इस्लाम एक ऐसा धर्म , एक ऐसा शब्द जिसको सुनते ही बाकि धर्मो के लोगो का दिमाग भन्ना उठता है उसकी वजह भी शायद जायज ही है। क्योंकि लोगो ने इसी तरह की अफवाह उड़ा रखी है। और लोगो में भी कोई बहार के नहीं , वो लोग भी इस्लाम को ही मानने वाले है। मगर ये लोग ऐसा क्यों करते हैं मुझे तो नहीं पता।
रही बात मेरी तो , तो में हमेशा उदार वादी सोच में भरोसा रखता हूँ, और सबको साथ ले कर के चलने में भरोसा भी रखता हूँ। और उसी का नतीजा है की दो विरोधी सोच रखने वाले आज साथ-साथ हैं।
परसों यानि की ०५ जून २०१० को दोपहर में श्रीमान अनवर जमाल जी का मेरे पास फ़ोन आता है , और उन्होंने मुझे फ़ोन पर ही एक इस्लामिक विद्वान से मिलवाने का आमंत्रण दिया, में भी ठहरा घुमक्कड़ , तुरंत ही तैयार हो गया । अनवर जी ने बताया की हम सुबह के ७:३० बजे दिल्ली में पहुँच कर के आप को बता देंगे की हमें किधर मिलना है। में अगले दिन सुबह ५ बजे ही उठा करके तैयार हो गया और सुबह के ७:३० बजे का इंतजार करने लगा, लगभग ७ बजे के आसपास अनवर जमाल जी का फ़ोन आया की हम सुबह के ९:३० बजे प्रीत विहार में मिलेंगे।
खैर में तय समय से लगभग २० मिनट की देरी से प्रीत विहार पहुंचा। वंहा जाकर के जैसे ही में अपनी गाड़ी से उतरा तो सबसे पहले श्रीमान शाहनवाज जी अपनी गाड़ी से उतारे , उसके बाद श्रीमान डॉ अयाज़ जी नीचे उतारे और उनके पीछे श्रीमान मास्टर अनवार, और सबसे पीछे उतरे मेरे सबसे प्रिय मित्र श्रीमान डॉ अनवार जमाल महोदय। सबका एक दुसरे से परिचय हुआ उसके बाद सभी लोग मेरी गाड़ी में बैठ करके निजामुद्दीन की तरफ चल दिए । पुरे रास्ते एक दुसरे के बारे में बतियाते हुए कब हम लोग निजामुद्दीन पहुँच गए पता ही नहीं चला। सब उस दौरान बहुत ही खुश थे किसी के भी दिमाग में किसी भी तरह का कोई भी गला -शिकवा नहीं बल्कि सबको आपस में मिलने की ख़ुशी थी । वो ऐसे लोग हमेश एक दुसरे के खिलाफ लिकते रहे हो।
बाकि कल मेरा इंतजार करियेगा , आगे और भी मजेदार बाते आपको बताऊंगा। अगर आप लोगो को समय मिले तो इस लिंक को जरुर देखिएगा।
15 comments:
तारकेशवर गिरी जी बहुतक बड़ा जिगरा है आपका जो आप ऐसे लोगों के साथ मिले जो अगर पूरी तरह तालिवान नहीं तो तालिवान से किसी भी तरह कम नहीं। आप समझ गए होंगे हम उस जानवर की बात कर रहे हैं जो हर वक्त भारतीय संसकृति को बदनाम करने के लिए मनघड़ंत कहानियां बनाकर लिखता रहता है।
मौलाना वहिउदीन खान जी के हम भी कायल हैं मौका मिला तो जरूर मलेंगे पर जानवर को साथ लेकर नहीं।
JAI HO
भैया ( आजमगढ़ ) सावधान रहिएगा -कोई लाइफ जैकेट तो होगी नहीं आपके पास ..गोली कहाँ से आयेगी कौन जाने पुलिस या आतंकवादी -गोली तो गोली होती है !
Sriman Arvind Mishra Ji, Sabse pahle to aap mera Pranam Sweekar Kare,
DusaraKi mere blog par padharne ke liye aapko dhanyawad.
Rahi bat comment ki to apki salah main sachmuch dam hai
Baki to sab kuch KASHI WALE BABA KE HATH MAIN HAI
@ गिरी जी आदाब अर्ज है आपसे मुलाकात सचमुच बहुत यादगार रही आपको जैसा सोचा था वैसा ही पाया आपकी प्यारी प्यारी बाते अब भी कानो मे गूँज रही है
आगे की मजेदार बातों का इन्तजार रहेगा, इतना तो अनवर और शाहनवाज भी सुना चुके
आपकी इस पोस्ट की तरफ ध्यान ही नहीं गया, इसके लिए क्षमा चाहेंगे. रविवार के मिलन के ऊपर हमने भी एक पोस्ट बनायीं है, और उस दिन के मौलाना वहीदुद्दीन के व्याख्यान की विडिओ का लिंक भी लगाया है.
http://premras.blogspot.com/2010/06/importance-of-patience.html
श्री शाहनवाज जी से तो मैं भी मिल चुका हूं। बहुत अच्छे आदमी हैं, नेक विचारों वाले।
बाकियों से भी कभी मिलेगें जी।
आपकी अगली पोस्ट का इंतजार है
प्रणाम
गिरी जी, जिगर ही नहीं बल्कि दिल भी बहुत बड़ा रखते हैं। कार से उतरते ही मुझे बड़ी गर्मजोशी से लिपटा लिया। इस यात्रा का ज़िक्र उनकी क़लम से आ जाये इसीलिए मैंने ज़्यादा नहीं लिखा। वोट मैं कर नहीं पा रहा हूं। ख़ैर अगली पोस्ट पर करूंगा ।
मैं बचपन में मौलाना वहीदुद्दीन जी की पत्रिका "अल-रिसाला" पढ़ चुका हूँ.
आपका संस्मरण और विचार बहुत अच्छा लगा. आगे की कड़ी पढूंगा.
वाह तारकेश्वर जी,
भई,आजमगढ़ के हो,फ़िर क्यों न हो हिम्मत,
यह बात अलग है,हिम्मत का उपयोग लोग किस तरह करते है।
कल इन्तेजार रहेगा,उन बन्दो के विचार-व्यवहार जानने का,मानसिकता परखने का।
बाकि मौलाना वहिउदीन खान जी को सभी जानते है।
Post a Comment