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Sunday, December 12, 2010

भ्रस्टाचार को क़ानूनी मान्यता दे देनी चाहिए.-तारकेश्वर गिरी.

और नहीं तो क्या , ऐसा ही होना चाहिए, कम से कम भ्रस्टाचारी को तो थोड़ी आसानी होगी. जनता को भी कम से कम रेट तो तय हो जायेंगे. भ्रष्टाचारियों को पकडे जाने और सजा का डर तो हैं नहीं, उन्हें ये अच्छी तरह से पता हैं कि उन्हें कब और कैसे बचना हैं.


अब मीडिया को ही देख लीजिये. एक भ्रस्टाचार का मुद्दा मिला नहीं कि शोर-शराबा चालू, विरोधी दल भी अपना हिस्सा मांगने के लिए धरने पर बैठ जाता हैं, धरने पर तो फिर भी ठीक हैं, मगर संसद न चलने देना, रोड जाम और रैली कि तो बात ही अलग हो जाती हैं.


अब आप ही बताइए कि अगर जंतर -मंतर पर रोज -रोज हंगामा और रैली होगी तो हिस्सा तो चाहिए न. और रैली में भाग लेने वाली जनता का क्या वो तो बेचारी मुफ्त सफ़र करके दिल्ली आ जाती हैं. कुछ तो दिल्ली घूम कर के चले जाते हैं और कुछ बेचारे रेलवे स्टेशन से ही रोजी -रोटी के जुगाड़ में दिल्ली में खो जाते हैं.


तो इस रोज -रोज कि पिक-पिक से तो अच्छा हैं कि भ्रस्टाचार का रेट तय कर दिया जाय. और मेरे विचार से तो ये तरीका अच्छा रहेगा. :-


१. देश के सभी विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्या मंत्री और प्रधान मंत्री के वेतन और भत्ते को बंद कर के भ्रष्ट रेट तय कर दिए जाने चाहिए. (योग्यता अनुसार)


२. देश के सभी छोटे और बड़े अधिकारीयों के वेतन और भत्ते बंद कर के योग्यता अनुसार भ्रष्ट रेट तय कर दिए जाने चाहिए.


३. सैन्य अधिकारीयों के साथ भी येही निति अपनानी चाहिए , नहीं तो वो बगावत कर देंगे और फिर हिंदुस्तान भी पाकिस्तान कि तरह हो जायेगा.


और C.B.I और बाकि जाँच एजेंसियों को ख़त्म कर देना चाहिए. क्योंकि उनके द्वारा पकड़ा गया एक भी भ्रस्टाचारी आज तक सजा ना पा सका.


न्यापालिका को यथावत रहने दिए जाना चाहिए , जिस से कि भ्रष्ट रेट का सही निर्धारण हो सके.


जनता भी खुश और नेता और अधिकारी भी खुश.


जय हो भारत देश और जय भ्रष्ट लोग .

19 comments:

  1. लेख एक बहतरीन व्यंग है...वैसे टिपण्णी रूज़ पाने के कितने होंगे और ब्लॉग पे लिंक देने के कितने होंगे?

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  2. आप का दर्द ज़ायज़ है ! व्यवस्था पर तेज़ तरार व्यंग्य !

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  3. अभी किसी हिटलर बाबा को भेजता हुं, वो इन कमीनो के रेट पक्के कर देगा:)फ़िर इन की सात पुश्ते कभी किसी की दुआन्नी भी नही छुयेगी गरांटी हे.

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  4. जनता भी खुश और नेता और अधिकारी भी खुश.

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  5. .
    .
    .
    प्रिय तारकेश्वर गिरी जी,

    इसे व्यंग्य नहीं कहूँगा, एक कड़ुवी हकीकत को जबान दी है आपने... मेरी आज की पोस्ट भी इसी बात को उठा रही है...

    आप की इस पोस्ट का लिंक दे रहा हूँ ब्लॉग पर... अग्रिम आभार!


    ...

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  6. Bhai agar aap main se koi aisa kam karta ho to band kar dijiye

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  7. nahi to garibo ki badduwa lagegi. aur be maut marenge

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  8. \ha ha ha.bahut hi badiya.yadi ye ho jaye.to hamko bdi aasani ho jaye

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  9. तारकेश्वर जी आपने व्यंग विधा मे भी पग धर दिया, बहुत खूब। मज़ेदार। सत्य ही C.B.I. जैसी संस्था आज के समय मे सफेद हाथी साबित हो रही है, इसे समाप्त कर देना चाहिए।

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  10. बिल्कुल ठीक है.. झंझट खत्म होगा दि्खावे का..

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  11. करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान ।

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  12. रेट तय कर देना सही है | कई बार आम लोगो को पता नहीं होता है और नए आदमी को इ सरकारी बाबु अफसर ज्यादा रिश्वत ले कर लुट लेता है बाद में पता चलता है की दूसरा बाबु अफसर तो कम रिश्वत में ही काम कर देता ये लुट बंद होनी चाहिए और हर सरकारी काम का रेट फिक्स होना चाहिए |

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  13. system par gaharaa kataaksh...badjiya lekh.

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  14. ... gambheer mahaamaaree bhrashtaachaar !!!

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  15. गिरी साहब ! आपसे सहमति जताते हुए कहना चाहूँगा कि पीड़ा में भी सुख के मजे लूटे जा सकते हैं बशर्ते कि दिल में ईमान हो और अपनी ज़िम्मेदारियों का अहसास हो। माँ के सुख का तो जनम ही जनम देने की पीड़ा से होता है । जब तक सिस्टम सुधरे या रिश्वत के रेट तय हों तब तक आप लोग देखिए मेरी एक रचना -

    ज्ञानमधुशाला
    कैसे कोई समझाएगा पीड़ा का सुख होता क्या
    गर सुख होता पीड़ा में तो खुद वो रोता क्या

    इजाज़त हो तेरी तो हम कर सकते हैं बयाँ
    दुख की हक़ीक़त भी और सुख होता क्या

    ख़ारिज में हवादिस हैं दाख़िल में अहसास फ़क़त
    वर्ना दुख होता क्या है और सुख होता क्या

    सोच के पैमाने बदल मय बदल मयख़ाना बदल
    ज्ञानमधु पी के देख कि सच्चा सुख होता क्या

    भुला दे जो ख़ुदी को हुक्म की ख़ातिर
    क्या परवाह उसे दर्द की दुख होता क्या

    आशिक़ झेलता है दुख वस्ल के शौक़ में
    बाद वस्ल के याद किसे कि दुख होता क्या

    पीड़ा सहकर बच्चे को जनम देती है माँ
    माँ से पूछो पीड़ा का सुख होता क्या

    """""""""
    ख़ारिज - बाहर, हवादिस - हादसे, दाख़िल में - अंदर
    हुक्म - ईशवाणी, ख़ुदी - ख़ुद का वुजूद, वस्ल- मिलन
    ..-::-

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  16. पांच लाख से भी जियादा लोग फायदा उठा चुके हैं
    प्यारे मालिक के ये दो नाम हैं जो कोई भी इनको सच्चे दिल से 100 बार पढेगा।
    मालिक उसको हर परेशानी से छुटकारा देगा और अपना सच्चा रास्ता
    दिखा कर रहेगा। वो दो नाम यह हैं।
    या हादी
    (ऐ सच्चा रास्ता दिखाने वाले)

    या रहीम
    (ऐ हर परेशानी में दया करने वाले)

    आइये हमारे ब्लॉग पर और पढ़िए एक छोटी सी पुस्तक
    {आप की अमानत आपकी सेवा में}
    इस पुस्तक को पढ़ कर
    पांच लाख से भी जियादा लोग
    फायदा उठा चुके हैं ब्लॉग का पता है aapkiamanat.blogspotcom

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  17. SAHI KAHA GIRI JI...

    AAPNE SUNA NAHI HAI KYA .
    HUM BHRASTAN KE BHRASHT HAMARE..EK DUJE KO DONO PYARE..

    TO AB KANUNI JAMA BHI IS RISHTE KO MIL HI JANA CHAHIYE

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  18. गिरी जी एक बात और जोडना चाहूँगी
    यदि भ्रष्टाचारी अपनी योग्यतानुसार और नियमित रूप से भ्रष्टाचार का कार्य ना करे तो उसके लिये कानून भी बना दिया जाय

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