगा कि बेचारे देश छोड़ कर विदेशों को भाग गये
http://buddhambedkar.blogspot.com/2010/06/blog-post_1769.html
June 23, 2010 11:28 PM
भगवान बुद्ध द्वारा की धार्मिक क्रांति के फलस्वरूप सात सौ वषोर्ं तक भारत में जातिवाद दब कर मानवतावाद का बोलबाला रहा। इतिहासवेत्ता जानते हैं कि ये ही सात सौ वर्ष भारतवर्ष का स्वर्णयुग है। इसी काल में भारत में अशोक और चंद्रगुप्त जैसे सम्राट हुए, जिनकी यूरोप और एशिया के महान् सम्राटों से मैत्राी रही। यही वह काल है जब भारत में साहित्य और दर्शन एवं शिल्पकला, चित्राकला, स्थापत्यकला इत्यादि कलाओं की श्लाघनीय उन्नति हुई। किन्तु देश के अभ्युदय को जातिवाद रूपी अजगर निगल गया। अंतिम मौर्य सम्राट महाराज वृहद्रथ को मार कर उनके ब्राह्मण सेनापति पुष्यमित्रा ने राज सिंहासन पर अपना अधिकार कर लिया और अपना शुंगवंशीय ब्राह्मण राज्य चलाया। इस ब्राह्मण राज्य में बौद्धों पर अमानुषी अत्याचार होने लगा। बौद्ध विहारों, बौद्ध विद्यालयों और बौद्ध मूर्तियों को नष्ट किया जाने लगा और बौद्ध भिक्षुओं, स्थविरों और महास्थविरों को इस तरह सताया और त्राास दिया जाने लगा कि बेचारे देश छोड़ कर विदेशों को भाग गये
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@ सत्य गौतम जी |
इतिहास तो मैंने भी पढ़ा है, लेकिन मै महात्मा बुद्ध अनादर नहीं करना चाहता, लेकिन अगर इतिहास खोलना शुरू करूँ तो बुद्ध से लेकर लगातार छिन्न भिन्न होते बौद्ध धर्म कितनी विसंगतियां लिए हुए है, यह भी इतिहास का ही हिस्सा है | मै आपकी तरह विवाद नहीं लिखना चाहता | आप बस इतना समझ ले कि जब पुरे देश में सनातन धर्म और जैन धर्म, था तब महात्मा बुद्ध ने बौद्ध धर्म का प्रचार किया (अकेले) और वे सफल हुए (जबकि उन्होंने भी सनातन धर्म कि एक शाखा को ही अपने में समाहित किया), अब ऐसी क्या परिस्थिति हुयी कि एक महात्मा द्वारा चलाया गया धर्म हजारों बौद्ध गुरु कायम नहीं रख पाए, जहाँ तक बौद्धों के विदेश भागने का प्रश्न है आपको भी जानकारी होगी कि विदेशों में बौद्ध भागकर नहीं, सन्देश लेकर गए | जिस राजा का आप उल्लेख कर रहे हैं उसका शासन पुरे भारत में नहीं था, और आप कौन सा इतिहास पढ़ रहे हैं | किसे बेवकूफ बनाने कि कोशिश कर रहे हैं ?
सच्चाई से मुह छिपाकर किसी को गाली देना जितना ही आसान होता है सच्चाई को स्वीकार करना उतना ही मुस्किल होता है, और आप आसान रास्ता अपनाये हुए हैं |
रत्नेश त्रिपाठी
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