Saturday, July 31, 2010

भैया जरा बच के , जाना दिल्ली में, -तारकेश्वर गिरी.

भैया जरा बच के , जाना दिल्ली में,

कोई पता नहीं कब कौन सा पुल आ गिरे आपके सर पे।

लाल बत्ती सब ख़त्म हो गई हैं, मर्सिडीज बिना ड्राईवर के दौड़ रही हैं,

जिंदगी सबकी चल रही हैं, भैया जरा बच के , जाना दिल्ली में।।

रोटी नहीं हैं, सीमेंट और ईंट का ढेर हैं,

हर तरफ अधिकारी और नेता चोर हैं.

ना जाने कौन सी सड़क पे गहरा सा छेद हैं,

भैया जरा बच के , जाना दिल्ली में।।

Thursday, July 22, 2010

खाइए कसम कि आप एक साल तक बाप नहीं बनेगे- तारकेश्वर गिरी.

कसम खाइए कि इस साल बच्चा पैदा नहीं करेंगे- तारकेश्वर गिरी.

चलिए सभी लोग मिल कर के कसम खाइए कि आज से एक साल तक बच्चा पैदा करने कि बात नहीं करेंगे । खासकरके वो लोग जिनकी शादी इसी साल हुई है या होने वाली , खास कर के वो लोग जिनके पास एक या दो या उस सेअधिक बच्चे हैं। खास कर के वो लोग जिनके पास एक भी बच्चा नहीं है। मतलब कि आज से एल साल तक कोई भी आदमी बाप नहीं बनेगा और न ही कोई महिला माँ बनेगी ।


और एक साल रूक जायेंगे तो क्या फर्क पड़ जायेगा। एक साल बाद आप माँ या बाप बन जाइएगा । मान जाइये मेरी बात मेरे साथ इस अभियान में शामिल हो जाइये।


हमारे देश कि जन्शंख्या बहुत ही तेजी से बढ़ रही है, इतनी तेजी से जितना कि पंजाब में आई बाढ़ , जगह - जगह लोग भूखे मर रहे हैं, लोग आत्महत्या कर रहे हैं। अपनी जरूरतों को पूरी करने के लिए
लोग चोरी- डैकैती और ना जाने कौन - कौन सा अपराध किये जा रहे हैं। जिसे भोजन मिल रहा है वो तो भर पेट खा रहा है, और जिसे नहीं मिल रहा है उसका क्या , बेचारा दिन रात मेहनत करके खाने का जुगाड़ करता रहता है।


मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि आप लोगो मैं से कुछ लोग ऐसा कर रहे हैं, ऐसा तो हमारे देश कि गरीब जनता कर रही है, इन्टरनेट पर ब्लॉग लिखने वाला और चाट करने वाला गरीब कंहा से होगा।



हमारे देश मैं बहुत से गर्भ निरोधक हथियार पहले से ही मौजूद हैं , उनमे से आप कोई सा भी इस्तेमाल कर के मात्र एक साल तक हमारा साथ दे। में ये तो कभी नहीं कहूँगा कि आप गर्भ में पल रहे बच्चे को मौत दे, लेकिन ये कही सकता हूँ कि ऐसे नौबत ना आने दे।


इस प्रयोग से आने वाले २१ महीने तक कोई बच्चा पैदा नहीं । आज से मेरी विचार धारा को अपने जीवन में अगर आप अमल में लाते हैं तो समझिये कि अपने एक ऐसा उपकार किया है भारत देश पर जैसे कि सेना का जवान देश कि सीमा पर अपनी जान चूका करके करता है


अगर आज से एक साल तक ये प्लानिंग करते हैं तो इस देश में अगले या १० महीने बाद कोई भी बच्चा जन्म नहीं लेगा, और जब एक साल पुरे हो जायेंगे तो भी बच्चे को जन्म लेने में लगभग ९ महीने तो लगेंगे ही। यानि कि आपने अगले २१ महीने तक बढती हुई आबादी पर समजो कि पॉवर ब्रेक लगा दिया।

बाकी भैया आपकी मर्जी ।
हम कही तो सकते हैं ना। आप का हाथ थोड़े पकड़ सकते हैं।

कृपया भारत कि बढती हुई आबादी को रोके।

Sunday, July 18, 2010

प्रेम कि हद क्या होती है -तारकेश्वर गिरी.

प्रेम कि हद क्या होती है, आज सुबह - सुबह जब सो कर के उठा तो पता नहीं कंहा से अचानक ख्याल आया कि आखिर किस हद तक किया जा सकता ही प्यारप्यार एक ऐसा शब्द जिसको बोलने मात्र से सुखद आनंद कि प्राप्ति हो जाती है

प्रभु से प्यार, माता - पिता से प्यार, भाई-बहन से प्यार , पत्नी से प्यार, प्रेयशी से प्यार, बच्चो से प्यार, रिश्तेदारों से प्यार, दोस्तों से प्यार , जानवरों से प्यार, प्रकृति से प्यार - और ना जाने किस -किस से प्यार

लेकिन मतलब तो देखिये हर प्यार का मतलब अलग- अलग होता हैकई जगह तो प्यार सिर्फ मतलब के लिए किया जाता है, तो कई जगह जानबूझ कर के दिखावे के लिए किया जाता है प्यार

प्रभु का प्यार आनंद कि प्राप्ति करवाता हैमाता-पिता , भाई-बहन, पत्नी, बच्चो, रिश्तेदारों और दोस्तों का प्यार सामाजिक बन्धनों में जकड़े रहने कि अनिवार्यता दर्शाता हैं जानवरों और प्रकृति का प्यार सबको साथ ले कर के चलने कि दिशा दिखता हैमगर प्रेयशी का प्यार क्या कहलाता है

क्योंकि आज के ज़माने में जंहा भी प्यार शब्द का इस्तेमाल हुआ , कुछ लोग तो बस येही कहेंगे कि बेटा तू तो गया काम सेप्रेयशी के प्यार ने अगर आगे चल कर के किसी रिश्ते का रूप ले लिया तो ठीक नहीं तो उसका क्या होता हैबेचारे दो प्रेमी

एक छोटी सी घटना का जिक्र कर रहा हूँ :- मेरे एक मित्र हैं जो कि शादी शुदा हैं, उनकी दोस्ती एक लड़की से पिछले १० सालो से चल रही हैदोस्ती का मतलब सिर्फ दोस्ती ही हैऔर मुझे भी इतना पक्का पता है कि दोनों कि दोस्ती में सचमुच एक ऐसा प्रेम झलकता है जिसकी कल्पना भी नहीं कि जा सकतीक्योंकि दिल्ली जैसे शहर में अगर कोई लड़का या आदमी किसी लड़की से दोस्ती या प्रेम करता है तो उसका मतलब सिर्फ प्रेम ही नहीं बल्कि शारीरिक संबंधो से भी होता हैमगर ये मेरे परम मित्र महोदय आज भी शारीरिक संबंधो से दूर दोस्ती के संबंधो को निभा रहे हैंउनकी ये दोस्ती भी काफी पुरानी होने कि वजह से काफी मजबूत है

ऐसे रिस्तो को क्या नाम देंगे , क्या ये सही है


Saturday, July 17, 2010

हिन्दू इतना उग्र क्यों होता जा रहा है ? -तारकेश्वर गिरी.

हिन्दू इतना उग्र क्यों, आखिर वजह क्या है कि शांति का सन्देश फ़ैलाने वाला समाज आज उग्र हुआ पड़ा है, कुछ एक को छोड़कर सभी राजनितिक दल हिन्दू विरोधी हो गए हैं , सारे मीडिया वाले भी हिन्दू विरोध का प्रचार कर रहे हैं . आखिर हिन्दू इतना उग्र क्यों हो गए हैं.

बहुत ही गंभीर विषय है आज कि तारीख में . हिन्दू आज से १००० साल पहले इतना उग्र क्यों नहीं हुआ . अगर पहले ही इतना उग्र हो गया होता तो शायद भारत का नक्शा कुछ और ही होता , आखिर हिन्दू के उग्र होने कि वजह क्या है ?

क्या इसके पहले सिर्फ वोट कि राजनीती है ?
क्या इस पर धार्मिक दलों (दुसरे धर्मो का ) का दबाव है ?

आज भारत में भी हिन्दू डर करके जी रहा है, कंही मुस्लिम से तो कंही इसाई से तो कंही सरकार से आखिर क्या वजह है ?

पूरा संसार इस बात को अच्छी तरह से जनता हैं कि जब भी मुस्लिम आक्रमणकारियों ने भारत पर आक्रमण किया है तो उनका उद्देश सिर्फ राज करना ही नहीं बल्कि हिन्दू धर्म को तहस - नहस करना भी था। हिंदुस्तान में जितने भी पुराने मंदिर थे , उनको तोड़ कर के या तो मस्जिद बना दिया गया या कब्र बना दिया गया है

इतने के बावजूद भी क्या हिन्दू उग्र नहीं होगा.

१. हिंदुस्तान में सभी पुराने मंदिरों को तोड़कर के मस्जिद या कब्र बना दिया गया. - हिन्दू सहता रहा .
२. हिंदुस्तान में हिन्दू कि हालत एक गुलाम जैसी हो गई - हिन्दू सहता रहा.
३. सोमनाथ का मंदिर लूट लिया गया - हिन्दू सहता रहा.
४. कश्मीरी पंडितो को कश्मीर से भगा दिया गया और उनके मंदिरों कि जगह मस्जिदे बना दी गई - हिन्दू सहता रहा .


आखिर और कितना सहेगा हिन्दू,

१. गुजरात के गोधरा में मुसलमानों ने कार सेवको से भरी ट्रेन कि बोगी में आग लगा दिया , हिंदुवो ने उसका जबाब दिया तो - हिन्दू उग्र हो गए.
२. बाबरी मस्जिद को हिंदुवो ने गिरा दिया तो -हिन्दू उग्र हो गए.
३. अपने बचाव में अगर हिन्दू कुछ कदम उठता हैं तो - हिन्दू उग्र हो गया.

आखिर बात :- मीडिया वालो को कश्मीर क्यों नहीं नज़र आता. क्या मिडिया वाले सचमुच मुस्लिम आंतकवाद से या फतवों से डरते हैं ?

किसी भी दिन का अख़बार उठा के देख ले , अपराध सबसे ज्यादा मुस्लिम बस्तियों में ही मिलेगा

Thursday, July 15, 2010

चाँद पे मस्जिद बनवायेंगे- सलीम खान जी - तारकेश्वर गिरी .

अब पूरी दुनिया में इस्लाम फ़ैलाने के बाद जब कंही और जगह नहीं मिली तो हमारे परम मित्र श्रीमान सलीम खान साहेब चाँद पर ही पहुँच गए, लग हाथो उन्होंने सोचा कि जब अमेरिका यंहा पर इन्सान बस्तियां बसने में लगा हुआ है तो एक मस्जिद ही क्यों ना बना दी जाय.


बात कल दोपहर कि है जब श्रीमान सलीम खान साहेब ने मुझे एक SMS भेजा , मैंने तो उसे पढ़ा फिर सलीम खान साहेब पर जोर से हंसा. आप भी पहले पढ़ लीजिये उन्ही कि शब्दों में :-

( , Sunita Wlliams Indian Lady jo satellite pe Chand par ga’ey thi(02/07/07) usnay “ISLAM” Qabool kar liya hai. She said: “ chand se saari ZAMEEN kaali nazar aa rahi thi magar 2 jagah roshan thein , telescope se dekha to roshni wali jagah ‘MAKKAH’ aur ‘MADINA thein! ‘ ALLAH-O-AKBAR’ aur chand pe sari frequency fail hojati hai magar sirf ek awaj aati hai jo AZAAN ki awaj hai’ SUBHAN ALLAH isse pahle chand par jane wale pahle yatri niel Armstrong neb hi dekha sunatha aur unke bhi ISLAM qubool karne ki baat samne aai thi ( I will check it today, will u ?) ALLAH BEHTAR JANANE WALA HAI.

हिंदी में : (कृपया आप गूगल पर चेक करे, सुनीता विलिअम्स जो कि भारतीय महिला है, जो कि Satellite से चाँद पर गईं ( ०२/०७/२००७) को , उन्होंने इस्लाम कबूल कर लिया है, वो कहती हैं कि चाँद से सारी ज़मीन काली नज़र आ रही थी मगर दो जगह रोशन थी , टेलेस्कोपे से देखा तो रोशनी वाली जगह' मक्का' और' मदीना' थी, अल्लाह ओ अकबर. और चाँद पे सारी frequency फेल हो जाती है, मगर सिर्फ एक आवाज आती है जो कि अजान कि आवाज है. 'सुभान अल्लाह '. इससे पहले चाँद पर जाने वाले पहले यात्री ने भी इस्लाम कबूल कर लिया है.)


लेकिन श्रीमान सलीम खान साहेब सुनीता जी तो अन्तरिक्ष में गई थी ना कि चाँद पे, और जंहा तक हमें जानकारी है चाँद से पृथ्वी नीले रंग कि दिखाई देती है, और मैंने ये भी सुना है कि चाँद से सिर्फ चीन कि दीवाल साफ नज़र आती है.


पृथ्वी पर इन्सान हैं और इंसानों ने ही अलग - अलग धर्म बना लिए है, अलग - अलग भाषा का इस्तेमाल कर के पूजा पाठ भी करते हैं, तो चाँद तो इन्सान से अछुता है चाँद को क्या पता कि कौन हिन्दू है और कौन मुस्लमान और कौन इसाई या बुद्ध.


सुनीता जी तो पहले से ही इसाई धर्म को मानने वाली है, और सुनीता जी भारत कि नहीं बल्कि भारतीय मूल कि अमेरिकी महिला हैं।



Wednesday, July 14, 2010

आखिर धर्म परिवर्तन जरुरी क्यों है ? - तारकेश्वर गिरी.

हमारे देश मैं जो भी धर्मपरिवर्तन कि गतिविधियाँ चल रही हैं, उसे देख कर येही लगता है कि धर्म परिवर्तन आस्था के साथ - साथ लालच के लिए भी किया जा रहा है. गाज़ियाबाद के विजय नगर में इसाई मशीनरियां आज भी पैसे के बल पर धर्म परिवर्तन करवा रही हैं. और वो भी मात्र ३ लाख रुपये में. गरीब और पिछड़े हुए लोग इसमें बढ़ चढ़ करके भाग ले रहे हैं. पैसे के साथ - साथ उन्हें तुरंत चमत्कार का लालच भी दिया जा रहा है. आज भी अगर आप सुबह - सुबह टी वी खोल कर के देखे तो उसमे कैसे - कैसे चमत्कार दिखा कर के लालच दिया जाता है कि आप अपना धर्म परिवर्तन करले.


रही बात इस्लाम कि तो आज कुछ लोग मात्र २ पत्नी या दो शादी करने के चक्कर में इस्लाम कबूल कर रहे हैं.


लेकिन आखिर सवाल ये है कि क्या धर्म परिवर्तन से लाभ है. हर धर्म के विद्वान लोगो का येही कहना है कि सभी धर्म सही रास्ता दिखलाते हैं , ईस्वर एक है, चाहे आप उसे अल्ल्लाह के नाम से पुकारे या चाहे शिव के नाम से या गोंड कहे या बुद्ध या भगवान महावीर या वगैरह - वगैरह. क्या फर्क पड़ता है.


हिंदुस्तान में धर्म परिवर्तन का मूल कारण रहा है , यंहा कि जाती व्यस्था या उंच -नीच का माहौल . पुरे देश में पंडितो ने जाती व्यस्था को इतना कठिन बना दिया कि निचले वर्ग के लोगो का शोषण होने लगा. और इसी का फायदा उठाया इसाई मशीनरियों ने.

डॉ भीम राव आंबेडकर ने अपने को बुधिष्ट कहा और बौध धर्म को अपनाया , उनके समर्थन में लगभग पूरा का पूरा हरिजन समाज बौध धर्म ग्रहण कर चूका है. और आज हालत ये है कि भारत में बौध धर्म एक जाती विशेष का धर्म बन कर के रह गया है. उत्तर प्रदेश कि मुख्यंत्री ने पुरे उत्तर प्रदेश में डॉ भीम राव आंबेडकर जी , कांशी राम जी, और खुद कि मूर्तियों का विशाल जाल बिछा दिया है. पूरा का पूरा उत्तर प्रदेश आंबेडकर मय हो गया है. लेकिन उसके परिणाम कुछ अलग ही दिख रहे हैं , डॉ भीम राव कि मूर्तियाँ खुले रूप में आसमान के नीचे खड़ी पड़ी है. एक संविधान निर्माता कि ये हालत. पूरा का पूरा हरिजन समाज सिर्फ आंबेडकर , कांशी राम जी कि मूर्तियों को सँभालने में व्यस्त है. और सरकार अपने आप को. आज का हरिजन समाज पहले से भी ज्यादा बुरी स्थिति में पहुँच चूका है. जब कि आज के आधुनिक समाज में सभी वर्ग के लोगो ने आपस में घुलना - मिलना शुरू कर दिया है. कौन हरिजन , कौन ब्राहमण और कौन मुस्लमान . जब तक अपनी पहचान खुद ना बताये तब तक आप पता नहीं लगा सकते और ये व्यस्था आगे चल कर के और नजदीकियां लाएगी.

लेकिन आखिर धर्म परिवर्तन कि जरुरत है क्यों. मेरे समझ से तो धर्म परिवर्तन सिर्फ कायर लोग करते हैं , जो अपने समाज को सुधारने कि बजाय किसी और समाज को अपना लेते हैं. अगर किसी परिवार में माता - पिता कि भूमिका संदिग्ध लगे तो क्या माता- पिता का साथ छोड़ कर के किसी और को अपना माता - पिता बना लेना उचित है, या अपने माता - पिता रूपी समाज को सुधारना उचित है. ये गारंटी कौन लेगा कि धर्म परिवर्तन करने बाद उसकी स्थिति सुधार जाएगी. अगर इस बात कि गारंटी होती तो सभी के सभी अपना धर्म बदल चुके होते. और आज का पूरा भारत देख रहा कि जो लोग हिन्दू धर्म को छोड़ करके गए हुए हैं वो आज भी उसी तरह से जी रहे हैं जिस तरह से बाकि हिन्दू समाज.

बल्कि धर्म परिवर्तन से हिंदुस्तान को नुकसान ही हुआ है. आज का भारतीय समाज अलग- अलग धर्म को अपना करके एक दुसरे से अलग हुआ पड़ा है. और कंही - कंही तो एक दुसरे कि जान के दुश्मन बने पड़े हुए है.

Monday, July 12, 2010

२७ हिन्दू और जैन मंदिरों को तोड़ कर बनाई गई है कुव्वत - उल इस्लाम मस्जिद - तारकेश्वर गिरी.





दिल्ली के पास महरौली मैं स्थित ये मस्जिद क़ुतुब मीनार के प्रांगन मैं स्थित है. जिसके अन्दर घुसने से पहले ही दरवाजे पर दिल्ली सरकार का सूचना बोर्ड लगा हुआ है, कि ये मस्जिद २७ हिन्दू और जैन मंदिरों को तोड़ कर के बनाई गई है. जब आप इस मंदिर (मस्जिद) मैं लगे हुए खम्बो को देखेंगे तो तुरंत पता चल जायेगा, उन पर उकेरी हुई देवी और देवातावो कि परतिमाये और घंटियाँ ये चिल्ला - चिल्ला के कहती हैं कि ये मस्जिद नहीं बल्कि एक वेधशाला थी. देवी और देवातावो कि प्रतिमावो को ऊपर से छील दिया गया है.



पश्चिम से आये मुस्लिम लड़ाके , अपनी जीत दर्ज करने के बाद अपना गुस्सा हिन्दू मंदिरों पर उतारते थे. हिन्दू मंदिरों को तोड़ कर के वंहा पर किसी न किसी प्रमुख मुस्लिम व्यक्ति कि कब्र बना देना उनकी आदत थी, इस काम मैं उन्हें क्या आनंद आता था ?........पता नहीं.




दिल्ली का इतिहास महाभारत काल से विद्यमान है, सबसे पहले पांड्वो ने अपनी राजधानी २५०० ई. पु. मैं बनाई, जिसका नाम उन्होंने ने इन्द्रप्रस्थ रखा, इन्द्रप्रस्थ से भी पहले इसका नाम खंडवाप्रस्थ था. ७३६ ए डी से लेकर के ११९२ तक तोमर-चौहान वंस के राजावो ने राज्य किया.


उसके बाद १२०६-१२९० तक माम्लुक्स वंस के लोगो ने दिल्ली पर राज्य किया, खिलजी वंस का राज्य १२९०- १३२० तक चला, फिर आया तुगलकी फरमान वालो का नम्बर जिन्होंने १३२०-१४१३ तक दिल्ली पर राज्य किया, उसके बाद सैयेद बंधू ने भी अपनी किश्मत १४१४ से लेकर १४५१ तक आजमाई. फिर आये श्रीमान लोधी वंस के शासक जिन्होंने लोधी वंस के दीपक को १४५१ से लेकर के १५२६ तक जलाया. लम्बा समय निकला मुग़ल शासको ने १५२६ से लेकर के १८५७ तक उसके बाद शुरू हुआ भारत कि आज़ादी का दौर . अंग्रेजो ने भी १८५७ से १९४७ तक भारत कि तरक्की मैं पूरा योगदान दिया. और अब तो बाबा आक्टोपस ही बताएँगे कि दिल्ली मैं दीक्षित और इटालियन वंस का साम्राज्य कब चलेगा।


महरौली मैं मीनार बनाने के श्रेय पृथ्वीराज चौहान को जाता है, मीनार से पहले वंहा पर बहुत ही सुन्दर सा किला और किले के पास अतिसुन्दर सी वेधशाला (ज्योतिष गड़ना) के लिए बनी थी. महाराजा पृथ्वी राज चौहान ने उसी प्रांगन मैं मीनार बनवाने काम शुरू किया. लेकिन काम ख़त्म होने से पहले ही ११९२ मैं गजनी के हाथो हुई हार से बाकि काम रुक गया और श्रेया मिला कुतुब्दीन एबक को.

Friday, July 9, 2010

माँ को भी नमन नहीं कर सकते है, सिवाय अल्लाह के - तारकेश्वर गिरी.

भाई वाह , आखिर दिल की बात एक ब्लोगेर (मुस्लिम ब्लोगेर ) ने कह ही दी की हम माँ को नमन नहीं कर सकते चाहे जो भी हो जाये । हमारे लिए तो अल्लाह के सिवाय और कोई नहीं है। ये एक टिप्पड़ी मिली है मेरे प्रिय मित्र श्रीमान सहनावज जी के ब्लॉग पे ।

तारकेश्वर जी, दिखावे के लिए क्यों गंवाना चाहते हैं "वन्दे मातरम"?



सहसपुरिया जी, आप अपनी ही बात पर सहमती नहीं बना पा रहे हैं. एक तरफ तो कह रहें हैं की ( की जब कि ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा है कि अगर वह मनुष्यों में से किसी को नमन करने की अनुमति देता तो वह पुत्र के लिए अपनी माँ और पत्नी के लिए अपने पति को नमन करने की अनुमति देता.) लेकिन दूसरी तरफ खुदी कह रहे हैं की (हम अपनी माँ से प्यार करते हैं, परन्तु उस प्रेम को दर्शाने के लिए उनकी पूजा नहीं करते हैं. यह हमारी श्रद्धा नहीं है कि हम ईश्वर के सिवा किसी और को नमन करें, यहाँ तक कि माँ को भी नमन नहीं कर सकते हैं.)

येही तो समस्या है आप जैसे अरबियन सोच रखने वालो की. जो की माँ को भी नमन नहीं करते हैं. और येही वजह है आप की, कि आप वन्दे मातरम का बिना सोचे समझे विरोध करते हैं.

Thursday, July 8, 2010

मुसलमान भाई अगर वन्देमातरम गा देंगे तो क्या फर्क पड़ जायेगा ?- तारकेश्वर गिरी

मुसलमान भाई अगर वन्देमातरम गा देंगे तो क्या फर्क पड़ जायेगा ? बड़े दिनों से इस मुद्दे पर तरह - तरह के लेख आते रहे हैंपढ़ते ही दिमाग ख़राब हो जाता हैमैं खुद इस बात से सहमत नहीं हूँ की सिर्फ वन्देमातरम गा देने वाला भारतीय ही सच्चा देश भक्त हो गाअगर सच्चा देश भक्त वन्दे मातरम गा देने वाला होता , शायद हमारे देश की हालत इतनी बुरी नहीं होतीजितने भी M L A और M P पुरे देश से चुन कर के आते हैं वो सब वन्दे मातरम गाते है, सभी बड़े- बड़े अधिकारी वन्दे मातरम गाते हैं, मगर उन्ही अधिकारी और नेतावो मैं देश के गद्दार भी छुपे पड़े हुए हैंऔर ये बात आप सबको पता भी है

लेकिन वन्दे मातरम गाना एक अलग बात होती हैवन्दे मातरम से पुरे देश को एक जुटता मिलती है, वन्दे मातरम से पूरा भारतीय समाज एक हो जाता हैये भी सच हैकिसी साथी ने लिखा था की वन्दे मातरम गीत मैं दुर्गा माता की भक्ति नज़र आती है, जो की मुसलमान नहीं कर सकते

लेकिन मैं अपने साथियों से जानना चाहता हूँ की क्या ?

. अगर कोई मुसलमान भाई वन्दे मातरम गा देगा तो वो मुसलमान नहीं कहलायेगा
अगर कोई हिन्दू किसी मुसलमान मित्र के साथ किसी मस्जिद मैं चला जाता है तो क्या वो मुसलमान हो जायेगा
अगर कोई मुसलमान अपने किसी हिन्दू मित्र के साथ किसी मंदिर मैं जा कर के माथा टेक देगा तो क्या वो हिन्दू हो जायेगा
भारत मैं कितने ऐसे मुसलमान हैं जो रोज पांचो वक्त की नमाज पढ़ते हैं और पूरा रोजा रखते हैं, क्या वो मुसलमान नहीं हैं
भारत मैं कितने ऐसे हिन्दू हैं जो हर विधि विधान से पूजा पाठ करते हैं, क्या वो हिन्दू नहीं हैं


मेरा खुद का मानना है की ये सिर्फ एक धार्मिक और राजनितिक हवा हैएक आम भारतीय कभी भी ऐसा नहीं सोचता अगर अपने आस पास देखा जाय तो ७०% ऐसे लोग होंगे जिन्हें वन्देमातरम का गीत आता ही नहीं होगा

फिर इतना हंगामा क्योंवन्दे मातरम गीत सिर्फ स्कूल मैं ही लोग गा पाते हैं, उसके बाद तो भूल जाते हैंऔर स्कूल मैं पढने वाले बच्चो को क्या पता की धार्मिक और राजनितिक रंग क्या होता है , वो तो बचपन के रंग मैं ही रंगे होते हैं