बात ३ अक्तूबर की है, घर पहुचने में ज्यादा नही बस रात के १० बज गए थे , हुआ ये की शनिवार को ऑफिस की छुट्टी थी , तो दोस्तों के साथ शाम को खाने पीने का प्रोग्राम बन गया, और बस उधर से में लेट हो गया । जैसे ही मैंने गाड़ी घर के बाहर खड़ी किया , तो सामने देखा तो मैडम दरवाजा पकड़ के खड़ी हैं। चेहरा तो पहचान में आ ही चुका था की बेटा बस आज तो कहानी ख़राब है तेरी। एक कदम ही अन्दर बढाया था की लंबा चौडा भाषण चालू हो गया। मरता क्या न करता एक कान से सुनकर दुसरे कान से निकालता हुआ, फौरन कपड़े बदले और घुस गया बाथरूम में। जैसे ही बाथरूम से बाहर निकला जोर से आवाज आई खाना, खाना है या नही। तब तक तो मैं भी जोश में आ गया था, मैंने भी उसी आवाज को बरक़रार रखते हुए कहा की खाना - खाना हो गा तो ख़ुद ले लूँगा। उस रात की रोटी तो ख़ुद बना कर के खा ली। सोचा की अगले दिन समझौता हो जाएगा और बिना टेंशन लिए या दिए सो गए । सुबह उठते ही मैडम का मिजाज गरम ऑफिस जाते समय भी गरम । सोचा की चलो शाम होते -होते सब ठीक हो जाएगा । और बस तब से ये ही सिलसिला चल रहा है, सुबह से शाम और शाम से सुबह। अब तो मैंने भी ठान लिया है की जब तक मेरी बीबी मुझसे बात नही करेगी तब तक मैं भी उस से बात नही करूँगा, देखते हैं की कब तक चलती है नाराजगी इस तरह से,
लेकिन एक बात तो है अगर बीबी नाराज हो तो आदमी का खर्च कम हो जाता है, क्योंकि जब बीबी बात ही नही करेगी तो पैसे कैसे मांगेगी।
लेकिन नुकसान भी बहुत होते, हमेशा टेंशन बनी रहती है और टेंशन के साथ साथ और भी बहुत कुछ नुकसान होता है।
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