Pages

Monday, August 16, 2010

नारद जी और श्रीमती मनमोहन सिंह- तारकेश्वर गिरी.

श्रीमती मनमोहन सिंह एक दिन परेशान हो कर के नारद मुनि जी के पास जा पहुंची।
और बोली - - - मुनिवर, मेरे पति बुड्ढ़े हो गए हैं , अब उनसे कोई भी काम नहीं होता हैं, उनका तो दिमाग भी हल्का हो गया हैं, रात भर खर्राटे ले कर के सोते हैं मगर ना खुद सो पाते हैं और ना ही मुझे सोने देते हैं। में क्या करू , मुझे तो लगता हैं कि में पागल हो जाउंगी॥
श्रीमती मनमोहन जी कि बात सुन कर के नारद जी बोले - - - - हे देवी परेशान मत हो , मुझे पता हैं कि तुम्हारे पति को क्या दिक्कत हैं।
श्रीमती जी :- क्या दिक्कत हैं।
नारद जी :- तुम्हारा मरद अब तुम्हारे हाथ से निकल चूका हैं , एक विधवा औरत के जाल में फंस चूका हैं , हे देवी तुम्हारे पति के दिमाग में एक हमेशा एक सुन्दर औरत का चित्र लगा रहता हैं, और तो और वो हमेशा उसी का गुलाम बना रहता हैं, वो जो कहती हैं, वो वही करता हैं।
श्रीमती जी :- तो अब कोई उपाय बताइए मुनिवर।
नारद जी : उपाय का क्या करना, मजे कि जिंदगी जी रही हो जीती रहो। आदमी नहीं हैं तो क्या धन - दौलत से घर तो भरा पड़ा हैं ना। और क्या चाहिए ।
श्रीमती जी: - मुनिवर इनके हाथ तो कुछ लगा ही नहीं सारा मॉल तो इटली पहुँच गया हैं। और बचा खुचा तो कलमाड़ी मार ले गया । खेल का सारा पैसा तो उसकी माँ के इलाज में अमेरिका पहुँच ।
नारद जी :- ( हँसते हुए ) देवी अब तुम एक कविता सुनो और आपने घर जावो।
दिल्ली के मैदान में , मची हैं जम के लूट ।
लूट सके जो लूट ले , नहीं तो जल्दी से फूट ।
जल्दी से फूट नहीं तो, सत्ता में आएगा कोई और।
आते ही मांगेगा हिस्सा , न मिले तो मचाएगा वो शोर।
मचाएगा वो शोर , चोर -चोर चिल्लाएगा।
कुछ ना मिले तो चारो तरफ हड़ताल वो करवाएगा।

19 comments:

  1. Behad ghatiya lekh aur soch. Itna niche mat giro.Jinke(manmohan singh ji) bare me aap likh rahe hai waisa banane me aapko kai janm lena padega .Aapke blog kaa naam hai KAAM KI BAATE .Kam se kam Naam kaa dhyan rakhe.

    ReplyDelete
  2. Lagta hai Ki Mahendra ji ko unka hissa mil gaya hai.

    ReplyDelete
  3. My Dear Mahendra Ji,

    Apko Kya lagta hai ki Manmohan ji sahi hain, Waise padhe likhe insan hamare desh main sakado milenge.

    ReplyDelete
  4. Tarkeshwar ji

    Hisse wali baat mere samajh me nahi aayi, aapka blog mai apne favourite me rakha hai aur mai aapka samman bhi karta hu .Aapne likha Waise padhe likhe insan hamare desh main sakado milenge to hame un sabka samman karna hai .Aap vayang likhe lekin usme bhi sammaan hona chahiye. Aapne jo likha ki VIDHWA KE JAAL ME FAS GAYA HAI ............. us par mujhe aaptti hai baki sab thik hai . KAAM KI BAATE likhte rahe hamari subhkaamna aapke saath hai

    ReplyDelete
  5. oho ! to aise samjhaiye naa , Thanks Mahendra Ji

    ReplyDelete
  6. bhaayi trkib se bhut bdhaa kduvaa sch kh gye bhut khub hunr paaya he jnaab. akhtar khan akela kota rajsthan.

    ReplyDelete
  7. विलकुल सही कहा मेरे भाई आपने। कोई बात ऐसी नहीं जिसे झुठलाया जा सके। बैसे सच्चाई कड़वी होती है इन चोरों के चमचों को बुरी भी लग सकती है। आपने सच्चाई लिखने का जो साहस दिखाया उसके लिए आप बधाई के पात्र हैं।

    ReplyDelete
  8. महेन्द्र जी से इस नाते सहमत हूं कि
    विधवा औरत के जाल में फंसने की जगह
    इटालियन अंग्रेज एंटोनिया के जाल में पंस गया है
    उचित रहेगा क्योंकि इसाई औरतें कभी सुहागन या विधवा नहीं होती।

    ReplyDelete
  9. भई अपनी तो ये आदत है कि हम कुछ नहीं कहते...बस पढा, आनन्द लिया और छुट्टी :)

    ReplyDelete
  10. mahendra जी मुझे ज्ञात नही कि तारकेश्वर जी के जाल का तात्पर्य यौन संबंधित है या नही पर वो जब madam के इशारो पर नाच रहे हैं तो madam के ज़ाल मे ही फंसे हैं।

    ReplyDelete
  11. ha-ha-ha.. itnaa kaduwaa sach bhee mat bolo Tarkeshwar ji :)

    ReplyDelete
  12. किसी विधवा का उपहास ठीक नहीं है , ताज्जुब है बुद्धिजीवी बहुत खुश हो रहे हैं ?

    ReplyDelete
  13. तारकेश्वर गिरी जी, बहुत ही कडुवा सच लिख रहे हो..... जय हो!

    ReplyDelete
  14. कफ़नचोरों से तो फिर भी बेहतर है .

    ReplyDelete
  15. लेकिन अपने लिखा है तो कुछ सोच कर ही लिखा होगा , मैं भी समझने की कोशिश करूँगा .

    ReplyDelete
  16. Bhai Log Vidhva Ko Vidhwa Nahi kahenge to aur kya kahenge.

    ReplyDelete