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Wednesday, February 23, 2011

मैं भी चाहती हूँ हसीन सपने देखना-------------- तारकेश्वर गिरी.

मैं भी चाहती हूँ हसीन सपने देखना,
मुस्कुराना गाना
सबकी यादो मैं.

बंधन हैं समाज का रोकता हैं जमाना
मैं तो बनी हूँ
बस आम लोगो के लिए ही.

कोई भी नहीं देखता प्यार से
ना कोई पास हैं आता
काम ही ऐसा हैं रोकता हैं जमाना.

आरजू हैं मेरी आपसे
बस थोडा सा हाथ बढ़ाना
घर मैं कचरे का ढेर अब मत बढ़ाना.

बहुत ढो लिया मैला अपने सर पर
घर जा करके
बच्चे को भी हैं पढ़ाना.

अगर आप साथ दे तो
मेरी भी अगली पीढ़ी
बन जाये
आपकी तरह.

11 comments:

  1. अगर आप साथ दे तो
    मेरी भी अगली पीढ़ी
    बन जाये
    आपकी तरह
    .
    बहुत खूब

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  2. वाह तारकेश्वर गिरी जी बहुत सुन्दर, मन प्रशन्न हो गया
    बहुत बहुत धन्यवाद

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  3. वाह! बेहतरीन भावों से सजी हुई रचना है!!!

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  4. आपने समाज की बहुत ही विकराल समस्या को उठाया है। बेहतरीन रचना। आभार।

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  5. मुझे आपकी यह रचना कालजयी लगी भैया ...
    कहाँ तक थे अब तक ! तारकेश्वर गिरी का यह स्वरुप पहली बार देखा ! शुभकामनायें भैया ...

    http://satish-saxena.blogspot.com/2008/06/blog-post_15.html,

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  6. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (24-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  7. बहुत अच्छी रचना।

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  8. सुंदर सार्थक रचना ......

    अगर आप साथ दे तो
    मेरी भी अगली पीढ़ी
    बन जाये
    आपकी तरह
    यह पंक्तियाँ भावुक कर देने वाली हैं...बधाई

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  9. बहुत खूब।

    देखिए, फिर पोस्‍ट के रूप में हमें भी बताइए।

    ---------
    काले साए, आत्‍माएं, टोने-टोटके, काला जादू।

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