ये दिल्ली भी क्या चीज हैं, लोग रोज आते हैं , रोज जाते हैं , हम जैसे लोग कुछ ना कुछ रोज इसके बारे में कह जाते हैं।
अभी थोड़ी देर पहले मेरे एक प्रिय मित्र का एक SMS आया तो सोचा कि क्यों ना आप सब के साथ बाटा जाये.
"ये कैसी दिल्ली हैं भाई, हमको तो कुछ समझ ना आई"
पहाड़गंज में "पहाड़" नहीं हैं, ना दरिया गंज में "दरिया"
और ना इन्द्रलोक में "परियां"।
गुलाबी बाग "गुलाबी" नहीं , न ही चांदनी चौक में "चांदनी"।
पुरानी दिल्ली में "नई सड़क" हैं, और नई दिल्ली में "पुराना किला"।
कश्मीरी गेट में "कश्मीर" नहीं, अजमेरी गेट में "अजमेर" नहीं।
रोज रात को सोते समय सोचता हूँ कि दिल्ली तो ११०० सदी में बसी थी और वो भी नई दिल्ली में। और पुरानी दिल्ली तो मात्र ५०० साल पुरानी हैं
जय हो दिल्ली और दिल्ली के दिल वालो कि।
ये भी कमाल की रिसर्च है
ReplyDeleteडान का गाना याद आ गया...
ReplyDeleteIndraprasth ko to log bhul hi gaye
ReplyDeleteDilli waloon main Dil to hai na...
ReplyDeleteवाह! क्या सरल मधुर सन्देश (SMS) पढवाया आपने.... बहुत खूब!!!!!!!!!!!!!!! :-)
ReplyDeleteफिर भी मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि गिरि जी तारों की खोज कोई कल्पना नहीं है। तारों-सितारों की खोज के ईश्वर हैं वे और संत नगर में संत बसते हैं।
ReplyDeleteवैसे दिल्ली की मजबूती और इन्द्रदेवता की मेहरबानी से रूबरू होना चाहें तो, समय मिलने पर अपनी निगाहों से चटकायें बारिशरस में डूबी दिल्ली
दिल्ली के मजबूत अंग-प्रत्यंग
कमाल कर दिया साहेब......
ReplyDeleteये तो कबीर साहेब कि उलटबांसियां साबित हुई.