अब डॉ कासमी साहेब लोगो को कुरान का ज्ञान देंगे। मुझे ये तो नहीं पता की डॉ साहेब को कुरान का ज्ञान कंहा तक है मगर है जरुर। काल जिस तरह से एक महिला ब्लोगेर के ज्ञान की चुनौती इन्होने दी उस से कंही ज्यादा ज्ञान की ज्ञान की जरुरत इनको है।
ये लोग किसी के बारे में कुछ भी बोल दे कोई फरक नहीं पड़ता , लेकिन जब कोई और इनके बारे में या इनकी गलतियों के बारे में बताना चालू होता है तो इनका इस्लाम खतरे में आ जाता है। अरे मेरे भाई इस्लाम खतरे में कैसे आ सकता है और इस्लाम ही क्या कोई धर्म खतरे में क्यों पड़ेगा। धर्म इंसानियत और जीवन जीने के तरीके को सिखाता है जीवन लेने के तरीके को नहीं। फिर आप लोग इतना हंगामा क्यों खड़ा कर देते हैं।
वो भी सिर्फ एक महिला ब्लोगेर के ब्लॉग को ले कर के। क्या सिर्फ इस लिए की वो हमेशा सच के बारे में लिखती हैं या उनके लेख से कुछ कट्टर मौलानावो की पोल खुलती नजर आती है आपको।
में तो आपको येही सलाह दूंगा की किसी का भी विरोध इस तरीके से न करे । और कभी मौका मिले तो मौलाना वहीदुद्दीन खान साहेब की क्लास का आनंद जरुर ले। तब आपको पता चलेगा की नारी की इज्जत कैसे की जाति है। और सही मायने में इस्लाम का मतलब क्या होता है।
27 comments:
गिरी साहब कुछ लोगो की मानसिक प्रबुद्धता(??) ऐसे ही उजागर होती है. लेकिन फिर भी कासमी साहब ने फिरदोस जी के पास ज्ञान तो माना ही है, चाहे सुना-सुनाया ही, ऐसा तो कह ही नहीं पाए की अज्ञानी है...........
वाह गिरि जी आपने बहुत अच्छा सुझाव दिया है हम तो कासमी साहब को बहुत बार समझा चुके फिर लगता हे यही कमी रह गयी कि कभी उन्होंने मौलाना वहीदुद्दीन खान साहेब की क्लास का आनंद नहीं लिया, यह भी करा के देखते हैं
इस सण्डे बोलो कर दें लाक
Umar Ji, is Sunday ko main Azamgarh main hounga.
:-)
चर्चा-ए-ब्लॉगवाणी
चर्चा-ए-ब्लॉगवाणी
बड़ी दूर तक गया।
लगता है जैसे अपना
कोई छूट सा गया।
कल 'ख्वाहिशे ऐसी' ने
ख्वाहिश छीन ली सबकी।
लेख मेरा हॉट होगा
दे दूंगा सबको पटकी।
सपना हमारा आज
फिर यह टूट गया है।
उदास हैं हम
मौका हमसे छूट गया है..........
पूरी हास्य-कविता पढने के लिए निम्न लिंक पर चटका लगाएं:
http://premras.blogspot.com
आजकल कैरानवी चैलेन्ज नहीं दे रहे हैं...
क्या जादू कर डाला है उन पर...
श्रीमान भारतीय नागरिक जी,
मेरी भी जिद है सबको साथ रखने की.
प्यार की मंजिल दूर नहीं
जरुरत है सिर्फ परखने की.
अल्लाह उन्हे सद्बुद्धि बख्शे!
गिरी जी! कासमी के विरुद्ध बोलने का "महापाप" न करो. ये कु-रान के ज्ञाता हैं. इनका अल्लाह नर्क की आग में जला देगा. कासमी के ज्ञान को कौन चुनौती दे सकता है? इनके ज्ञान की बाढ़ तो इनकी पोस्टों एवं टिप्पणियों के रूप में छायी हुयी है, अपशब्द, गंदी मानसिकता एवं ईर्ष्या के रूप में. ईर्ष्या इसलिए कि ये महिला ब्लोगर की योग्यता से जलते हैं. यह बात सत्य है कि महिला ब्लोगर को इस्लाम की तनिक भी जानकारी नही है. यदि उसे इस्लाम की जानकारी होती तो वह भी मानव कल्याण की बात न करके हिंसा की बात करती. दुसरे धर्मों का अपमान करती. वास्तव में इस्लाम के सच्चे ज्ञाता तो कासमी और जमाल हैं. इस्लाम गैर मुसलमानों को काफिर कहकर हत्या करने तक का आदेश देता है. कु-रान की आयतों में सब निहित है. इस सन्दर्भ में आप एक पोस्ट (मुस्लमान तुम उनकी गर्दन मारो और पोर-पोर पर चोट लगवाओ) लिख चुके हैं.) अब रहा प्रश्न महिलाओं का सम्मान करने का. इस्लाम तो महिला को इंसान मानता नहीं, अर्थात उसे पुरुष से आधा दर्जा दिया जाता है. दो महिलाओं की गवाही एक पुरुष की गवाही के बराबर मानी जाती है, जबकि ऐसा तो किसी जानवर के साथ भी नही किया जाता.
उनके कहने पे हम, शोलों में भी रह लेते हैं।
फूलों की बात क्या, काँटों को भी सह लेते हैं।
उसने देखी कहाँ अभी तिश्नगी मेरी,
उसकी खातिर तो हम, मर के भी जी लेते हैं।
काश देखें कभी वो फटा सा दामन मेरा,
क्योंकि हम जिगर तो उस वक़्त ही सी लेते हैं।
उनको आता नहीं मखमली बिस्तर पे भी चैन,
हम तो तपती हुई धरती पे भी सो लेते हैं।
वो एक बार गर घूँघट जो खोल दे अपना,
सरापा इश्क में मदहोश से हो लेते हैं।
उनके कहने पे हम, शोलों में भी रह लेते हैं।
फूलों की बात क्या, काँटों को भी सह लेते हैं।
यह शाहनवाज सिदिकी की रचना है. कासमी जी इसके बारे में कुछ नही बोलेंगे. कारण वह केवल महिलाओं के विरुद्ध ही विश्वमान कर सकते हैं, पुरुष से मुकाबला करने का साहस इसमें नही है.
क्षमाप्रार्थी, गिरी जी और शाहनवाज भाई, विवश होकर यह उदहारण देना पड़ा.
गिरी जी, आशा है, आप हमारा भाव समझते हुए, टिप्पणियों को अन्यथा नहीं लेंगे. सादर
गिरी जी नीयत नेक है तो उनकी मंजिल भी मालिक आसन ही करेगा . क़ासमी साहब को भी ले चलेंगे वहीं , जहाँ मिलता है सच्चा ज्ञान . प्यार बढ़ाएं , नफरत घटायें . मुझे तो गिरी जी का मिशन यही लगता है .
गिरी जी आपका मिशन अच्छा है नफरत खत्म करो प्यार बढ़ाओ।आपने कासमी साहब को मौलाना वहीददुदीन साहब के यहाँ पहुँचने का आमंत्रण देकर बहुत अच्छा किया वहीं से प्रेम की गंगा बहेगी ।सभी लोग ध्यान दे मौलाना का कार्यक्रम हर sunday10:30 पर होता है
@गिरी साहब मौलाना के यहाँ जाने की ज़रूरत सिर्फ क़ासमी साहब ही को नही है ।ब्लकि कबीर की वाणी का अपमान करने वाले और भारतीय नागरिको को बदनाम करने वाले को भी है। इन लोगो को भी साथ लेकर जाए ताकि इनमे भी कुछ सुधार हो।
तारकेश्वरजी,
मैने आपकी वह पोस्ट पढी थी कि किस तरह आपको मौलाना वहीदुद्दीन खान साहेब तक ले जाया गया। और वह भी जिसमें सब्र का पैगाम था।
निसन्देह मौलाना वहीदुद्दीन खान साहेब एक प्रबुद्ध सरल सौम्य वक्ता होंगे,पर जिस सिद्दत से ये लोग सभी को वहां ले जाने की बात करते है,एक सन्देह उत्पन्न होता है,खरे सोने का टुकडा दिखाकर,अन्दर ले जाकर पीतल की सिल्ली तो नहिं थमा देंगे।
Bhai Suj,
Apne aap main itna vishwash hona chahiye ki aap sona kharidane ja rahe hain to koi pital naa de de.
Aur hame apne aap par pura bharosha hai ki hamara dil bahut majbut hai.
गिरी जी! आपके साहस को नमन.
मुस्लमान हमारे पूज्य देवी-देवता के अश्लील चित्र बनायें. उनके बारे में अपशब्द बोलें,परन्तु हम इनके रसूल के चित्र बनाने वालों का विरोध करेंगे, क्योंकि हमारा खून इनकी तरह गंदा नहीं. ये जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करते हैं. विश्वभर में रसूल की ड्राइंग बनाने पर बल दिया जा रहा है. आओं मिलकर इसका विरोध करें
गिरी जी! विश्वभर में मुहम्मद के चित्र बनाये जा रहे हैं. एक भी मुस्लिम ब्लोगर ने इसका विरोध नही किया, लगता है यह सब मुहम्मद के चित्र बनाने से सहमत हैं.
मुसलमानों का नाश मुसलमानों के हाथों ही हो रहा है. पाकिस्तान का उदाहरण सबके सामने है. मुस्लमान ही मुसलमानों की मस्जिदों पर बम फोड़ रहे हैं. इसी तरह इस्लाम की हिंसा की शिक्षा ही मुसलमानों का समूल नाश कर देगी.
kahat kabira suno bhai sadho ji kya aap online aa sakte hain,
Aap ka Gussa jayaj hai, aur is samashya ka hal sirf Prem se ho sakta hai.
सही मायने में इस्लाम का मतलब क्या होता है।
तारकेश्वर जी
सादर वन्दे !
मै आपको हमेशा पढ़ता हूँ और आपका फालोवर भी हूँ|
आपकी पहली कुछ पोस्टों और इस पोस्ट को पढ़कर मुझे प्रशन्नता हुयी की आप सभी को (जो सही हैं) साथ लेकर चलना चाहते हैं जैसा आपने एक ब्लागर को जबाब देते समय कहा भी है| आप मेरी बातों को अन्यथा मत लें लेकिन आप जिन लोगों को साथ लेकर चलाना चाहते हैं (मै नाम नहीं लूँगा आप खुद समझ लें) इन लोगों ने हिन्दू धर्म को और हमारे आराध्यों को बहुत गलियां दी हैं, आप भी इसको अच्छी तरह जानते हैं | ऐसा क्या कारण है की बदस्तूर ये इन कृत्य को जारी रखे हुए हैं और आप बदलाव की बात कर रहे हैं| ये बदलाव एकतरफा क्यों ?
कुछ विद्वानों ने इनके झूठे तर्कों और मानसिक गन्दगी का जबाब देना शुरू किया तो ये खुदा टाइप लोग पहले तो उनको धमकाए जिसका असर ना होने पर ये जबाब देने के बजाय भाग खड़े हुए |
मेरा सिर्फ यह कहना है कि बदलाव कि बयार बहनी चाहिए लेकिन "तुम बदलो हम वही रहेंगे" कि तर्ज पर नहीं | इस ब्लाग कि दुनिया में मैंने व्यक्तिगत किसी को गाली कभी नहीं दी लेकिन इन खुदा टाइप के लोगों ने मुझे पत्थर से चोट खाए खुदा को याद करने वाला कहा, मै इतिहास का विद्यार्थी हूँ पूरा देश घूमता हूँ सैकड़ों विद्वानों (राष्ट्रीय ,अंतर्राष्ट्रीय ) से परिचय है, अगर मै चाहूँ तो तर्क क्या सुबूत के आधार पर इनकी मटियामेट कर सकता हूँ, लेकिन मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया क्यों ? सिर्फ इसलिए क्योंकि मै इनकी तरह अक्ल का अँधा नहीं हूँ और मै विवादों से प्रचारित पोस्टर बनने का आदी नहीं हूँ , लेकिन इसका कतई मतलब नहीं है कि मै इन बेवकूफों द्वारा दिए जाने वाले अपने आराध्यों कि गाली बर्दास्त करूँ , आपके विचार सही हैं लेकिन साथ गलत लोगों का है, बाकी आप स्वयं बुद्धिमान हैं | प्रश्न यह है कि उन महानुभाव से मिलकर आपके विचार तो बदल गए इनके विचार क्यों नहीं बदले ?
रत्नेश त्रिपाठी
तारकेश्वरजी,
आपकी हिम्मत और आत्मविश्वास का मुझे पूरा भरोसा है,उस हिम्मत की दाद, मैं पिछली पोस्टों पर दे चुका हूं। दिल जितना ज्यादा विशाल हो,उसे ही दिमाग अक्सर ठगा करते हैं।मेरा ही नहीं,मानसिकता पर संदेह 'आर्य'को भी है।
लोगों को जब घटिया माल बेचना हो तो,सज़ावट बड़ी सुंदर व मोहक करते है। दिल से न लें, इस बात को भी और पूरे संदर्भ को भी।
और मुख्य विष्य तो छुट गया,
सब्र, उदारता, सर्वधर्म सदभाव व अमन के लिये
हम मौलाना वहीदुद्दीन खान साहेब की तो तारिफ़ करते है,यही बात और भाव फिरदोस जी का है,
फ़िर ये सभी फिरदोस जी की बात पर क्यो इतना आक्रोश करते है। जब यहां कासमी की भर्त्सना होनी चाहिये,वहां बात को हलके से लिया जा रहा है। तब यहां नियत और सीरत पर शक़ होता है।
मिल बैठकर ही विश्व शांति के लिए कार्य किया जा सकते है। कल ही अखबारो मे शंकराचार्य जयेँद्र सरस्वती और मुस्लिम धर्म गुरुओ को विश्व शांति के लिए प्रार्थना करते हुए इकट्ठा दिखाया गया था ।जब हिंदु और मुस्लिम धर्म गुरु आपस मे मिलकर विश्व शांति की कामना कर सकते है तो फिर हम सब ब्लागर मिलकर विश्व शांति के लिए प्रयास क्यो नही कर सकते ?आज इसी कार्य की सबसे ज्यादा ज़रूरत है ।इस काम के लिए सबको आगे आना चाहिए
वो भी सिर्फ एक महिला ब्लोगेर के ब्लॉग को ले कर के। क्या सिर्फ इस लिए की वो हमेशा सच के बारे में लिखती हैं या उनके लेख से कुछ कट्टर मौलानावो की पोल खुलती नजर आती है आपको।
आर्य जी से सहमत
मंधाता की पत्नी शशिबिन्दु से बिन्दुमती नाम की लड़की हुई। उससे पुरुकुत्स, अम्बरीष (द्वितीय) तथा मुचुकुंद हुए। तथा इनके पचास बहनें थीं। पचासों बहनों के साथ सौभरि ब्राह्मण ने विवाह कर लिया। कहानी इस प्रकार हैᄉ एक बार एक मल्लाह यमुना नदी के पास अपनी पत्नियों के साथ विहार कर रहा था। वहीं सौभरि ब्राह्मण जल में खड़े तपस्या कर रहे थे। निषाद को जलक्रीड़ा करते देख वह कामांध हो गया। वहां से राजा मंधाता के पास गया और मंधाता से एक कन्या का विवाह अपने साथ करने को कहा।
राजा ने कहा कि इनमें से कोई पसंद कर लें और विवाह कर लीजिए। ब्राह्मण बूढ़ा और कमजोर था। नसें दिखाई पड़ रही थीं। आंखें कमजोर, बाल सफेद हो गये थे। उसने कहा मुझे पचासों पसंद हैं। उसने पचासों उस बूढ़े ब्राह्मण सौभरि को दे दीं।
उस समय क्षत्रिायों के यहां लड़कियां मार दी जाती थीं। ब्राह्मणों को बिना ब्याहे ही दान दे दिया करते थे। पचासों लड़कियां उस बूढ़े ब्राह्मण के साथ जंगल चली गयीं। घुट घुट कर मर गयीं।
मंधाता के पुत्राों में अम्बरीष था। मंधाता के वंश तीन अवांतर गोत्राों के प्रवर्तक हुए। पुरुकुत्स का विवाह नर्मदा नाम की कन्या जो, नागवंश की थी, के साथ हुआ। वह दक्षिणी भारत का राजा था। उससे त्रासदस्यु, त्रासदस्यु से अनरण्य, अनरण्य से हर्यश्रव उसके अरुण और त्रिाबंधन हुए। त्रिाबंधन से सत्यव्रत हुआ। वही पिता व गुरु की आज्ञा न मानने पर चांडाल हो गया। यहीं से चांडाल वंश चला। उसे देवताओं ने स्वर्ग से ढकेल दिया। वह बीच में लटक गया। अर्थात् न शूद्र रहा न आर्य। वह चांडाल हो गया तो शव जलाने का काम करता था। उसे ही त्रिाशंकु कहते हैं।
हरिश्चंद्रᄉ त्रिाशंकु का पुत्रा हरिश्चंद्र था। वरुण देव की कृपा से उसके रोहित नाम का पुत्रा हुआ। यह वही हरिश्चंद्र हैं जिन्हें सत्यवादी कहा जाता है। वास्तविकता यह है कि वे काशी में चांडाल के यहां बेचे नहीं गये थे। बल्कि विश्वामित्रा द्वारा छल से राजपाट छीन लिए जाने के बाद अपने रिश्तेदार काशी के कालू डोम के यहां पत्नी सहित रहने लगे थे और श्मशान घाट में मुर्दे जलाते थे।
वरुण ने पुत्रा उत्पन्न करने के पूर्व हरिश्चंद्र से उसके पुत्रा को यज्ञ में यजन करने का वादा कराया था। यजन का अर्थ बलि से है। रोहित को यज्ञ पशु मान कर जन्म के दस दिन बाद उसे यज्ञ में बलि के लिए कहा।
हरिश्चंद्र ने कहा यज्ञ पशु के जब दांत निकल आयेंगे, तब यज्ञ योग्य होगा।
जब दांत आ गये तब वरुण ने कहा अब बलि के लिए दो। हरिश्चंद्र ने कहा जब दांत गिर जायेंगे, तब यज्ञ योग्य होगा। दूध के दांत गिर गये। वरुण ने फिर वही बात दोहरायी। हरिश्चंद्र ने कहा पुनः दांत उग आने पर बलि के योग्य होगा।
दांत आने पर हरिश्चंद्र ने कहा कि क्षत्रिाय पशु तब यज्ञ के योग्य होता है जब कवच धारण करने लगे। इस तरह वरुण चांडाल वंश को नष्ट करना चाहता था।
रोहित को पता चला कि वरुण मुझे बलि दिलाना चाहता है तो वह अपने प्राणों की रक्षा में धनुष लेकर जंगल चला गया। वरुण ने नाराज होकर हरिश्चंद्र पर आक्रमण कर दिया। रोहित ने अपने पिता की सहायता के लिए वन से लौटना चाहा तो इंद्र ने रास्ते में मना कर दिया। जितनी बार रोहित घर लौटने की सोचता, इंद्र बूढ़ा ब्राह्मण बन कर उसको रोक देता।
इधर वरुण को मझले पुत्रा शुनशेय को देकर यज्ञ पुत्रा बना कर उसकी बलि दी। उस यज्ञ में विश्वामित्रा होता थे। जमदग्नि, वशिष्ठ, ब्रह्मा आदि यज्ञ में शामिल थे। उसके मझले पुत्रा की बलि से इंद्र आदि प्रसन्न थे।
इतनी निर्दयी कथाओं को सुन कर हिन्दू समाज प्रसन्न होता है। एक भी हिन्दू ऐसा नहीं है जो इनके घृणित कार्यों की निन्दा करे। इतनी कठोर यातनाएं देने के बाद हरिश्चंद्र को राज्य का अवसर दिया।
http://buddhambedkar.blogspot.com/2010/06/aryon-se-yuddha-karne-wale-kaun.html
Mr Satya Gautam Ji
इतना लम्बा -चौड़ा लेख लिखने के बावजूद , हिन्दू किसे कहते हैं ये बात आपकी समझ में नहीं आई. और शायद आप समझ भी ना पाए , क्योंकि आपके दिमाग का पूरी तरह से ऑपरेशन कर दिया गया है.
इतनी आग उगलने का कारन मेरी समझ आता है , लेकिन शायद आप ये भूल रहे है की आपके अन्दर भी वोही खून है जो बाकि हिन्दुस्तानी लोगो में है.
हर घर में कुछ न कुछ समाश्या होती है , जो उस समस्या का डट कर के मुकाबला करता उसे समझदार कहते है और जो पीठ पीछे कर के भाग जाता है उसे कायर कहते हैं.
ये सब बाते आप नहीं बल्कि आपके अन्दर बैठी हिंदुविरोधी भावना करवा रही है. जरुरी नहीं की आप अपने पिता के आदर्शो पर ही चले हो सकता हैं की आप उनसे बेहतर जिंदगी ढूंढ़ चुके हो.
विरोधी मत बनिए . सहयोग की भावना अपने मन में लाइए . अपने समाज के कल्याण में अपना योगदान दीजिये ना की दुसरे समाज की बुराई में.
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