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Sunday, March 13, 2011

अब जाटो के बाद ब्राह्मणों को भी चाहिए - तारकेश्वर गिरी.

बचपन से पुस्तकों में पढता आया हूँ कि एक गाँव में या एक शहर में एक गरीब ब्राहमण रहता था. पुराने राजा महाराजवो के ज़माने में भी ब्राहमण गरीब ही रहा. सिर्फ उतनी ही भिक्षा चाहिए होती थी जितने में कि उसका और उसके परिवार का पेट भर जाये.

जजमानो के यंहा जा जा करके पूजा पाठ करके जो भी मिलता उसी से कम चल जाता. और हाँ इतना जरुर था कि ज्ञान का धनी ब्राहमण सिर्फ ज्ञान का ही धनी रह गया, बड़े -बड़े राजा महाराजवो को ज्ञान देने वाले आज खुद ऊँची जाती का होने कि वजह से हर तरह कि सरकारी सुविधावो से वंचित हो गया.

9 comments:

  1. क्यो नही अभी तो देखते जाओ किस किस को चाहिये, यह काग्रेस की चाल इस को ले कर डुबे गी

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  2. shi kha aavshykta se adhik koi bhi chiz bhut buri he . akhtar khan akela kota rajsthan

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  3. गिरी साहब काहे को दुखती राग पर हाथ रख रहे हैं. मुफ्त में मलाई तो हर कोई चाटना चाहता है तो भैया जाट क्यों पीछे रहें. वो हर आदमी जो वोट बैंक में तब्दील हो सकता है उसे आरक्षण का लालीपॉप थमा दो बाकि जाएँ भाड़ में.

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  4. सही कहा है आपने! धन्यवाद|

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  5. सबको दे दें, झंझट खत्म...

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  6. भारत आजाद हुआ और प्रधानमंत्री पद पर अधिकतर ब्राह्मण ही बैठे और आरक्षण आदि फ़ालतू के फ़साद उन्होंने ही खड़े किए हैं । BJP ने भी आरक्षण कैंसिल नहीं किया। मैं तो चाहता हूँ हरेक ब्राह्मण के पास कम से कम बाबा रामदेव और चंद्रास्वामी जितनी दौलत तो होनी ही चाहिए । इस विषय में आप ब्लॉग संसद में आवाज़ उठाएं ।

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  7. सही कहा है आपने! धन्यवाद|

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