भारत पर अंग्रेजो ने लगभग २०० साल तक राज किया, मगर जैसे ही भारतीयों को मौका मिला पढ़ लिख करके आजादी कि आवाज बुलद करने में लग गये.
और भारत को अंग्रेजी हकुमत से मुक्त भी कराया और येही नहीं सम्पूर्ण भारत का सपना भी पूरा हुआ.
आज अरब देशे में भी येही हाल हैं.मदरसे कि पढाई के बजाय लोगो ने अंग्रेजी शिक्षा पद्धति पर जोर दिया और ५० -५० साल से चली आ रही राज तंत्र कि व्यस्था पर आवाज बुलंद भी करने लगे.
आज का युवा वर्ग ये बात अच्छी तरह से जनता हैं कि उसको किस तरह कि आज़ादी चाहिए और आज़ादी के फायदे क्या हैं. एक आम आदमी को सरकार से क्या -क्या उम्मीद होती हैं और सरकार का मतलब क्या होता हैं.
अरब देशो में चल रही क्रांति को देखते हुए चीन के भी माथे पर पसीने कि लकीरे बनती नज़र आ रही हैं.
Gightly so , Sir.
ReplyDeleteतथ्यात्मक लेख के लिए हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteडॉ ,(मिस) शरद सिंह.
ReplyDeleteआपके कमेन्ट ने मेरे लेख पर चार - चाँद ला दिया हैं, थैंक्स
गिरी जी महाराज,
ReplyDeleteआप हमेशा ही बहुत सार्थक लेख लिखते हैं और इस बार भी आपने खूबसूरत बात कही है!
ऐसे ही लिखते रहिये, बधाई!
बढ़िया लेख़ . बधाई
ReplyDeleteगिरी भाई सवाल भाषा का नही सवाल तकनीक का है अंगरेजी पढ़ कर आजादी नही मिली बल्कि जागरूक करने वाली तकनीक हमारे हाथ लगी जिसका प्रयोग गांधीजी सुभाष बाबू भगत सिंह इत्यादि ने किया वही तकनी का प्रयोग मिस्र में हुआ. ऐसी विद्या जो जागरूक करे उससे देश को आजादी व्यक्तित्व को आजादी समाज को आजादी. मदरसों की दिक्कत उसी आजादी के दमन से होती है अप्प्का लक्ष्य तो शुभ है इसके लिए बधाई
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ReplyDeleteगिरी जी क्षमा चाहता हूँ, टिप्पणी मे देरी हुई, पर मैं आपके निमंत्रण पर यहां उपस्थित हूं।
ReplyDeleteमैं आपसे एकदम असहमत हूं कि आजादी की राह (कम से कम हिन्दुस्थान मे) अंग्रेजी के माद्ध्यम से आई। आप ही बताईए कि १८५७ की क्रांति मे कितने अंग्रेजी दां थे? अब आप यह मत कहिएगा कि सिर्फ १८५७ ही तो हुई, वस्तुतः हमारे देश मे कभी भी अंग्रेजों को शांति से बैठने नही दिया अपने स्वातंत्र्य वीरों ने, दुर्भाग्य से इन सब के विषय मे पढ़ने को नही मिलता और लगता है कि स्वतंत्रता आंदोलन गांधी नेहरु तक सीमित है। कूका विद्रोह, पंजाब मे तो १८५७ से पहले ही विरोध की चिंगारी भड़की थी, जिसके दमन के पश्चात अंग्रेजो ने एक नीति के तहत सिख रेजिमेंट को भड़का कर १८५७ के संग्राम मे उनका उपयोग हमारे ही खिलाफ किया। पूर्वोत्तर मे रानी चेन्नमा। वनवासी बंधुओं के मध्य विरसा मुण्डा। ऐसे कई नाम हैं। इसके अतिरिक्त जिन्होने अंग्रेजी पढ़ी भी उन्होने अंग्रेजी पढ़ने के कारण आजादी की बात की ऐसा नही है, उस समय ज्ञान का एक प्रमुख स्रोत था अंग्रेजी तो अगर पठन पाठन करना है तो अंग्रेजी का दामन थामना ही पडेगा ऐसा माहौल था। इस अंग्रेजी का एक मात्र लाभ जो हुआ वो अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं को जानने मे हुआ, पर अधिकांशतः तो (अंग्रेजी) पढे लिखे लोग इस संग्राम से दूर ही रहे, सरकारी बाबू बन कर वो सरकार की सहायता जरूर करते रहे। नेतृत्व को छोड़ दें तो असली संग्राम तो खालिस देशी लोगो का किया हुआ था। ऐसी कई काम हुए जिनके कारण पूरे आंदोलन की दिशा बदल गई, जबकि वो कांग्रेस के एजेंडे मे वो नही थे।