जावो कि कंहा ये जानेमन तुम हमें छोड़ कर।
हर साँस तो हमारी हैं।
दिल का धडकना बंद हो जाय तो क्या
सांसे रुक जाय तो क्या
जावो कि कंहा ये जानेमन तुम हमें छोड़ कर।
मन तो जाने या न जाने किसी को ये जानेमन,
जान तो हर समय साथ देती हैं मन का।
ये तो जिन्दगी हैं इस जंहा कि जो प्यार सिखाती हैं,
जावो कि कंहा ये जानेमन तुम हमें छोड़ कर।
हर साँस तो हमारी हैं।
जावो कि कंहा ये जानेमन तुम हमें छोड़ कर।
ReplyDeleteहर साँस तो हमारी हैं।
bahut khoob
मेरा गधा खो गया है
ReplyDeleteकिसी रेंकता मिले तो मोबाईल नं. पर बताना
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आप भी ताजगी महसूस कीजिएगा मेरी ताज़ा कहानी पढ़कर
ReplyDelete'रचना का अलबेला अरमान'
इस शीर्षक से ख़ादिम ने दूसरी बार कुछ लिखने की कोशिश की है ।
यह रचना अलबेला खतरीय जी की प्रतियोगिता में शामिल होने की ग़र्ज़ से लिखी गई है ।
जब यह आपके सामने आए तो मेहरबानी करके इसे निन्दा या आलोचना का नाम न दिया जाए ।
वर्ना मेरे शेख़चिल्ली को बहुत सदमा होगा ।
उस बेचारे को पहले ही अपने अंडे फूटने का गम है ।
मेरी कहानी में मेरा गधा भी है बिना गधी के । कहानी के अंत में गधा वह करने के लिए भागता है जो कि एक बिल्कुल अलबेला विचार है , पर किसी की मुराद भी है।
रचना अनोखी और अछूती है । इसमें अलबेला को बिना किसी नक़ाब के आप सभी को दिखाया जाएगा । उनकी महानता और समझदारी को यह कहानी उजागर करती है ।
रचना में ख़ुश्बू है , महक है तो अलबेला जी भी हरफ़न मौला हैं ।
कामेडी और संस्पेंस के साथ ब्लाग संसार की गुदगुदाती सच्चाईयां ,
बहुत जल्द होंगी आपके सामने .
good going
ReplyDeleteक्या ख़ूब कहने की अच्छी कोशिश है .
ReplyDeletenice post
ReplyDelete... bahut khoob !!!
ReplyDeleteShayree bhee shuroo ker dee bhai..
ReplyDeleteये तो जिन्दगी हैं इस जंहा कि जो प्यार सिखाती हैं,
ReplyDeleteबहुत खूब
अच्छी कोशिश है
ReplyDeleteखूबसूरत रचना...बधाई !!
ReplyDeleteबहुत अच्छी गजल तारक जी ।
ReplyDeleteआपकी स्पष्ट्पादिता अच्छी लगी । काश जमाल जी भी आपसे थोडा सीख लेते