Saturday, October 31, 2015

विचारो में असमानता

अक्सर ये देखा जाता  है की मानव समाज में  भिन्न - भिन्न विचारो के लोग पाये जाते हैं, इसकी मूल वजह तो मुझे नहीं पता , मगर विचारो में एकता लाने के लिए समय - समय पे धार्मिक एवं सामाजिक  परम्पराओ का जन्म होता रहा है, और ऐसा हुआ भी है की एक पंथ, एक समाज  या एक धर्म के मानने वालो में कुछ हद तक विचारधारा समान होती है , सिर्फ कुछ हद तक ही।  

अलग -अलग धार्मिक , राजनितिक एवं सामाजिक संस्थाओ की अपनी अलग - अलग विचार धारा होती है,  अलग -अलग धार्मिक , राजनितिक और सामाजिक संस्थाओ से जुड़े हुए लोग काफी हद तक उसका अनुसरण भी करते है, लेकिन उसके बावजूद कभी -कभी ऐसा होता है की उनके बीच भी वैचारिक मतभेद पैदा हो ही जाते हैं, और आपस में दूरियां बढ़ने लगती हैं।  

हद तो तब हो जाती है , जब दो अलग -अलग विचारधारा वाले धार्मिक , सामाजिक या राजनितिक समूहों का आपस में टकराव होता है।  और टकराव का नतीजा भयानक होता है।  

अपने - अपने विचारो को धार्मिक, राजनितिक और सामाजिक समूहों द्वारा अपने समर्थको के दिलो -दिमाग में  भर दिया जाता है, और उसका परिणाम ये होता है की दुसरो राजनितिक , धार्मिक या सामाजिक समूह का विचार पहले वालो को व्याहारिक नहीं लगता , बल्कि पहले वाला समहू ये चाहने लगता है की दूसरा समहू भी उनके विचारो का अनुसरण करे।  

एक परिवार में माँ - बाप के विचार अलग -अलग हो जाते हैं, भाई-बहन के विचार अलग हो जाते , मतलब की एक संयुक्त रूप से हरा -भरा परिवार भी आपसी विचारो के मतभेद में उलझा रहता है, लेकिन चूँकि वो एक संयुक्त परिवार है, इसीलिए विचारो के मतभेद के बावजूद आपस में प्यार बना रहता है, पड़ोसियों के सामने एकजुट होने में विलम्ब भी नहीं होता। 

जँहा कभी भी धर्म , समाज या राजनीती एक -दूसरे के सामने आई है, वंहा अक्सर आपस में टकराव भी हुए हैं , 

रामायण और  महाभारत का समय  , सिकंदर से लेकर समार्ट अशोक का विश्व विजय अभियान रोम साम्राज्य का अंत , जैन , बौध,  ईसाई, इस्लाम, सिख धर्म का आगमन , प्रथम विष्व युध हो या द्वतीय विश्व युध का भयानक परिणाम, विचारो में असमानता का ही परिणाम है। 

आज हमारे हिंदुस्तान में  भी इसी तरह की विचार धारा का भरपूर फायदा राजनितिक दल उठाने में व्यस्त हैं। 







1 comment:

कविता रावत said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति ..