Tuesday, April 13, 2010

अनपढ़ मुसलमान अभी भी गुमराह हुए पड़े है.

मुसलमान गुमराह हो गए हैं। इसमें कोई शक नहीं है। गुमराही का ही नतीजा है की कुछ ब्लोगेर अनाप -शनाप बके जा रहे हैं। किसी भी धर्म के बारे में, कभी भी बिना सोचे समझे कुछ भी बोल देना इनकी आदत बन गई है। क्योंकि इन्होने तो कुरान को भी सही तरीके से नहीं पढ़ा है। जो लोग कुरान को सही तरीके से पढ़ चुके हैं उन्हें तालिबानी कहते है। इन्हें क्या कहे ?
अरबियन समाज जो की सदियों तक कबीलाई जिंदगी जीता रहा है। खाने के लिए जानवर और खजूर के अलावा कभी कुछ और तो मिला नहीं। एक ही दातून से पूरा महीना निकाल देना। आखिर करते भी क्या खजूर के पेड़ से दातून तो बनती नहीं । कभी -कभार कोई व्यापारी आ गया दातून बेचने, उसी से काम चला लेते थे । लेकिन आज के ज़माने में हिन्दुस्तानी मुल्लावो में ये प्रथा पूरी तरह से विद्यमान है। जबकि हिंदुस्तान में तो नीम और बबूल की खान ही है।
इस्लाम के जन्म से पहले ही अरब समाज में मरे हुए इन्सान को जमीन में दफ़न कर देने की प्रथा थी। क्योंकि अरब में जंगल नहीं थे। हिंदुस्तान में मरे हुए इंसानों को दफ़न भी किया जाता है और जलाया भी जाता है।
कुछ लोगो ने अज्ञानी अरबियों को चमत्कार दिखा करके भ्रमित कर दिया । आज पूरी दुनिया के पढ़े लिखे मुसलमान भी कुरान से ऊपर नहीं सोच पा रहे हैं। समुद्र से मूंगा और मोती निकलना कोई चमत्कार कैसे हो सकता है। (सूरा ५५, पेज ७४०)
हरे - भरे बाग़ और नहरों का लालच दे कर के मुसलमान बना दिया गया ।
इस्लाम के जन्म से पहले भी अरब समाज में भगवान् को अल्लाह कहते थे।

21 comments:

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

अन्धे आगे रोए और अपने नैन खोए.....

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

गुमराह होना कोई जुर्म नहीं है. कोई भी हो सकता है. सिर्फ इतना समझना पर्याप्त होगा की हमारा संविधान ही हमारा धर्म ग्रन्थ है. इसी में हिन्दुस्तानियों की भलाई है.

Unknown said...

ये तो संविधान को भी नहीं मानते।संविधान में साफ लिखा है कि धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं पर ये तो धर्म रे आधार पर आरक्षण मांग रहे हैं देखा नहीं महिला आरक्षण की कापियां कैसे फाड़ी।

Shah Nawaz said...

गिरी साहब, जो इंसान कुरान से अलग सोचता है, वह मुसलमान होता ही नहीं. इसलिए आपकी चिंता बेकार है. क्योंकि आप जिनकी चिंता कर रहे हैं, वह मुसलमान है! जो कि कुरान से अलग सोच ही नहीं सकते. क्योंकि जिस दिन अलग सोचेंगे, उस दिन मुसलमान रहेंगे ही नहीं. :)

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

@भाई शाह नवाज, एक ही दिक्कत है. आप सुधार करने की सोचते ही नहीं है.

इससे पहले भी आपको समझाया. आप समझना ही नहीं चाहते. राष्ट्र के आगे धर्म तुच्छ है.

Taarkeshwar Giri said...

shah navaj ji . mujhe to aap bhi pakke musalaman nahi lagte hain.

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

@भाई शाह नवाज,
वैसे एक बात बताईये "मुसलमान" को किसी दूसरी भाषा में हिंदी/अंग्रेजी/अन्य किसी भाषा में क्या कहेंगे. कुछ दिन पहले आपने समझाया था, मुसलमान मतलब आस्तिक और काफिर मतलब नास्तिक. फिर मुसलमान दुसरे धर्म के आस्तिकों से अलग कैसे हो गया.

Taarkeshwar Giri said...

शाह नवाज जी। मुसल- मान
मुसल का मतलब होता है - जड़ से
मान का मतलब होता - आदर, सत्कार , इज्जत देने वाला
लेकिन इसकी परिभाषा आप जैसे लोगो ने बदल करके rakh दी। ये शब्द आज कल आतंकवाद का रूप ले रहा है। samjhaiye apne samaj ko .

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

@भाई शाह नवाज जी, आपकी कथनी और विचार में अंतर है.

आप कहते हैं, (About Me)

मित्रों,

मैं ग़ालिब की नगरी दिल्ली से हूँ, एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में ग्राफिक्स एक्ज़ीक्यूटिव के रूप में कार्यरत हूँ और विज्ञापन से जुड़े कार्य संभालता हूँ.

मेरा यह मानना है कि विचारों में चाहे विरोधाभास हो, आस्था में चाहे विभिन्नताएं हो परन्तु मनुष्य को ऐसी वाणी बोलनी चाहिए कि बात के महत्त्व का पता चल सके. अहम् को छोड़ कर मधुरता से सुवचन बोलें जाएँ तो जीवन का सच्चा सुख मिलता है.

मैं एक साधारण सा मनुष्य हूँ, और मनुष्य का स्वाभाव ही ईश्वर ने ऐसा बनाया है कि गलतियाँ हो जाती हैं. इसलिए गलती मुझसे हो सकती है और अपनी गलती पर मैं हमेशा माफ़ी मांगता हूँ. अगर कहीं कुछ गलती हो गई हो तो क्षमा का प्रार्थी हूँ.
-शाहनवाज़ सिद्दीकी.


चलिए, आपकी गलती माफ़ है. एक शेर याद आ गया.

लोग उसे समझाने निकले
पत्थर से सर टकराने निकले

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

यही तो मदरसे और शुक्रबार को मस्जिद में जबरन इकठ्ठा होने का फंडा है गिरी जी ! अगर ये पढ़ लिख गए किसी अच्छे स्कूल से तो महफूज अली और फिरदौस नहीं बन जायेंगे !

Taarkeshwar Giri said...

Godiyal ji Namashkar.

Ye badalana hi nahi chahte.

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...
This comment has been removed by the author.
Saleem Khan said...

जो इंसान कुरान से अलग सोचता है, वह मुसलमान होता ही नहीं. इसलिए आपकी चिंता बेकार है

मिहिरभोज said...

@शाह नवाज जी यही तो तारकेश्वकर जी कह रहे हैं कि इस अंधी गुफा से बाहर निकलो .....मुसलमान बनने से ज्यादा जरूरी है इंसान बनना

K.K._________________ said...

@ Tarkeshwar Giri ji

ये लोग सब सोच कर बोलने वाले और शांति से धर्म बदलो अभियान चला रहे हैं
जहाँ इनकी संख्या कम है वहाँ प्यार से या तो इतना गरियाओ के हम धर्म का नाम लेते ही शर्म से माथा नीचे करे और जहाँ इनकी संख्या जादा है वहाँ मार - काट से

Taarkeshwar Giri said...

Saleem bhai tabhi to main kahta hun ki kuran se hat karke socho. nahi to log apko bhi tarlibani kahne langenge.

DR. ANWER JAMAL said...

ek vote le lo yaar itni unchi koj ? par .

Aslam Qasmi said...

यह बेचारे जो कुरआंन से हट कर सोचने की सलाह दे रहे हें इन की परेशानी यह हे की यह लोग समझ ते हें की कुरान में भी वेदों ,पुरानों की तरह के ही आडम्बर होंगे अगर यह बेचारे कुरआंन पढ़ लें तो इन्हें पता चले की सच्चाई किया हे, एक गरीब एसा भी हे जिसे समुद्र से मोतियों का निकलना भी चमत्कर नहीं लगता

Taarkeshwar Giri said...

Aslam saheb. puri duniya janti hai ki aapne kuran ko kaise padha hai.

Gyan Darpan said...

अनपढ़ क्या यहाँ तो पढ़े लिखे मुसलमान भी गुमराह हुए पड़े है | और ये तथाकथित पढ़े लिखे विद्वान् ही उन अनपढ़ों को गुमराह करते है | वरना अनपढ़ तो फिर भी इंसान है इन पढ़े लिखों की तुलना में |

Unknown said...

bhai sekhawat ji se sahmat...
padhe likhe hi baakion ko gumrah kar rahe hain..